Tuesday, June 26, 2018

ये दुनिया वाले मजबूर खुब करते है ।

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मदद को बढ़ाओ हाथ तो हाथ काट लेते है।
दो कदम साथ चलो तो पैर खीच लेते है ।
ये दुनिया वाले मज़बूर बहुत करते है
मदद इंसानियत और मासूमियत इन्हें कांटे लगते है।
अपनो को जाल में फसा कर धोखा खुब करते है ।
ये दुनिया वाले मजबूर खुब करते है ।
जुबां से मीठा बोल दिल से वार करते है।
गले मिल कर पीठ पर छूरा घोपा करते हैं ।
ये दुनिया वाले मजबूर खुब करते है ।
मजबूरी हो कोई  ये कमाई खुब करते है ।
भगवान के आगे ये दुवाएँ भी क्या खूब करते है।
ये दुनिया वाले मजबूर खुब करते है ।

Posted By KanpurpatrikaTuesday, June 26, 2018

Wednesday, June 20, 2018

जिंदगी कुछ रूठ सी गई है

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Posted By KanpurpatrikaWednesday, June 20, 2018

अंजान मुसाफ़िर हु

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Posted By KanpurpatrikaWednesday, June 20, 2018

मेरे कफन में जेब न थी

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मेरे कफन में जेब न थी
ऐसा होगा जब नियत जिसकी खराब होगी
उसके कफन में जेब जरूर होगी
उसके कर्म और अधर्म जमीं पर दिखाई देंगे
क्योंकि उसका कफन मौत की गवाही देंगे 
ले जयेगा अपने साथ वो सब कुछ 
क्योंकि उसकी कमाई का इस धरती पर बोझ न होगा 
वो बंदिशे वो नफ़रतें वो जुल्म न होंगे 
क्योंकि उसका इस जमी पर कोई निशान न होगा 
न गम होगा न गमगीन कोई होगा 
क्योंकि अब हर बुरा इंशा जमीदोज होगा 
चले जाते थे जो मुस्कराते हुए उनकी चौखट पर 
उनकी इस मुस्कराहट का कोई चश्मदीद न होगा 
वो बस्तिया वो महल वो रजवाड़े
अब कोई न बचा पायेगा किसी बहाने 
खुश है हम कि ईमानदारी हमे विरासत में मिली
इसलिए ही हमारी जिंदगी दूसरों से ज्यादा चली 
हसरते हमारी भी थी राजे रजवाड़े की
लेकिन याद आती थी माँ बाप के मेहनतकश पख्वारो की 
न चीखती थी न चिल्लाती थी वो तो हर गम में मुस्कराती थी
उसकी नसीहते उसकी कहानिया और इबादते ही थी 
कि मेरे मरने के बाद मेरे कफन में जेब न थी 

Posted By KanpurpatrikaWednesday, June 20, 2018

Saturday, June 2, 2018

फिर में कौन हूं

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फुर्सत में सभी है समय किसी के पास नही है
पैसे सबके पास है लेकिन गरीब कोई नही है
फिर में कौन हूं
मंजिले सबके पास है पर सड़के कही नही है
अरमान सबके पास है लेकीन उम्मीदे नही है
फिर में कौन हूं
दिल सबके पास है पर अपनापन नही है
रिस्ते सबके पक्के है पर मुसीबत में कोई नही है
फिर में कौन हूं
गाड़िया सबके पास है पर जगह नही है
खुशिया सबके पास है पर खुद कोई नही है
फिर में कौन हूं
भगवान सबके घर मे है लेकिन आशीष नही है
हँसते सब है पर उदास कोई नही है
फिर में कौन हूं आशीष

Posted By KanpurpatrikaSaturday, June 02, 2018

मेरी मजबूरिया

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चाहे कोई भी मजबूरी हो
जिंदगी में कुछ घाव जरूरी हो
मुसीबत में कौन अपना था कौन पराया
या फिर  उसने खुशियो में ही अपना फर्ज निभाया
कुछ जरूरते व कुछ अरमान थे जरूरी
लेकिन उनकी कही बाते सुई से भी थी नुकीली
वो समय था वो किस्मत थी न हाथ मे लकीर थी
दोस्त भी थे अपने भी थे लेकिन किसी का आशीष न था
आशीष फकीरे

Posted By KanpurpatrikaSaturday, June 02, 2018