Tuesday, November 29, 2011

मेरी रहनुमा

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मेरी रहनुमा
हसीनाओ से दिल लगता न था
उनकी गालियों में जाता न था
एक तुम ही थी मेरी रहनुमा
जिसके बैगैर रह पता न था
रातो में जागना आता न था
खयालो में खोना जानता न था
आँखों में इंतज़ार का सबब होता न था
दिल में मीठा दर्द पता न था
एक तुम ही थी मेरी रहनुमा
जिसके बैगैर रह पता न था
अब हाले दर्द कुछ और ही है
आज आशीष कुछ मजबूर भी है
महफ़िलो में अकेला अब पता हु मैं
रातो में सोना चहाता हु मैं
जख्म ए दिल की दवा जानता न कोई
हसीनाओ के जख्म की गोली बनाता न कोई
अब बन के मजनू घूमता हु अनजानी गलियों में
पूछता हु पता सिर्फ बेवफा हसीनाओ का मैं
ताकि फिर न टूटे कोई और दिल
आशिको को भी मालूम हो अपनी शाम ए मंजिल
हाकिमो से भी करता हु चर्चा उस जख्म का
जिसको देती है कातिल हसिनाए दिल पर
हसीनाओ से दिल लगता न था
उनकी गालियों में जाता न था
एक तुम ही थी मेरी रहनुमा
जिसके बैगैर रह पता न था....

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