Tuesday, November 29, 2011

और प्यार अँधा हो गया ......

और प्यार अँधा हो गया ......

आज फिर वही हुआ जो हमेशा मेरे साथ होता आ रहा था आखिर इस में मेरा क्या कसूर है की मेरा एक ओर का चेहरा जला हुआ है...आज भी मुझे याद है वो मनहूस दिन जिस दिन से मैं मनहूस हो गया था मैं माँ की गोद में बैठा था और माँ रोटिया सेक रही थी और और साथ मैं खेलता भी जा रहा था और माँ खाना बनाने में मग्न थी तब ही अचानक मैं माँ की गोद से गिरा और जल रही आग में गिर पड़ा /गनीमत ये थी की माँ उस समय रोटिया ही सेक रही थी वरना कुछ और होता तो शायद मेरा पूरा शरीर ही जल गया होता .../माँ ने तुरंत ही मुझे उठाया और सहलाया और गले से लगाया , तुरंत ही बापू को आवाज़ लगाई और सभी मुझे ले कर डाक्टर के पास चल दिए ..काफी जलन हो रही थी मुझे सो मैं चिल्ला चिला के रो रहा था और साथ में माँ भी सभी को फिक्र थी मेरी / काफी समय बीतने के बाद मैं ठीक तो हो गया लेकिन वो घटना मेरे चेहरे पर हमेशा के लिए अंकित हो गई ../
अब बताय मेरा दोष क्या था इन सब के पीछे जो आज कोई मुझे दिल जला कोई मुह जला और कोई मनहूस कहता है कभी कोई कहता है की सुबह सुबह सामने मत आया करो पूरा दिन ख़राब हो जाता है , कभी कोई मेरे पूरे अस्तित्व को ही मनहूस कह देता है यानि मेरा जन्म ही मनहूस घडी में हुआ था बचपन से सालो साल ये बाते सुनता चला आ रहा था /आदत सी पड़ गई थी लेकिन फिर भी पता नहीं क्योँ बाते सुनने के बात उदास सा हो जाता था और अपनी उदासी मिटाने के लिए समुद्र के किनारे चला जाता था /आज अचानक ही बैठे -बैठे कुछ गुनगुनाने लगा था तभी मेरे कानो में किसी के हसने की आवाज़ सुनाई पड़ी लगा आज कोई मेरी आवाज़ पर हँसा अभी तक तो लोग मेरे जले चेहरे पर ही हस्ते थे लेकिन आज आवाज़ पर भी ?
देखा तो कुछ दूर पर एक गोरी और आकर्षक व्यकित्व की लड़की बैठी थी जो जितना अच्छा लिबाज़ पहने थी उतनी ही आकर्षक लग रही थी उसकी हसी / मैने उसकी ओर गुस्से से देखा की उसने मेरी आवाज़ पर क्योँ हँसा लेकिन वो अभी भी मेरी ओर देख कर हसी जा रही थी साथ बैठी उसकी सहेली उसको शांत करा रही थी लेकिन वो मुह में हाथ रख कर हसी जा रही थी /मैने अपना मुह उसकी ओर से घुमा लिया और हाथो में कंकड़ लेकर फिर से समुद्र की ओर फेकने लगा लेकिन उसका आकर्षक व्यकित्व बार बार मेरे आखो के सामने आ रहा था और मैं चोरी छुपे उसको देखू तो उसकी नजरे मेरी ओर ही थी और मैं फिर समुद्र की ओर देखने लगू/आज पता नहीं मेरे अन्दर वो गुस्सा नहीं था जो किसी के मेरे ऊपर हसने के बाद आता था /शायद उसकी हसी और व्यकित्व में कुछ ऐसा था जो गुस्सा नहीं आ रहा था और उसको देखने की इच्छा बार बार हो रही थी /ज्यो ही मैं उसकी ओर देखू उसकी नजरे मुझे से मिल जाती और मैं घबराकर फिर से समुद्र की ओर देखने लगू एक दार भी था मेरे अन्दर क्योंकि उसकी सहेली अनजानी निगाहों से मेरे ओर देख जो रही थी /और काफी देर ऐसा होने के बाद दोनों चल दी और जाते जाते भी वो मुस्करा रही थी और पलट पलट कर मेरे ओर देखे जा रही थी और जाते जाते उसने हाथ हिला कर बाय किया और कल फिर मिलेंगे ऐसा कहा /अब मैं पशोपश में था की क्या उसका बार बार मुड मुड कर देखना मेरे लिए था या किसी और के लिए और जाते वक्त उसका बाय और कल मिलेंगे ऐसा कहना क्या था क्या कोई मुझे भी पसंद कर सकता है यही सोचते सोचते रात भर जाग कर रात काटता रहा और पता नहीं कब सो भी गया ..
और सुबह सुबह एक कड़कती आवाज़ के साथ " अब क्या पुरे दिन सोने का विचार है या कुछ घर का काम भी करोगे चलो उठो और बाज़ार जा कर सब्जी लाओ ..तुझे तो बस बैठे बैठे खाने को चहिये कही नौकरी भी नहीं मिलती इस मनहूस को " ये आवाज़ मेरे पिता जी की थी बचपन में बहूत प्यार करते थे मुझे लेकिन मेरे जलने और दुसरे भाई बहनों के होने के बाद से मैं उनके लिए मनहूस की श्रेणी में आ गया था /फिर कहे गए शब्द पता नहीं क्योँ उतने बुरे नहीं लगे जितना हमेशा लगे और मैं फिर से उस लड़की की हसी और उसके व्यक्तित्व के बारे में सोचने लगा और सारी सब्जी खरीदने के बाद वापस घर की ओर चल दिया तभी वही आवाज़ जो मैने कल समुन्दर के किनारे सुनी थी एक बार फिर से मेरे कानो के पास से होकर गुज़र गई मुझे लगा शायद मैं सोच रहा हु शायद इसलिए ही ऐसा हो सकता है लेकिन मन नहीं माना और जिस ओर से आवाज़ आई थी मैने उस ओर मुड गया और देखा की एक बिल्डिंग से वो आवाज़ आ रही थी लेकिन ये क्या था ये तो वही कल वाली लड़की थी मैं उसको फिर से निहारने लगा / वो नीचे खडे व्यक्ति को आवाज़ दे रही थी लेकिन उसकी निगाहें कही और थी वो व्यक्ति शायद उसका भाई था / तभी पीछे से एक महिला शायद उसकी माँ थी ने जोर दार डाट के साथ उस व्यक्ति को बुलाया और वो दोनों अन्दर चली गई मैं यु ही ये सब देख रहा था की अचानक गाडियों की ब्रेक की आवाज़ के साथ मैं चौक गया " देख कर नहीं चलते हो क्या अंधे कही के मैने ध्यान नहीं दिया था चलते चलते मैं बीच रास्ते में पहुच गया था मैं जल्दी से किनारे हुआ और अपने घर की ओर चल दिया लेकिन पीछे उस बिल्डिंग को ओर भी देखता जा रहा था /
मैं थोड़ी ही देर में अपने घर पहुच गया और पिता जी मेरा दरवाजे पर ही इंतज़ार कर रहे थे /और उन्होने एक बार फिर से अपनी कडकती आवाज़ से मेरा स्वागत किया " क्या बाज़ार में ही सो गया था या फिर कही घुमने निकल गया था जा जल्दी माँ इंतज़ार कर रही है " और मैं सर झुका कर सीधे अन्दर चला गया /
सभी ने खाना खाने के बाद रोज़ की तरह ही मुझे बाद में खाना मिला और मैं खाना खाने के बाद चारपाई पर लेट कर शाम होने क इन्तेज़ार उसके ख्यालो में खो कर करने लगा / रोज़ की तरह ही मैं आज जल्दी ही समुद्र किनारे पहुच गया / और उसका इंतज़ार करने लगा .. समय बीतता जा रहा था लेकिन वो अभी नहीं आई थी शायद ये मेरा जल्दी आना था या उससे मिलने की बेकरारी जो मैं इतना बैचेन था /इंतज़ार करते करते शाम भी हो गई और धीरे धीरे समुन्दर के दुसरे किनारे पर सूर्य भी डूब चुका था और मैं अकले बैठे उसका इंतज़ार कर रहा था/ मन को लगा की ये क्या था जो मैं किसी का इंतज़ार रात में कर रहा था शाम को भी उसके इंतज़ार में बैठा रहा आखिर क्योँ मैं किसी का इंतज़ार करने लगा क्या इसलिए की मुझे उसका आकर्षक व्यकित्व उसकी हसी अच्छी लगने लगी थी / या उसने आज शाम को मिलने का वादा किया था इसलिए लेकिन दोनों ही बातो का कोई ठोस आधार नहीं समझ में रहा था / ऐसी कोई भी अच्छा लगेगा और मैं इंतज़ार करूँगा या कोई किसी को वादा करे और मैं अपना वादा समझ कर उसका इंतज़ार करू नहीं / लेकिन एक ओर समुन्दर में बैठे बैठे कल की बात सोचता जा रहा था और हरपल यही निकल कर रहा था की मेरे से कोई धोखा नहीं हुआ वो मुझे ही तो देख रही थी और कोई आस पास था जाते वख्त भी उसकी नजरे मेरे ओर ही थी ये धोखा नहीं था फिर क्या उसने जान बुझ कर धोखा दिया क्या मैं एक बार फिर एक बड़े मजाक का हिस्सा बन गया / रात बहुत हो चुकी थी और मैं यही सोचते सोचते घर की ओर चल दिया पता नहीं क्योँ आज पहली बार कुछ अजीब सा लग रहा था सब कुछ होते हुए भी कुछ खोया सा लग रहा था ढगा हुआ सा महसूस कर रहा था यही सोचते सोचते मैं घर पहुच गया और घर पर पहुचते ही पिताजी की डाट से सामना हुआ और माँ ने चुपचाप अन्दर बुला कर पूछा कहा था इतनी देर तक क्या सुबह पिता जी की बात बुरी लग गई थी मैने कहा मा ऐसा कुछ भी नहीं था बस यु ही , माँ ने खाना दिया और मैं खाना खा कर सो गया / लेकिन उस रात नींद भी कोसो दूर थी आखे बंद करने पर भी उसका चेहरा और खुली आँखों पर उसका विचार रहा था / तभी मन ने कहा की तुम पागल हो गए हो क्या तुम भूल गए क्या लोग तुम्हे पसंद नहीं करते और क्योँ नहीं करते ये भी तुम्हे अच्छे पाता है / यहाँ यहाँ तक की तुम्हारे अपने भी तुम्हे मनहूस कहते है फिर एक अनजानी लड़की तुम्हे पसंद करेगी ये कैसे सोच लिया तुमने अपने आप से ? क्या मैं सपना देख रहा था अचानक ही मैं उठ कर बैठ गया ये कौन सी दुनिया में मैं जीने लगा था क्या वाकई मैं किसी को पसंद करने लगा पर क्योँ क्या खास है मुझमे ? यही सोचते सोचते मैं आज रात सो सका और सुबह सबसे पहले उठ गया और घर काकाम भी आज समय से निपटा दिया था /
दुसरे दिन भी चाह कर भी उसके घर की ओर कदम बढ गए और उस बिल्डिंग की ओर निगहा बरबस ही चली गई दूर खडे हो कर देर तक निहारता रहा लेकिन उस बालकनी पर भी कोई आया और मायूस मन से घर वापस गया और सोचने लगा शायद शाम को समुद्र पर मिलने आये / शाम को भी मैं आज फिर जल्दी ही पहुच गया था लेकिन वहा पर भी इंतज़ार करते करते बैचन बैठा रहा लेकिन वो नहीं आई ऐसा करना अब रोज़ की आदत सी बन गई थी लेकिन मन मेरा मानता ही था बस एक बार उसकी एक झलक पाने को बेक़रार था ...
क्रमशः

अगले अंक में पडे की किस तरह वो मनहूस एक गायक बन गया......








Posted By KanpurpatrikaTuesday, November 29, 2011