Saturday, June 2, 2018

मेरी मजबूरिया

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चाहे कोई भी मजबूरी हो
जिंदगी में कुछ घाव जरूरी हो
मुसीबत में कौन अपना था कौन पराया
या फिर  उसने खुशियो में ही अपना फर्ज निभाया
कुछ जरूरते व कुछ अरमान थे जरूरी
लेकिन उनकी कही बाते सुई से भी थी नुकीली
वो समय था वो किस्मत थी न हाथ मे लकीर थी
दोस्त भी थे अपने भी थे लेकिन किसी का आशीष न था
आशीष फकीरे

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