Sunday, December 8, 2019

राजनीति का खेल जारी है .........

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राजनीति का खेल जारी है ....

देश में दिनों दिन बढ़ती बलात्कार की घटनाओं ने आम आदमी से लेकर संसद तक, दुकान से लेकर मानव अधिकार का बाजा बजाने वाले, ऑर्डर-ऑर्डर से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तक, जनता से लेकर नेता तक, सब चीख रहे हैं। ऐसा लगता है यह देश नहीं किसी सब्जी मंडी का दृश्य है।
भंडारे में चढ़ी सब्जी और तेल में खोलती पूडिया को देख कर लोग उतावले हो रहे हैं और शोर मचाकर सभी भंडारे में बट रही खोलती पूडिया लेना चाहते हैं और बांटने वाले शांत हैं पुख्ता इंतजाम होने का दावा कर रहे हैं। खैर यहाँ पर खाओ पियो और मौज करो, कम पड़े तो और लो, की कहावत चरितार्थ कर हो रही है।
सुनने और बोलने में मैं भी शर्मिंदा हूँ। लेकिन क्या करूं राजनीति का खेल देखकर हैरान हूँ। जैसे क्रिकेट में बैटिंग करने वाले को 11 खिलाड़ी घेर लेते हैं। कभी ग़लत निर्णय भी अम्पायर के द्वारा हो जाते है। छक्का मारने वाला भी आउट होता है। यही राजनीति में भी होता है। सत्ताधारी कोई भी विपक्षी ही धरने पर बैठता है। सरकार को घेरेगा, मीडिया को घेरेगा, सजा, मुआवजा और गिरफ्तारी की मांग करेगा। लेकिन इससे होगा क्या नेता जी आप की दुकान थोड़ी  और अच्छी चल जाएगी बस इसलिए. घिन आती है ऐसी राजनीती पर!
क्या थोड़े दिन चिल्लायेंगे अखबारों मीडिया में सुर्खिया बनेगे और फिर ऐ-सी रूम में बैठकर आराम फरमाएंगे साहब है न।
रैलियों में भीड़ इकठ्ठा करके अपने विकास और अपने आन्दोलन का ढिंढोरा पीटेंगे। बजाओ ताली जनता। चलो फिर कुछ नया करते है ...
सत्ताधारी कोई हो, सरकार किसी की हो चिंता हमेशा विपक्ष को ही होती है। अरे नेता जी अगर चिंता जनता की है तो उन बहू बेटियों को जब जलाया गया, तब उस जलती आग में राजनीतिक रोटियाँ सेकने आ गए आप। कभी अपनी भी आग जलाइये नेता जी फिर राजनीति करिए, फिर देखे जनता भी मौज करेगी। तकलीफ आपको भी होगी नेता जी|
जिसकी चीख निकल रही थी। जब वह रो रही थी। जिसके दामन पर कोई हाथ डाल रहा था। जब वह न्याय के लिए दर-दर भटक रही थी, तो आप क्या कर रहे थे नेताजी, पेपर तो पढ़ते ही होंगे टी वी भी देखते होंगे, सोशल मीडिया में उसके फरियाद के वीडियो भी देखे होंगे। तब शांत क्यों थे, क्या आपको उसके जलने जलाने का मुहूर्त निकलवा रहे थे। मौका तलाश रहे थे रोटियाँ सेकने के लिए साहब। मुआवजा तो जनता भी दे देगी। लेकिन आप क्या करोगे। जब वह फरियादी दर-दर भटकता है। तो पक्ष में हो या विपक्ष में नेताजी मुह घुमा लेते है। समाज ठेकेदार भीड़ तभी इक्कठा करेंगे जब मामला गर्म होता है क्योंकि रोटी तभी सिकती है जब तवा गर्म होगा। ना जाने कितनी जल चुकी है और न जाने कितनी जलने और जलाने पर विवश होगी। जनता और विपक्ष कानून को सख्त कर दो के नारे तो लगाता है पर लेकिनचौराहे पर हेलमेट न लगाने पर नेता जी को फ़ोन भी तो हम ही करते है। अभी राजनीति का खेल जारी है अफसोस की फ़िल्म अभी बाकी है।
पंडित आशीष त्रिपाठी
लेखक व ज्योतिषाचार्य

Posted By KanpurpatrikaSunday, December 08, 2019

रक्त सम्बन्ध और मृत आत्माए भाग 4 ....

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रक्त सम्बन्ध और मृत आत्माए  भाग 4  ....


लेकिन मेरे मन के हवन कुण्ड में आत्माओ से सम्बंधित प्रश्न अभी भी प्रज्वलित थे |रात के अधेरे रूपी धुवें के आगोश में वो समां नहीं रहे थे| और मेरे कई प्रश्न  मुझे परेशां कर रहे थे| की सच में यह संभवं है क्या | सच में आत्माए किसी के शरीर में प्रवेश कर जाती है| एक शरीर में एक आत्मा के होते हुए भी दूसरी आत्मा कैसे प्रवेश कर सकती है|  फिर कोई घर का सदस्य मृत्यु के बाद किसी को क्यों परेशान करेगा| जिनके साथ रह रहा हो ,प्यार किया हो, वो अचानक मरने के बाद कैसे किसी को परेशान करेगा| यह सोचते ही मुझे किसी के कमरे में होने का एहसास होता है | मैं कुछ डरा हुआ सा था मेरी आंखे कमरे के चारो कोने में किसी के होने के उस आभास को बराबर अपने नजरो से देखना चाह रही थी| लेकिन उसका आभास मात्र था, की जैसे कोई कमरे में प्रवेश किया हो लेकिन नज़र कोई नहीं आ रहा था| तभी अचानक मेरी अलमारी से किताबें अचानक गिर पड़ती है और मैं अचम्भे से चौक जाता हूँ |अभी यह डर ख़त्म भी नहीं हुआ था की अचानक से कमरे में लगी खिड़कियाँ भी खुल जाती है | मेरा डर लगातार बढता जा रहा था| मेर्री नज़रे दीवारों की हर जगह बार बार घुमती हुई उस अद्रश्य आत्मा को dhundh ढूंड रही थी की वो कब कहा पर क्या कर दे| उसके होने और न होने के बीच का अंतर मैं समझ नहीं पा रहा था| मेरी धड़कन लगातार बढती जा रही थी | तभी मेरी चादर को कोई धीरे धीरे खीच रहा था| ऐसा मुझे लगा और मैं चादर अपनी और खीच रहा था | मैं चादर को पूरी ताकत से अपनी ओर खीचने  का प्रयास कर रहा था| लेकिन कोई था जो मुझे से भी ज्यादा बलशाली था| और वो चादर खीच लेता है और मेरे चेहरे पर अचानक से ही किसी ने पानी डाल  दिया और मैं डर के साथ हडबडा कर उठ गया था ,सामने मेरी माँ खड़ी थी | और मेरी दिल की धड़कन तेज़ थी और मैं अभी भी उस आत्मा के होने का एहसास कर पा रहा था| मेरा शरीर पूरी तरह से पसीने और फेक गए पानी से भीग चूका था| तभी माँ ने पूछा रोनित तू इतना हाफ क्यों रहा था, क्या हुआ तुझे| मैं अभी भी शांत था |और यह नहीं समझ पा रहा था की मैं सपने में था या फिर जाग्रत अवस्था में मुझे यह एहसास हो चूका था की मैं रात में सोचते सोचते पता नहीं कब सपनो की रहस्यमई दुनिया में खो कर सो चूका था ,पता ही नहीं चला | तभी मेरी माँ ने मुझे जोर से हिलाते ही कहा  ,कहाँ सोच रहा है सुबह के १२ बज चुके है ,तू अभी तक सो ही रहा है | तेरे दादा जी और पापा जी कब का ऑफिस जा चुके है| जल्द से उठ जा और चाय पी ले| मैं अब नहा धोकर पूरी तरह तैयार हो चूका था | चुपचाप उस नींद या जागते हुए सपने के रहस्य के बारे में सोच रहा था और लगातार मेरी सोच उस सपने या हकीकत के अंतर का पता लगाने में जूझ  रहा था | और मैं उस उधेड़ बुन में बाज़ार जा कर रहस्य आत्माओ को ज्यादा जानने के लिए बाज़ार से कुछ किताबे भी ले आया| इन सब बातों में पता  नहीं कब ढलते सूर्य को अंधेर ने अपने आगोश में ले लिया था और मैं उस रात का फिर से इंतज़ार करने लगा ....
अगले अंक में पड़े  की उस आत्मा और उस घर को बेचने के पीछे क्या रहस्य था और क्या रोनित की उन आत्माओ के रहस्य के बारे में जान पता है की नहीं  |
किजिए मेरी अगली पोस्ट का इंतज़ार .......🙏🙏🙏






Posted By KanpurpatrikaSunday, December 08, 2019