
तेरी ख़ुश्बू का पता करती हैमुझ पे एहसान हवा करती हैशब की तन्हाई में अब तो अक्सरगुफ़्तगू तुझ से रहा करती हैदिल को उस राह पे चलना ही नहींजो मुझे तुझ से जुदा करती हैज़िन्दगी मेरी थी लेकिन अब तोतेरे कहने में रहा करती हैउस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँखदिल का एहवाल कहा करती हैबेनियाज़-ए-काफ़-ए-दरिया अन्गुश्तरेत पर नाम लिखा करती हैशाम पड़ते ही किसी शख़्स की यादकूचा-ए-जाँ में सदा करती हैमुझ से भी उस का है वैसा ही सुलूकहाल जो तेरा अन करती हैदुख हुआ करता है...