Thursday, April 15, 2021

नवरात्री के चतुर्थ दिवस आदि शक्ति माँ दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की उपासना विधि एवं समृद्धि पाने के उपाय

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*🍁नवरात्री के चतुर्थ दिवस आदि शक्ति माँ दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की उपासना विधि एवं समृद्धि पाने के उपाय*🚩
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*सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।*🍀
*दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥*🌻

*🏆माँ श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप कूष्मांडा हैं। अपनी मन्द हंसी से अपने उदर से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारंण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण से भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। जब सृष्टि नहीं थी और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था तब इन्होंने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। यह सृष्टि की आदिस्वरूपा हैं और आदिशक्ति भी। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। कुष्मांडा देवी के शरीर की चमक भी सूर्य के समान ही है कोई और देवी देवता इनके तेज और प्रभाव की बराबरी नहीं कर सकतें। माता कुष्मांडा तेज की देवी है इन्ही के तेज और प्रभाव से दसों दिशाओं को प्रकाश मिलता है। कहते हैं की सारे ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में जो तेज है वो देवी कुष्मांडा की देन है।*🌞

श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं। इस दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है, अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।

माँ कुष्मांडा पूजा विधि
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जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को ‘अनाहत’ में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए।

Posted By KanpurpatrikaThursday, April 15, 2021

सिद्धकुंजिकास्तोत्रम

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----:सिद्धकुंजिकास्तोत्रम:----
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स्वयं बाबा भोलेनाथ ने इस भूलोक में ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिए एक महाकुंजिका स्तोत्र की रचना अपने मुख से की थी। जो भक्त इस मंत्र को नित्य उनका ध्यान करके पढ़ेगा, उसे इस संसार में धन-धान्य, समृद्धि, सुख-शांति और निर्भय जीवन व्यतीत करने के समस्त साधन प्राप्त होंगे। यह एक गुप्त मंत्र है। इसके पाठ से भक्त के ऊपर किया हुआ समस्त व्यभिचार कर्म स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं | इसके पाठ से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की भी पूर्ति होती है। इसके पाठ से सम्पूर्ण दुर्गा शप्तशती के पाठ का फल प्राप्त होता है | यह मंत्र कुछ इस तरह हैः---

शिव उवाच--
शृणु देवी प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम |
येन मन्त्रप्रभावेण चंडीजापः शुभो भवेत || १ ||
न कवचं नार्गालास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम |
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम || २ ||
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत | 
अति गुह्यतरं देवी देवानापि दुर्लभम || ३||
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वती |
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम |
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम || ४ ||

अथ मन्त्रः --

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चमुण्डायै विच्चे।। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनी ।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी ।।
नमस्ते शुम्भहन्त्रयै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै, ह्रींकारी प्रतिपालिका।। ३ ||
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते ।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।।
धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरू ।।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम: ।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरू कुरू स्वाहा ।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।।म्लां म्लीं, म्लूं मूल विस्तीर्ण कुन्जिकाए नमो नमः
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरूष्व मे ।।
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे |
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वती ||
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।...

मनीष तिवारी बाबा

Posted By KanpurpatrikaThursday, April 15, 2021