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Tuesday, August 31, 2010

परिंदा

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परिंदा कैद पिंजरे में परिंदा फ़डफ़ाडाता पंख अपने हो दुखित वो सोचता टूट गए मेरे वो सपने चाहता था वो गगन में दूर तक विस्तार अपना भाग्य के हाथ का वो बन गया फिर से खिलौना वो परिंदा है तो जिन्दा है अंत अपना चाहता है लेके फिर से जन्म वो स्वछंद विचरण चाहता है http://www.hindudevotionalblog.com/search/label/Ganesha%20Mantras पथिक एक पथिक चड़ पड़ा निडर लेकर दृढ़ संकल्प नहीं पता ले जायेगा किस और समय का चक्र सहसा उसकी रहा में आया एक तूफान भ्रमित हुआ वो...

Posted By KanpurpatrikaTuesday, August 31, 2010