Thursday, December 3, 2015

त्रिक भावों में ग्रहों का फल एवं उपाय

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त्रिक भावों में ग्रहों का फल एवं उपाय
भारतीय ज्योतिष में त्रिक भाव अर्थात्- छठे, आठवें और बारहवें भावों को बुरे फल की श्रेणी में रखा गया है। छठा घर झगड़े, मुकदमे, ऋण, बीमारी का घर तो अष्टम भाव मौत का घर, पाताल के अंधेरे का, तो द्वादश भाव व्यय का, मोक्ष का और खुले आकाश का भी होता है। इन त्रिक भावों में स्थित ग्रहों की भेद भरी गाथा है। छठा भाव छठे भाव को उपचयभाव भी कहा जाता है। उपचय का अर्थ है गतिशील। छठे घर में स्थित ग्रह का शुभ या अशुभ प्रभाव बहुत तेज रफ्तार के साथ होता है। यह भाव मनुष्य के मानसिक संताप, दुश्मनी, बीमारी, ननिहाल परिवार, नौकरी, रखैल, भूतबाधा, कर्ज़ और फौजदारी मुकदमे का कारक है। छठे घर में स्थित विभिन्न ग्रहों का फल लाल किताब के अनुसार इस प्रकार होता है। बुध काल पुरूष की कुंडली के अनुसार छठे भाव में स्थित बुध अपने पक्के घर में होता है तथा छठे घर का कारक भी होता है। इससे बुध को दोहरी शक्ति मिल जाती है। ऐसा व्यक्ति अपनी मीठी वाणी से सबको प्रभावित करता है। छठे घर के बुध होने पर यदि दूसरे घर में अशुभ मंगल हो और बृहस्पति भी कुंडली में बहुत अच्छा न हो तो हकलाने या गूंगेपन की संभावना हो सकती है। इसके लिए अच्छा उपाय यह है कि घर में मैना पक्षी पाला जाए जो शुभ बुध का कारक है। छठे घर का बुध दिमागी मेहनत के लिए ठीक है, शारीरिक मेहनत के लिए नहीं। इस घर का बुध छुपा हुआ योगी होता है। उसकी वाणी से निकली दुआ या बद्दुआ दोनों पूरी हो जाती है। उपाय मिट्टी का बर्तन (छोटा सा घड़ा) दूध से भरकर किसी वीरान जगह पर दबाएँ। बारिश का पानी शीशे की बोतल में भरकर शीशे के ढक्कन से बंद कर किसी खेती की जमीन में दबा दें। बृहस्पति छठे घर का गुरू व्यक्ति को आर्थिक तंगी नहीं देता। यह इंसान को आलसी बना देता है। इस घर का गुरू शारीरिक रूप से कुछ कमजोर रखता है। जिगर का बढ़ना, शुगर की शिकायत होना इस घर के निम्न बृहस्पति की आम बीमारियाँ है। छठे भाव में स्थित गुरू की सातवीं दृष्टि बारहवें घर पर पड़ती है, खर्च वाले घर पर इसलिए ऐसा व्यक्ति फिज़ूलखर्च भी हो जाता है। बुध के पक्के घर में आकर गुरू ऐसा जान पड़ता है जैसे किसी ऊँची पद्वी वाले व्यक्ति को छोटे पद पर काम करना पड़े। उपाय किसी से दान दक्षिणा न लें। किसी पुजारी को कपड़े दान करने चाहिए। चने की दाल छः दिन लगातार किसी धर्म स्थान में दें। शुक्र शुक्र ग्रह स्त्री कारक है। ऐसा शुक्र स्त्रियों की तरफ से विरोध पैदा करता है। छठे भाव में शुक्र होने पर कोई भी प्रेम सम्बन्ध शादी तक नहीं पहुँचता। छठे घर के शुक्र होने पर लोग अचानक से अपना व्यवसाय परिवर्तन भी कर लेते हैं फिर भी उनकी आमदनी बढ़ती जाती है। ऐसा शुक्र सूर्य की दृष्टि या सूर्य का साथ होने पर पत्नी की सेहत के लिए बुरा फल देने लगता है। जब शुक्र अपना बुरा फल दे तो उसका पहला संकेत यह होता है कि दायें तथा बायें हाथ का अंगूठा बिना किसी चोट या जख्म दर्द करने लगता है। कुछ ग्रंथों में ऐसे शुक्र को संतान की पैदाइश में बाधक माना गया है। उपाय कभी नंगे पाँव न चलें और पत्नी को भी न चलने दें। अपनी पोशाक को साफ सुथरा रखें। छः शुक्रवार सफेद पत्थर पर चंदन का तिलक लगाकर बहते पानी में बहा दें। छः कन्याओं को छः दिन लगातार दूध मिश्री दें।





होरा कुंडली :- 15  अंश की एक होरा होती है और एक राशि 30 अंश की होती है / अतः एक राशि में दो होरा होती है / विषम राशि में 1 ,3 , 5 ,7 ,9 , 11 ,में 0 से 15 अंश तक प्रारंभ से सूर्य की होरा होती है / 16 अंश से 30 अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है /
0 अंश से 15 अंश तक 1 ,3 , 5 ,7 ,9 , 11
16 अंश से 30 अंश तक 2 ,4 ,6 ,8 ,10  ,12.
सम  राशियों में प्रारंभ से 15 अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है बाद में 15 से 30 अंश तक सूर्य की होरा होती है /
धन की स्थित देखने के लिए होरा कुंडली का इस्तेमाल करते है
द्रेष्कान कुंडली :-
इस कुंडली से जातक के छोटे व बडे भाई बहनों का सहयोग या सुख का विचार किया जाता है /द्रेष्कान कुंडली में लग्न का स्वामी यदि ट्रिक भाव में पीड़ित हो और लग्न कुंडली में तृतीय भाव का स्वामी भी ६८१२ भाव में हो तो जातक को भाई बहनों का सुख प्राप्त नहीं होता है अथवा उनसे दुखी रहता है /
सप्तमांश कुंडली :- सप्तमांश कुंडली के द्वारा जातक की संतान का विचार किया जाता है /
1 सप्तमांश कुंडली का लग्नेश यदि पुरुष गृह सूर्य मंगल गुरु हो तो जातक को पुत्र का सुख अच्छा प्राप्त होता है /
2 यदि सप्तमांश कुंडली का लग्नेश यदि स्त्री गृह चन्द्र सुकर हो तो जातक को कन्याओ का सुख प्राप्त होता है /
3 यदि सप्तमांश कुंडली में लग्नेश यदि नीच राशि में हो या पाप ग्रहों से पीड़ित हो या पाप ग्रहों का साथ हो तो जातक की संतान निम्न कार्य करने वाली होती है /तथा जातक का नाम डुबाने वाली होती है /
४ यदि लग्न कुंडली में पंचमेश लग्न या त्रिकोण में बैठे और सप्तमांश कुंडली के लग्न का स्वामी शुभ ग्रहों से युत या द्रष्ट हो तो जातक की संतान अपना व कुल का नाम रोशन करती है / और जातक की उन्नति उस संतान के हनी के बाद अधिक हो जाती है /
5 यदि लग्न कुंडली में पंचमेश 6 8 12 वे भाव में चला जावे या पाप कतरी में आ जाय या शनि राहु से द्रष्ट हॉप जाए या सप्तमांश कुंडली में लग्नेश 6 8 12 वे भाव में चला जी तो जातक संतान हीन हो जाता है /
नवमांश कुंडली :- नवमांश कुंडली के द्वारा जातक के जीवन साथी पर विचार करते है /
नवमांश कुंडली का लग्नेश यदि मंगल हो तो जातक की स्त्री क्रूर तथा लड़ाकू होती है परन्तु यदि मंगल के साथ शुक्र भी हो तो जातक की स्त्री सुंदर हनी के साथ साथ कुलता होती है /
यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश सूर्य हो तो जातक की स्त्री पति व्रता हनी के साथ साथ उग्र स्वाभाव की होती है /
यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश चन्द्रमा हो तो शीतल स्वाभाव की गौरवर्ण की व मिलन सर होती है /
यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश बुध हो तो का ला में प्रवीण चतुर व ज्ञान वां होती है/
यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश गुरु हो तो जातक की स्त्री धार्मिक कार्यो में लगी रहने वाली बहूत अधिक पूजा पथ करने वाली और अंत समय में गृहस्थ जीवन से विरक्त हनी वाली होती है /
यदि लग्नेश शुक्र होतो जातक की स्त्री सुंदर हनी के साथ साथ श्रंगार प्रिय विलाशी और प्रतेक कार्य को निपुणता से करने वाली होती है /
यदि नवमांश के लग्नेश शनि हो तो जातक की स्त्री अध्यात्मिक हनी के साथ साथ न्याय प्रिय आचरण प्रिय तथा मेहनती होती है
·         लग्न या लग्नेश में राहु का प्रभाव हो तो जातक की स्त्री चुगल खोर या प्रपंच करने वाली होती है
·         यदि लग्नेश पर केतु का प्रभाव हो तो  जातक की स्त्री अधिक बिलनी वाली व कुछ बातो को छिपाने वाली होती है /
·         यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश यदि स्वराशी में स्थित हो , केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो तो जातक को पत्नी का पूरा सुख प्राप्त होता है /
·         नवमांश पति यदि पाप यिक्त या पाप द्रष्ट हो या 6 8 12 वे भाव में हो और यह स्थित लग्न कुंडली में भी तो जैसे सप्तमेश पाप युत व पाप द्रष्ट हो तो जातक को स्त्री सुख नहीं मिलता है /
·         पाप ग्राही की संख्या नवमांश लग्न में जितनी अधिक होगी जातक की स्त्री उतना अधिक परेशां होगी /
द्वादशांश कुंडली :- इस कुंडली के द्वारा माता पिता के सहयोग के साथ साथ पैत्रक संपत्ति पर भी विचार करते है /
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश यदि शुभ गृह हो तो जातक के माता पिता शुभ आचरण युक्त और यदि पाप गृह युक्त और पाप गृह हो तो पाप युक्त अचर्ना करने वाले होते है /
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश यदि पुरुष गृह सवा ग्रही मित्र क्षेत्रीय उच्च का हो तथा केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक को अपने माता पिता से पूर्ण सहयोग अच्छी पत्रक संपत्ति मिलती है साथ ही जातक की सुख सुविधा में कमी नहीं रहती है /
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश 6 8 12 वे भाव में तो जातक को अपने माता पिता का सुख व सहयोग नहीं मिलता है /
त्रिशमांश कुंडली :- त्रिशमांश कुंडली के द्वारा कष्ट व अनिष्ट का विचार किया जाता है /  
यह विषम रशोयो में प्रथम 0 से 5 डिग्री मंगल में तथा दूसरा 0 से 5 डिग्री शनि के तीसरा आठ अंश धनु राशी गुरु का चौथा सात अंश मिथुन राशी के बुध का पांचवा पांच अंश तुला राशी के शुक्र का होता है /
सम राशियों में प्रथम पांच अंश वृष राशी के शुक्र का दूसरा सात अंश कन्या राशी के बुध का तीसरे आठ अंश मीन राशी के  चौथे पांच अंश मकर राशी के पांचवा पांच अंश वृश्चिक राशी के   होता है /
1.                            त्रिश्मंश कुंडली में अनिष्ट घटनाओ का विचार करते समय यह अवश्य ध्यान रखे की यह घटनाए तभी घटित होंगी जब महादशा योगनी दशा व गोचर में इन ग्रहों में घटनाओ का संचरण होगा /
2.                            त्रिश्मंश कुंडली का लग्नेश यदि केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक के जीवन में शुभ घटनाए ज्यादा व अशुभ घटनाए कम होती है /
3.                            परन्तु यदि त्रिक भाव 6 8 12 वे भाव में लग्नेश आ जाए या पाप ग्रहों से युत या द्रष्ट हो तो जातक के जीवन  अंत गृह अनुकूल वस्तु विशेष के संपर्क में आने से होता है /
4.                            त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश सूर्य हो तो ऊँचे स्थान से गिरकर म्रत्यु को प्राप्त होता है
5.                            त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि चन्द्रमा हो तो जल में डूबकर या जलोधर सम्बंधित बीमारी  से म्रत्यु  होती है जलोधेर बीमारी में कैथे की चटनी काफी फायदा करती है /
6.                            त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि मंगल हो तो श्ष्ट्र से या शैल्य क्रिया के दारा मृत्यु होती है 
7.                            त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेशयदि शनि हो तो वाहन से मृत्यु का विचार किया जाता है /
8.                             त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि गुरु हो तो वायु सम्बन्धी रोग जैसे पथरी किडनी गैस फैट आदि से सम्बंधित रोग से मृत्यु का विचार किया जाता है /
9.                             
10.                       त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि शुक्र हो तो विलाशिता से या फिर शुगर की बीमारी से मृत्यु होती है /
11.                       त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि बुध हो तो व्यापर मेर घाटे से या व्यापारिक धोखे  से /
12.                       त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि राहु केतु हो तो विष से या विष युक्त जानवरों के काटने से  और आत्म हत्या के द्वारा मृत्यु का विचार किया जाता है /
13.                       त्रिश्मांश कुंडली के षष्टेश के अनुसार जातक को रोग उत्पन्न होते है
14.                       त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि सूर्य है है तेज़ ज्वर नेत्र रोग आधा शिशिर पीड़ा पीलिया ह्रदय रोग आदि /
15.                       त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि चन्द्रमा है तो काफ शीत मानसिक रोग यूरिन सम्बन्धी रोग
16.                        त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि मंगल है तो रक्त विकार रक्त चाप और फोड़े फुंसी /
17.                       त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि बुध है तो त्वचा सम्नाधि रोग छोटी आंत के रोग श्वास रोग और बैक बोन से सम्बंधित रोग होते है /
18.                       त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि गुरु हो तो आलस्य संन्पात कर्ण दोष लीवर आदि के रोग /
19.                       त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि शुक्र हो तो गुप्तांग के रोग प्रजनन सम्बन्धी रोग शुगर व कलंक भी लगता है /
20.                       त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि  शनि हो तो वात विकार आस्थि भंग लक्वा शत्रु से पीड़ा विवाद व जेल यात्रा /
21.                       त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि राहु केतु हो तो डिप्रेशन /
22.                       राहु केतु यदि लग्न में हो तो कैंसर से म्रत्यु का विचार किया जाता है /
पंचांग :-पंचांग के मुक्य पांच अंग होते है ...1- तिथि 2- वार 3- नक्षत्र ४- योग  5- करण
पंचांग में तिथि निकालने का तरीका
तिथि = चन्द्र स्पष्ट अंशो में  – सूर्य स्पष्ट अंशो में / 12
उदहारण :- 8 राशि 5 अंश 43 कला २७ विकला – 6 राशि 28 अंश 1 कला 46 विकला / 12
1 राशि 7 अंश 31 कला / 12
37.5 /12 =3 1.5/12  यहाँ तृतीय तिथि निकल कर आती है

भाग फल यदि १५ अंश से कम आए तो कृष्ण पक्ष
भाग फल यदि १५ अंश से अधिक आए तो शुक्ल पक्ष
भाग फल यदि शुन्य आये तो अमावस्या
भाग फल यदि 1 आये तो पूर्णिमा तिथि मणि जाती है
कृष्ण पक्ष की अंतिम दिन अमावस्या
शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन पूर्णिमा
पूर्णिमा के नक्षत्र से ही मॉस का निर्धारन किया जाता है /

तिथियों के स्वामी ----
प्रतिपदा  का स्वामी = अग्नि ,
द्वितीय का = ब्रह्मा   ,
तृतीया का स्वामी =  पार्वती शिव ,
चतुर्थ का स्वामी = गणेशजी ,
पंचमी का स्वामी =सर्पदेव ( नाग ) ,
षष्ठी का स्वामी = कार्तिकेय ,
सप्तमी का स्वामी = सूर्यदेव ,
अष्टमी का स्वामी = शिव ,
नवमी का स्वामी = दुर्गाजी ,
दशमी का स्वामी = यमराज ,
एकादशी का स्वामी = विश्वदेव ,
द्वादशी का स्वामी = विष्णु भगवान ,
त्रयोदशी का स्वामी = कामदेव ,
चतुर्दशी का स्वामी = शिव ,
पूर्णिमा का स्वामी = चन्द्रमा ,
अमावस्या का स्वामी = पित्रदेव |
नोट -- जिस देवता की जो विधि कही गई है उस तिथि में उस देवता की पूजा , प्रतिष्ठा , शांति विशेष हितकर होती है |
मास शुन्य तिथिया :-ये तिथि ज्योतिष में शुभ नहीं मणि गई है /

   
सिद्ध तिथिया :- ये तिथिय उत्तम मणि गई है
3,8,13 मंगलवार      2,7 ,12,बुधवार           5,१०,15 गुरूवार      1,6,11 शुक्रवार     
४,9 ,१४ शनिवार 
तिथियों को पांच भागो में बाटा गया है /
तिथि का नाम             तिथि        पक्ष         फल
नन्दा              1,6,11       दोनों पक्ष     आन्नद प्रद कार्य हेतु
भद्रा               2,7 ,12        “ “        शुभ कार्य हेतु
जया               3,8,13                   विजय कार्य हेतु
रिक्ता              ४,9 ,१४                        शुभ कार्य में निषेध तंत्र मंत्र हेतु
पूर्णा               5,१०,15                  शुभ कार्य में उत्तम
अमवस्या निषेध
सिद्ध योग :-                        मृत्यु योग :-

नन्दा              शुक्रवार             मंगल वार रविवार को       नंदा तिथि
भद्रा               बुधवार             सोमवार शुक्रवार            भद्रा तिथि
जया               मंगलवार            बुद्धवार                         जया तिथि
रिक्ता              शनिवार            शनिवार                  पूर्णा  तिथि
पूर्णा               गुरुवार                   गुरुवार                         रिक्ता तिथि

म्रत्यु योग में यात्रा विशेष रूप से निषेध मणि गई है /साथ ही शुभ कार्यो में भी इनको निषेध मन गया है /
तिथि क्षय :- कोई भी तिथि सूर्योदय के बाद प्रारम्भ होकर तथा दुसरे सूर्योदय से पहले जो तिथि समाप्त हो जाती है उसे तिथि क्षय कहते है /
तिथि वृधि :- जो तिथि एक सूर्योदय से प्रारंभ होकर दुसरे सूर्योदय तक चले उसे तिथि वृधि कहते है /
नोट :- शुभ कार्यो के लिए तिथि क्षय व तिथि वृधि वर्जित है /
पंचक :- घनिष्ठा के उतरार्ध से रेवती के पूर्वार्ध तक को पंचक माना गया है / इनमें शुभ कार्य नहीं करते है /





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नक्षत्रो का वर्गीकरण नक्षत्रो को गुण धर्म के अनुसार 3 भागो में बाटा गया है /
उर्ध मुखी
अधो मुखी
त्रियक मुखी
नक्षत्र :- आद्रा पुष्य श्रवण घनिष्ठा सतमिषा त्रि उत्तरा रोहणी
नक्षत्र :- मूल अश्लेषा विशाखा कृतिका त्रि पूर्वा भरणी मघा
नक्षत्र :- म्रगशिरा रेवती अनुराधा चित्रा हस्त अश्वनी पुनर्वशु ज्येष्ठा स्वाति

फल :- ग्रह के पहुचते ही फल करते है  
फल :- अचानक फल करते है
फल :- कार्य होगा लेकिन प्रयास के बाद ... जुगाड़ से
अभिजीत मुहूर्त में कोई भी कार्य किया जा सकता है जिसमे राहु काल निषेध मन गया है / 11 :30 से 12:24
      पहली होरा शनि की होती है उसके बाद 25 होरा सूर्य की और उससे 25 होरा चन्द्र की और उससे 25 होरा मंगल की और इस तरह ही वार का निर्धारण किया जाता है /
होरा :- होरा शब्द अहोरात्र से लिया गया है अहोरात्र एक दिन + एक रात = 24 घंटे /प्रत्येक होरा एक घंटे की होती है सूर्योदय से एक घंटे तक उस वार की ही होरा सिद्ध होती है / होरा तत्काल जानने के लिए उपरोक्त सारणी के द्वारा या पंचांग के 184 नम्बर प्रष्ठ से /
अपनी जन्म राशि के स्वामी गृह के शत्रु ग्रहों की होरा में यात्रा विवाह आदि का त्याग किया जाता है / अन्यथा अशुभ परिणाम मिलते है /
किस होरा में कौन सा कार्य करना चाहिय .....
रवि की होरा :- राज्याभिषेक प्रशाशनिक कार्य नवीन पद ग्रहण राज्य सेवा औषधि निर्माण स्वर्ण ताम पत्र आदि मंत्र उपदेश गाय बैल का क्रय विक्रय उत्सव वाहन क्रय विक्रय आदि /
सोम की होरा :- कृषि सम्बंधित कार्य नवीन वस्त्र धारण मोती रत्न अभ्शन धारण नवीन योजना कला सीखना बाग बगीचे चंडी की वस्तुओ का क्रय विक्रय /
मंगल की होरा :- वाद विवाद मुकदमा जासूसी कार्य छल करना ऋण देना युद्ध निति सीखना शल्य क्रिया व्यायाम प्रारंभ /
बुध की होरा :- साहित्य कार्य आरंभ करना पठन पाठन शिक्षा दीक्षा लेखन प्रकाशन शिल्प कला मैत्री खेल धान्य का संग्रह बही खाता लेखन हिसाब किताब लोन लेना ./
गुरु की होरा :- दीक्षा संस्कार धार्मिक कार्य विवाह कार्य गृह शांति यज्ञ हवन दान्य पुण्य देवार्चन मांगलिक कार्य न्यायिक कार्य ,नवीन वस्त्र आभूषण धारण करना तीर्थाटन /
शुक्र की होरा :- नृत्य संगीत प्रेम व्यवहार प्रयजन समागम अलंकार धारण लक्ष्मी पूजन क्यापरिक कार्य फिल्म निर्माण ऐश्वर्या वर्धक कार्य वाहन का क्रय विक्रय /
शनि की होरा :- नौकर चाकर गृह प्रवेश मशीनरी कल पुर्जे का कार्य असत्य भाषण छल कपट गृह शांति के बाद संबिधा विसर्जन  व्यापर आरंभ करना /
  

6 टिप्पणियाँ:

  1. aap ki ye post kafi pasand aayi muje ....
    lekin sir muje ye jana hai , ki navmash kundli sirf lagansukha yani lifepartner ke bare mai jane ke liye hi hoti hai ... to

    agar man lijiye .. lagan kundli mai lagan tula hai ... aur lagaesh ane saptmesh ki stiti acchi hai ..

    jab navmash kundli mai vrushabha lagan hai aur lagnesh sukar khud ki rashi mai 6 sthan pe hai jab saptmesh mangal bhi 6 sthane pe hai aur dono hi viprit raj yog ki conntication mai aate hai ya nahi ? aur ye life partner ke bare mai kesa reuslt dege ye samj na hai muje kya aap mere ye saval ka santoh purn jawab dege .. ?
    aahi aap se aasa hai ki aap muje jawab dekar meri jane ki utsukta ko pura kare ge..

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  2. aap ke jawab ka intazar rahe ga..

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  3. Thanks for sharing this useful information
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  4. you can get online Horoscope predictions,Kundli match making .
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  5. hello sir, my name is monika my age is 23 year old. i want to know about my Kundli. can you please tell, when will i get government job and when i will get marry? My date timing is 10:20 PM, DOB is 29 May 1995, i just want to about my Kundli details. please contact me on my mai and give me full details of my Kundli 2019.

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