Wednesday, December 9, 2015

गत्यात्मक ज्योतिष संगीता पूरी जी के साथ

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बहुत आगे बढ गए हम ..इसके पूर्व की सारी कडियों को पढने के लिए
एक सप्‍ताह बाद अपने रिश्‍तेदारी के एक विवाह से लौटी मेरी बहन ने कल एक प्रसंग सुनाया। उस विवाह में दो बहनें अपनी एक एक बच्‍ची को लेकर आयी थी। हमउम्र लग रही उन बच्चियों में से एक बहुत चंचल और एक बिल्‍कुल शांत थी। उन्‍हें देखकर मेरी बहन ने कहा कि इन दोनो बच्चियों में से एक का जन्‍म छोटे चांद और एक का बडे चांद के आसपास हुआ लगता है। वैसे तो उनकी मांओं को हिन्‍दी पत्रक की जानकारी नहीं थी , इसलिए बताना मुश्किल ही था। पर हिन्‍दी त्‍यौहारों की परंपरा ने इन तिथियों को याद रखने में अच्‍छी भूमिका निभायी है , शांत दिखने वाली बच्‍ची की मां ने बताया कि उसकी बच्‍ची दीपावली के दिन हुई है यानि ठीक अमावस्‍या यानि बिल्‍कुल क्षीण चंद्रमा के दिन ही और इस आधार पर उसने बताया कि दूसरी यानि चंचल बच्‍ची उससे डेढ महीने बडी है। इसका अर्थ यह है कि उस चंचल बच्‍ची के जन्‍म के दौरान चंद्रमा की स्थिति मजबूत रही होगी। ज्‍योतिष की जानकारी न रखने वालों ने तो इतनी छोटी सी बात पर भी आजतक ध्‍यान न दिया होगा। क्‍या यह स्‍पष्‍ट अंतर पुराने जमाने के बच्‍चों में देखा जा सकता था ? कभी नहीं , आंगन के सारे बच्‍चे एक साथ उधम मचाते देखे जाते थे , कमजोर चंद्रमा के कारण बच्‍चे के मन में रहा भय भी दूसरों को खेलते कूदते देखकर समाप्‍त हो जाता था। मन में चल रही किसी बात को उसके क्रियाकलापों से नहीं समझा जा सकता था।
ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए शुभ मुहूर्त्‍तों में जेवर बनवाने के बाद हमने संगति की चर्चा की है। हमने कहा कि एक कमजोर ग्रह या कमजोर भाववाले व्यक्ति को मित्रता , संगति , व्यापार या विवाह वैसे लोगों से करनी चाहिए , जिनका वह ग्रह या वह भाव मजबूत हो। आज के युग में जब लोगों का संबंध गिने चुने लोगों से हो गया है , ग्रहों को समझने की अधिक आवश्‍यकता हो गयी है। प्राचीन काल में पूरे समाज से मेलजोल रखकर हम अपने गुणों और अवगुणों को अच्‍छी तरह समझने का प्रयास करते थे , हर प्रकार का समझौता करने को तैयार रहते थे। पर आज अपने विचार को ही प्रमुखता देते हैं और ऐसे ही विचारो वालों से दोसती करना पसंद करते हैं। यहां तक कि विवाह करने से पहले बातचीत करके सामनेवाले के स्‍वभाव को परख लेते हें , जबकि दो विपरीत स्‍वभाव हो और दोनो ओर से समझौता करने की आदत हो , तो व्‍यक्ति में संतुलन अधिक बनता है। पर अब हमें समझौता करना नागवार गुजरता है , अपनों से सही ढंग से तालमेल बना पाने वाले लोगों से ही संबंध बनाना पसंद करते हैं। ऐसी स्थिति में अपने और सामनेवालों के एक जैसे ग्रहों के प्रभाव से उनका संकुचित मानसिकता का बनना स्‍वाभाविक है।
इसके अलावे हमने ग्रहों के बुरे प्रभाव के लिए दान की चर्चा की है। हमलोग जब छोटे थे , तो हर त्‍यौहार या खास अवसरों पर नहाने के बाद दान किया करते थे। घर में जितने लोग थे , सबके नाम से सीधा निकला हुआ होता था। स्‍नान के बाद हमलोगों को उसे छूना होता था। दूसरे दिन गरीब ब्राह्मण आकर दान कए गए सारे अनाज को ले जाता था। वे लोग सचमुच गरीब होते थे। उन्‍हें कोई लालच भी नहीं होता था , जितना मिल जाता , उससे संतुष्‍ट हो जाया करते थे। हालांकि गृहस्‍थ के घरों से मिले इस सीधे के बदले उन्‍हें समाज के लिए ग्रंथो का अच्‍छी तरह अध्‍ययन मनन करना ही नहीं , नए नए सत्‍य को सामने लाना था , जिसे उन्‍होने सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के बिगडने के दौरान पीढीयों पूर्व ही छोड दिया था। पर फिर भी किसी गरीब को दान देकर हम अच्‍छी प्रवृत्ति विकसित कर ही लेते थे , साथ ही बुरे वक्‍त में मन का कष्‍ट भी दूर होता ही है।
आज हमलोग उतने सही जगह दान भी नहीं कर पाते हैं। हमारे यहां एक ब्राह्मण प्रतिदिन शाम को आरती के बाद वह थाल लेकर प्रत्‍येक दुकान में घूमा करता है , कम से कम भी तो उसकी थाली में हजार रूपए प्रतिदिन हो जाते हैं। सडक पर आते जाते मेरे सामने से वह गुजरता है , मुझसे भी चंद सिक्‍के की उम्‍मीद रखता है , पर मैं उसे नहीं देती , मेरे अपने पुरोहित जी बहुत गरीब हैं , उन्‍हे देना मेरी दृष्टि में अधिक उचित है। जिस शहर में प्रतिदिन 12 से 14 घंटे काम करने के बाद एक ग्रेज्‍युएट को भी प्रतिमाह मात्र 2000 रू मिलते हों , वहां इसे शाम के दो घंटे मे 1000 रू मिल जाते हैं , उसको दिया जानेवाला दान दान नहीं हो सकता , पर आज ऐसे ही लोगों को दान मिला करता है। किसी भी क्षेत्र में पात्रता का हिसाब ही समाप्‍त हो गया है , इस कारण तो हर व्‍यक्ति ग्रहों के विशेष दुष्‍प्रभाव में है।
पर इन सब बातों को समझने के लिए यह आवश्‍यक है कि पहले हमें ग्रहों के प्रभाव को स्‍वीकार करना होगा। जिस तरह ऊपर के उदाहरण से मैने स्‍पष्‍ट किया कि चंद्रमा से बच्‍चे का मन प्रभावित होता हैं , उसी तरह बुध से किशोर का अध्‍ययन , मंगल से युवाओं का कैरियर प्रभावित होता हैं और शुक्र से कन्‍याओं का वैवाहिक जीवन। इसी प्रकार बृहस्‍पति और शनि से वृद्धों का जीवन प्रभावित होता है , इसलिए इन सारे ग्रहों की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए संबंधित जगहों पर दान करना या मदद में खडे हो जाना उचित है। इसमें किसी तरह की शंका नहीं की जा सकती , सीधे स्‍वीकार कर लेना बेहतर है। कल अन्‍य उपाय यानि रंगों और पेड पौधों की वैज्ञानिकता पर बात की जाएगी !!

Posted By KanpurpatrikaWednesday, December 09, 2015

शमी वृक्ष (Prosopis spicigera) -साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व और औषधीय गुण

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शमी वृक्ष (Prosopis spicigera) -साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व और औषधीय गुण - 
पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं जिन पर शनि का प्रभाव होता है। कहते हैं कि इनकी पूजा से शनि प्रसन्न हो जाते हैं। पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है इसलिए इसे घर में नहीं लगाया जा सकता है। (पीपल के बारे में एक विसरित लेख दो भागों में हाल में ही लिखा गया है). ऐसे में शमी का पौधा ही घर में लगाकर शनि को प्रसन्न किया जा सकता है।
राजस्थान में शमी वृक्ष को 'खेजड़ी' के नाम से जाना जाता है। यह मूलतः रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है, जो थार मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। शमी के फूल छोटे पीताभ रंग के होते हैं। प्रौढ पत्तियों का रंग राख जैसा होता है, इसीलिए इसकी प्रजाति का नाम 'सिनरेरिया' रखा गया है अर्थात 'राख जैसा'।
विशेष रोचक जानकारी :
खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकडी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।
शमी वृक्ष में पाप खत्म करने की शक्ति होती है। किसी भी यज्ञ या शुभ कार्य के अनुष्ठान में शमी का पूजन व प्रयोग किया जाता है।
शमी के पंचांग से मिलेगी दोषों से मुक्ति :
शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास एक साथ होता है. यही वजह है कि समस्त यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग अत्यंत शुभ माना गया है. शमी के काँटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा के और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है, तो वहीं शमी के पंचांग यानि फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पायी जा सकती है.
वास्तु विज्ञान के अनुसार नियमित शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसो तेल का दीपक जलाएं तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है। नवरात्र में विजयादशमी के दिन शमी की पूजा करने से घर में धन दौलत का आगमन होता है।
शमी का पौधा नकारात्मक प्रभाव को दूर करता है। टोने-टोटके के कारण प्रगति में आने वाले अवरोध को भी शमी शमन करता है।
कथा के अनुसार कवि कालिदास ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या करके ही ज्ञान की प्राप्ति की थी।
शमी वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है। शनि देव को शान्त रखने के लिये भी शमी की पूजा की जाती है।
शमी को गणेश जी का भी प्रिय वृक्ष माना जाता है और इसकी पत्तियाँ गणेश जी की पूजा में भी चढ़ाई जाती हैं।
बिहार, झारखण्ड और आसपास के कई राज्यों में भी इस वृक्ष को पूजा जाता है। यह लगभग हर घर के दरवाज़े के दाहिनी ओर लगा देखा जा सकता है। किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन को शुभ मना जाता है।
शमी वृक्ष का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी पेड़ पर छुपाये थे, जिसमें अर्जुन का गांडीव धनुष भी था। कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी और उससे शक्ति और विजय प्राप्ति की कामना की थी। तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है। इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है।
शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥

अर्थात "हे शमी, आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं। आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले हैं और श्री राम को प्रिय हैं। जिस तरह श्री राम ने आपकी पूजा की मैं भी करता हूँ। मेरी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये।
कहते है एक आक के फूल को शिवजी पर चढ़ाना से सोने के दान के बराबर फल देता है , हज़ार आक के फूलों कि अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों के चढाने कि अपेक्षा एक बिल्व-पत्र से मिल जाता है | हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एकशमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तो के बराबर एक नीलकमल, हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।इसलिए भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए एक शमी का पुष्प चढ़ाएं क्योंकि यह फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है|
विशेष :
1 शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। उसे घर में रोपित कर नित्य उसका पूजन करें। ऐसा करने से गणेश जी आएंगे घर के आर और शनिदेव जाएंगे घर से पार।
2 भगवान गणेश को शमी अर्पित करते समय निम्न मंत्र का जाप करें -
त्वत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि वै।
शमी दलानि हेरम्ब गृहाण गणनायक।।
जाप के उपरांत मोदक और दुर्वा का भोग लगाएं और आरती करें।
3 शमी के पौधे की जड़ को काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। ऐसा करने से शनिदेव से संबंधित जीवन में जितने भी विकार हैं उनका शीघ्र ही निवारण होगा।
4 गणेश पूजन करते समय शमी के कुछ पत्ते गणेश जी को अर्पित करने से घर में धन एवं सुख की वृद्धि होती है।
औषधीय गुण :
यह कफनाशक ,मासिक धर्म की समस्याओं को दूर करने वाला और प्रसव पीड़ा का निवारण करने वाला पौधा है.

Posted By KanpurpatrikaWednesday, December 09, 2015