Friday, February 26, 2010

ये डर मुझे कब छोड़ेगा

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एक बार फिर से मुझे डर सताने लगा है वो भी तब जब मैं पडाइं छोड़ चूका हु और तब भी लगता था जब मैं पड़ता था ये डर मुझे कब छोड़ेगा .आप लोग सोच रहे होगे की डर क्यों लगता है हर साल फ़रवरी से लेकर अगस्त तक मैं डर में जीता और वो डर है बच्चो का मेरे अपने बच्चे नहीं है फिर भी मुझे उन बच्चो का डर लगता है जो की परीक्षा शुरु होने के समय से लेकर परिणाम आने तक डीपरेश्ण के चलते आत्महत्या कर लेते है /क्यों इसका जवाब हर कोई यही देगा की फेल होने के डर से लेकिन ये सही नहीं है ... क्योंकि जो पड़ता है वो खुद एसा नहीं करता पर फिर क्यों करते है वो आत्मा हत्या जवाब शायद खोजने में देर लगे पर सही यही है की उनके उपर इतनी आंपेक्षाये लाद दी जाती है की उनको समझ में नहीं आता की वो ? क्या करे मिश्र जी का लड़का हाइँस्कूल में प्रथम आया था और तुमें भी इस बार प्रथम आना है ,मुझे तुमे बडे होकर डाक्टर बनाना हैं सही से नम्बर आने चाहिये , तुम आफ़िस में मेरी बेज्जती करवाओगे क्या इसी तरह के तानो की वजह से माँ बाप बच्चो को तनाव दे देते है अपनी आंपेक्षाये इतनी ज्यादा लाद देते है और बच्चो से नहीं पूछते की उनकी क्या इच्छा है / और अपनों की इच्छा पूरी कर पाने के डर के चलते उनको सबसे सरल रास्ता आत्मा हत्या ही है और वो अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते है माँ बाप होने के नाते उनेह भी यह समझाना चहिये की बच्चे ऐसी नकारत्मक हरकत क्यों करते है ? गौतलब है की हर साल देश में ७० हज़ार लोग अपने आप ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते है जिमी ३५ % किशोर बच्चे होते है और इनमे भी लडकियों की संख्य ४५ % तक होती है जब की लडको की ५५ % तक यह एक खतरनाक सच्चाई है की आत्महत्या करने वालो में सबसे बड़ा वर्ग किशोरों का ही है लेकिन इससे भी ज्यादा गौर करने वाली बात यह है की आत्मा हत्या करने वाले किशोरो की वजहः उनके घरवलो की आंपेक्षाये पूरी कर पाना होता है /


बच्चे आम तौर पर तिन वजहों से आत्मा हत्या करते है ०१- करिएर .०२- परिक्षा में बेहतर अंक ०३-. प्रेम में असफलता है /


और ये तीनो कारन की वजह भी कही कही घर वाले ही होते है क्योकि की हर माँ बाप की यही इच्छा होती है की उसनका बेटा या बेटी दुसरे से बेहतर अंक लाये लेकिन ये सम्भव नहीं होता है और ज्यादा आंपेक्षा को पूरा करने के कारन वो पीछे रह जाते है / और माँ बाप उनसे सही से बात करना बंद कर देये है जिसे की वो तनाव ग्रस्त हो जाते है और एक ही रास्ता उन्हे नजर आता है आत्मा हत्या ..... कई सरे बच्चे असे भी होते है जो ४५-५०% तक सफल भी हो जाते है और फिर भी आत्महत्या कर लेते है वजह परिक्षा सुरु होने के पहेले या फिर परिक्षा खतम होने के बाद /


आगरा माँ बाप समझदारी से कम ले तो वो अपने बचो की नकारत्मक सोच को बदल सकते है और और उन्हे आत्मा हत्या करने से ओके सकते है सबसे ज्यादा ध्यान माँ बाप को इस समय ही देना चाहिए हम भले हियो माल्स कल्तुरे में जी रहे हो पर रिश्तो की हमियत को संमझना जरुरी है क्योकि मीठे रिश्तो की जरुर हर किसी को है

Posted By KanpurpatrikaFriday, February 26, 2010

Wednesday, February 24, 2010

छोटा होता कानपुर शहर

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छोटा होता कानपुर शहर



कानपुर जो की कभी प्रदेश की औद्योगिक नगरी के नाम से जाना जाता था लेकिन समय बदला और इस औद्योगिक शहर को लाल झंडे वाले और मतलबी नेताओ ने औंधे मुह गिरा दिया / साल बीते और शहर ने अपनी मजबूत नीव पर फिर से एक नई ईमारत बनाई / और नाम दिया उस इमारत को औद्योगिक की जगह शिक्षा का /आज कानपुर शहर शिक्षा के क्षेत्र में नित नये आयाम गड्ता जा रहा है और शिक्षा का हब बनता जा रहा है /


फिर क्यों यहाँ आने वाले लोग कहते है की कानपुर शहर छोटा होता जा रहा है
 कानपुर शहर एक महानगर है और 65 लाख की आबादी वाले और अपनी उम्र के करीब तीन सौ दस साल देख चुका यह शहर क्या छोटा है इसका जवाब "न" ही होगा फिर क्यों यहाँ आने वाले लोग कहते है की शहर छोटा हो रहा है ? कभी अंग्रेजो के राज्य में कोलकत्ता और मुंबई के बाद इस आद्योगिक शहर का नाम
आता था फिर क्यों आज वो बडे और अपना शहर छोटा होता जा रहा है क्या इस लिए की विश्व के सबसे गंदे प्रदूषित और बीमार लोगो का शहर है या फिर इसलिए की शहर की पवित्र पवन गंगा भी आज शहर से अपना मुह मोड़ चुकी है और शहर की हरियाली धीरे धीरे मिटती जा रही है या फिर इसलिए की शहर की बडे सड़के और फुट्पाथो पर कब्जे दर काबिज़ होते जा रहे है या फिर इसलिए की टेम्पो रिक्शे वाले और ढेले वाले बडे चौराहो को छोटा कर देते है / शायद जवाब हा में ही होंगा .......

क्योकि शहर की हर छोटे बडे चौराहो की बडे सड़के सिर्फ रात के अन्धेरे में ही नज़र आती है और सुबह सूर्य की रौशनी पड़ते पड़ते सिकुडने लगते है और रात का बड़ा शहर सुबह होते होते छोटा हो जाता है ..... और शायद इस लिए की 65 हज़ार से ज्यादा चार पहिया वहान 20 हज़ार बडे वहान और 04 लाख के करीब पहुच चुके चार पहिया वाहन शहर की बड़ी सडको को छोटा करने के लिए काफी है ....../
फिर क्यों नेता मंत्री और बडे अफसर इस बडे शहर के छोटे होते फूटपाथ और सडको में लगने वाले जाम में नहीं क्यों की उनके आवास लख्ननउ दिल्ली और नॉएडा जैसे बडे शहरो में है और यदि वो शहर आते भी है तो ट्राफिक के नियम और रूट उनके लिए बदल दिए जाते है और वो बडे आराम से फर्राटा भरकर उन सडको से निकल जाते है / इस लिए ही इस बडे शहर के छोटे होते स्वरूप पर उनकी नजर नहीं पड़ती ........./
छोटा होता शहर शायद मंच पर चड़कर कागज पर बने गई करोडो के प्रोजेक्ट को लाखो की जनता के सामने बखान करके और उन अनभिज्ञ लोगो के द्वार बजाई गई तालियों से खुश हो जाते है, ये नेता ! पर पर क्या कभी दर्द महसूस किया है उस इन्सान का जो की शहर की गन्दगी प्रदुषण और खस्ताहाल होती सडको में फस कर उसी माँ ( शहर ) को गाली देता है जिसकी कोख में (मिटटी) जन्म लिया है इसका जवाब हमेश में होगा और आकडे हजारो में की शहर में 15 हज़ार से ज्यादा लोग घातक बीमारी केंसर दमा और टीबी , मानसिक रोगों के चलते पिछले 0 से दस सालो में अपनी जिंदगी से हाथ धो चुके है / शायद वो लोग मेरी नज़र में सही है जो कहते है की शहर छोटा होता जा रहा है क्योकिं दिन के उजाले में शहर की सडको में खुशी खुशी कोई परदेशी जब शहर की बड़ी सडको के छोटे होते स्वरुप के कारन जाम में फ़सता है तो यही कहता है की पहले कैसे इन रहो में से 10-15 मिनट में अपने स्थान में पहुच जाते थे , और आज जाम में फस कर भी नहीं .....क्या शहर छोटा होता जा रहा है शहर की छोटी छोटीमारतो और हरे भरे पेडो की जगह आज मलटीपेल्कष प्लैटेस और माल्स ले चुके है लेकिन ये शहर की बाहर की सुन्दरता जरुर बडा रहे है पर कही कही उसकी वास्तविक सुन्दरता मिटाते जा रहे है ..........

शायद इस लिए ही ये बड़ा शहर कही न कही छोटा होता जा रहा है ............



Posted By KanpurpatrikaWednesday, February 24, 2010