Wednesday, February 2, 2011

प्यार का अंत ....

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प्यार का अंत ....(एक सच्ची घटना )

हम दोनों बड़े ही खुश थे क्योंकि अपनी बहनों से इस रक्षा बंधन में राखी जो बंधवाते, मन ही मन दोनों भाई खुश होते और कई तरह की बाते करते थे , दीदी कितना प्यार करती हमे कैसे हमारे छोटे हाथो में राखी बांधती कैसे हमारे छोटे से माथे पर तिलक करती कैसे मिठाई खिलाती ... हम दोनों जुड़वाँ है और शायद दीदी को परेशान भी करते की दीदी ने किसे पहले राखी बांधी थी कैसे पहचानती वो कैसे ... खूब मस्ती होती हमारे बीच लेकिन अभी हमारे परिवार में किसी को प़ता ही नहीं था की हम दोनों भाई आने वाले है और हमे तो प़ता था की कब हम इस धरती पर जन्म लेंगे कैसे हमारे परिवार की खुशिया बड़ जाएँगी ..हम दोनों अन्दर ही अन्दर लडते भी थे की कौन पहले जायेगा इस दुनिया में लेकिन समझ भी जाते थे की हमे तो पाता होगा लेकिन बाकि कोई नहीं पहचान पायेगा ..
उधर माँ और पिता जी और दादी बाबा सभी खुश थे की अब दो बहनो में एक भाई आने वाला है इस कुल को बढ़ाने वाला आने वाला है ..लेकिन उन्हे ये नहीं पाता था की हम दो आ रहे है जो की पहले हमारे खानदान में नहीं हुआ क्योंकि हमारे परिवार में बापू भी एक लौते थे और बाबा भी लेकिन हम दो आक़र सबकी खुशिया दोगुनी कर देंगे ...सभी ने बड़े अरमान पाल रखे थे ..सभी की मुरादे पूरी होने को है कहते है न की ईश्वर इस दुनिया में सब कुछ कर सकता है ..अगर आप सच्चे मन से भगवान से कुछ भी मांगोगे तो वो जरुर देगा ,.
हमारे परिवार में सभी ये सोचते थे की भगवान एक लड़का दे दो बस क्योंकि इस वंश लो चलाने वाला आ जाय बस ....
क्योंकि अगर इस बार नहीं हुआ तो क्या हमारे वंश का चिराग बुझ जायेगा, नहीं ...लेकिन हम एक सवाल पूछते है की लडकिया क्योँ नहीं अपने वंश का नाम आगे बड़ा सकती है जब लडकिया चाँद पर जा सकती है देश चला सकती है तो फिर वंश का नाम आगे क्योँ नहीं बड़ा सकती क्योँ ? क्या हम 21 शदी में आकर हर चीज़ में महिलओं की भागीदारी का लोहा मान रहे लेकिन एक वंश को चलाने के लिए आज भी एक लडके की ही क्योँ जरुरत होती है बदलनी होगी हमे अपनी सोच ...
लेकिन ये क्या हुआ हमारी सोच को हमारी खुशियों को ये किसकी नज़र लग गई ...क्या जो हमारे साथ ऐसा हुआ क्या हमारी बहने जिंदगी भर अपने भाईयों के हाथ में राखी नहीं बांध पाएंगी , और तरसते रहंगे मेरे माँ और बापू क्योँ...?
और क्या जिंदगी भर माँ को कोसा जाता रहेगा की वो एक लडके को जन्म न दे पाई क्योँ ऐसा क्या हुआ ?
आखिर क्योँ इन्सान भगवान पर विश्वास रखते हुए भी इन इंसानों की बातो में विश्वास कर लेता है..क्योँ किसी पंडित की बातो पर आकर लोग अन्धिविश्वास में अंधे हो जाते है ..क्योँ नहीं मानते की इन्सान कितना भी तरक्की कर ले लेकिन भगवान से आगे नहीं निकल सकता ..आखिर किसी और की बातो में आकर माँ बापू ने हमारे साथ अन्याय क्योँ किया ?
क्योँ ईश्वर भी हमारे माँ और बापू की खुशियों से चीड़ गया क्योँ ?
लेकिन भगवान को भी तो समझना चाहिए की उनके इस श्राप से कितने लोगो को पीड़ा पहुचेगी ...

आखिर आप लोग भी जानना चाहते है न की आखिर ऐसा हमारे साथ क्या हुआ ...
मेरे माँ बापू बाबा दादी सभी ने ( हमारे गर्भ में आने के ) एक से दो महीने बाद इस आधुनिक युग में शामिल होकर हमारा अंत करवा दिया हम जुड़वाँ भाइयो को मार दिया ? हा दोनों जुड़वाँ भाइयो की भ्रूण हत्या कर दी गए दो लडको की भूर्ण हत्या....सुनने में शायद विश्वाश न हो या पडने में सोचे की लिखने वाले ने कोई गलती कर दी है लेकिन नहीं ये सच है की दो जुड़वाँ लडको की भूर्ण हत्या ... मैं एक बात और बता दू ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं है न किसी की सोच है न कोई लेख है ये कानपुर शहर की एक सच्ची घटना है जो अखबारों की शुर्खिया नहीं बन पाई न ही टी. वी. चैनेल्स की ब्रेकिंग न्यूज़ क्योँ क्योंकि ...
क्योंकि माँ और बापू ने सभी के कहने पर अल्ट्रासाउंड करवाकर पाता लगने की कोशिश की क्या ये लडके है या फिर लड़की ..लेकिन भगवान स्वरुप माने जाने वाले डाक्टर ने माँ और बापू को दो लडकिया होने की जानकारी होने की बात बता कर चौंका दिया ... और बापू ने और परिवार के सभी सदस्यों ने कहा की दो लडकिया है और अगर दो और हो गई तो क्या करोगे ये सब बाते सोच कर सभी ने भूर्ण हत्या करने की सोच ली और जुड़वाँ भाइयो का अंत कर दिया गया ..और हम अपनी बहनो से मिले बिना ही बिछुड़ गए ....
लेकिन तश्वीर का दूसरा पहलू भी देखिये की जब भूर्ण को निकाला गया तो सभी देख कर सकते में आ गए की ये हमने क्या किया क्या भगवान ने या फिर डाक्टर ने हमारे साथ मजाक किया है आखिर किन कर्मो की सज़ा हमे मिल रही है ... सोचिये उस माँ का हाल जो की ये जान कर की वो दो लडकियों को नहीं बल्कि दो जुड़वाँ लडको को जन्म देनी जा रही थी क्या हुआ होगा उसका हाल मत पूछिए ...... मैं जब भी ये बात सोचता हु तो मुझको रोना आ जाता है.....

Posted By KanpurpatrikaWednesday, February 02, 2011