Tuesday, November 11, 2014

नई राहे

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नई राहे

न अमीरों को सताता हु
न गरीबो को रुलाता हु
मैं तो अपनी मंजिल की राहे खुद ही पाता हु
जब निकलता हु यादो की राहों पर
तो बेवफ़ाओ को पाता हु
आँखों ही आँखों में इज़हार हो जाता था
मगर लफ्जों के निकलते ही बेवफ़ा हो जाता था
देखता था जब भी मैं चाँद को
तो मुझको वो हमेशा बेदाग नज़र आता था
लाख नुख्स थे मेरी प्यार की राहों में
पर कमी न थी मेरे चाहने वालो की
जब देखता था चांदनी रात में आसमान को
तो एक नहीं कई चाँद नज़र आते थे
जो मेरी यांदो के सहारे जमीं पर उतर आते थे
लोग लाख वेवफ़ा मुझे कहे
लेकिन हर बार प्यार की नई राहे मैं ही तो ढूंढ पाता हु

Posted By KanpurpatrikaTuesday, November 11, 2014