Friday, April 2, 2021

क्यों की जाती है शीतलाष्टमी को शीतला माता की पूजा

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क्यों की जाती है शीतलाष्टमी को शीतला माता की पूजा 

शीतला अष्टमी या बसोड़ा, क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि, जानें
होली के आठवें दिन उत्तर भारत के अधिकांश घरों में शीतला अष्टमी मनाई जाती है. यह पर्व शीतला माता को समर्पित है. शीतला माता चेचक, हैजा जैसे रोगों से रक्षा करती हैं. इस बार यह व्रत 4 अप्रैल 2021 को पड़ रहा है. शीतला अष्टमी को बसोड़ा भी कहा जाता है. इस दिन घर में ताज़ा खाना बनाना वर्जित माना जाता है.

 
हर साल होली के त्योहार के आठवें दिन शीतला अष्टमी मनाई जाती है. कई जगह पर ये सप्तमी तिथि को भी मनाई जाती है. उत्तर भारत के अधिकांश घरों में शीतला अष्टमी के दिन व्रत और शीतला माता की पूजा अर्चना की जाती है. शीतला अष्टमी को बसोड़ा भी कहा जाता है. यह शीतला माता का पर्व है इसलिए इस दिन शीतला माता की सच्चे मन से आराधना करने से चेचक, खसरा हैजा जैसे संक्रामक रोग नहीं होते हैं. ये देवी इन बीमारियों के प्रकोप से बचाती है. इस दिन माता को बासी पकवान चढ़ाने की प्रथा है.

शीतला अष्टमी शुभ मुहूर्त

अष्टमी तिथि आरंभ- 4 अप्रैल 2021 को सुबह 04 बजकर 12 मिनट से

अष्टमी तिथि समाप्त- 05 अप्रैल 2021 को प्रातः 02 बजकर 59 मिनट तक

पूजा मुहूर्त- सुबह 06 बजकर 08 मिनट से लेकर शाम को 06 बजकर 41 मिनट तक

पूजा की कुल अवधि- 12 घंटे 33 मिनट

शीतला अष्टमी से ग्रीष्मकाल की हो जाती है शुरुआत
पौराणिक मान्यता के अनुसार शीतला अष्टमी से ही ग्रीष्मकाल आरंभ हो जाता है. कहा जाता है कि शीतला अष्टमी के दिन इस दिन से ही मौसम तेजी से गर्म होने लगता है. शीतला माता के स्वरूप को शीतलता प्रदान करने वाला कहा गया है. इस व्रत का अर्थ यह है कि उस दिन के बाद बासी भोजन त्याज्य होता है. इसके साथ ही गर्मियों में साफ सफाई को विशेष महत्व दिया जाता है ताकि ग्रीष्म रोगों जैसे चेचक, खसरा आदि के प्रकोप से बचा जा सके.

अभय मुद्रा में विराजमान हैं शीतला माता
शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना जाता है. यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं. गर्दभ की सवारी किए हुए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं.

शीतला माता को मीठे चावलों का लगाया जाता है भोग

शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास प्रकार के मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है. ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं. इन्हें सप्तमी की रात को बनाया जाता है. इसी प्रसाद को घर में सभी सदस्यों को खिलाया जाता है.

शीतला अष्टमी पूजा विधि

सप्तमी के दिन शाम के समय रसोईघर की साफ-सफाई करके माता का प्रसाद तैयार किया जाता है और अगले दिन का भोजन भी बनाकर रख दिया जाता है. अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जात है और शीतला माता के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की जाती है. इसके बाद बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. तत्पश्चात जहां होलिका दहन किया गया था उस स्थान पर जाकर पूजा की जाती है, इस दिन घरों में ताजा खाना नहीं बनाया जाता. ताजा खाना अगली सुबह ही बनता है

1 टिप्पणियाँ:

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