
मेरी जिंदगी
पूछती पगली पवन
आंचल उड़ा के
क्यों चली
कौन है साथी तुम्हारा
किसकी है ,तू मनचली
न कोई साथी है
मेरा न किसी की
है तलाश
क्योंकि मेरा
ये अकेलापन मेरे है
आसपास
अपने जज्बातों को
बयां करती हु मैं चाँद से
जिंदगी की राह में पूछती भगवान से
क्या मेरी जिंदगी पर तू तरस
न खायेगा
संघर्षमय जीवन में तन्हा ही
छोड़ जायेगा .....
क्यों मेरी दोस्ती का हाथ...