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Tuesday, February 2, 2021

जानिए षटतिला एकादशी व्रत विधि,महत्व,पूजा विधान,शुभ मुहूर्त

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जानिए षटतिला एकादशी व्रत विधि,महत्व,पूजा विधान,शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में माघ का महीना पवित्र माना जाता है। इस माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। षट्तिला एकादशी के दिन मनुष्य को भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है। इस बार ये एकादशी 07 फरवरी को है।

जानें कैसे करें षटतिला एकादशी पूजा

काले तिल और गंगा जल डालकर स्नान करें। आज साधक एकादशी का व्रत रखें। सफेद वस्त्र धारण करें। फल फूल और गुड़, तिल की मिठाई से भगवान श्री हरि विष्णु और योगेश्वर श्रीकृष्ण जी की पूजा करें। काले तिल से हवन करें। 

पूजा का मंत्र जाप और हवन मंत्र

ॐ  नमो भगवते वासुदेवाय

इस मंत्र का 108 बार जाप करें। अब काले तिल और गुड़ की मिठाई का प्रसाद बांटे। लाल सिंदूर का तिलक लगाएं।  एकादशी का व्रत महीने में दो बार मनाया जाता है। षटतिला एकादशी है। माघ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जानते हैं। अन्य एकादशियों की तरह इस एकादशी का भी विशेष महत्व है। चूंकि पूरा माघ मास पूजा उपासना के लिए पवित्र माह माना जाता है ऐसे में षटतिला एकादशी का महत्व और बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से अक्ष्य पुण्य की प्राप्ति होती है। एकादशी के दिन स्नान, दान और व्रत का विशेष प्रयोजन होता है। मान्यता है कि 24 एकादशियों का व्रत करने वाले मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

षटतिला एकादशी, 7 फरवरी 2021, रविवार

एकादशी तिथि प्रारम्भ - फरवरी 07, 2021 को 06:26 am बजे

एकादशी तिथि समाप्त - फरवरी 08, 2021 को 04:47 am बजे

षटतिला एकादशी पारणा मुहूर्त :07:05:25 से 09:17:29 तक 8 फरवरी को

अवधि :2 घंटे 12 मिनट

एकादशी पूजा विधि:

एकादशी के दिन प्रात: स्नानादि के बाद भगवान विष्णु की पूजा अराधना की जाती है। तिलयुक्त हवन किया जाता है। इसके बाद पूरे दिन उपवास रखते हुए नारायण का ध्यान किया जाता है। तुलसी पर घी का दीपक जलाएं और सूर्यास्त के वक्त शाम को एक बार फिर जोत जलाकर पूजा करें। इसके अगले दिन सुबह स्नानकर पूजा करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।

षटतिला व्रत का महत्व-

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान करने के बाद मिलता है, उससे कहीं ज्यादा फल एकमात्र षटतिला एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। तिल का उपयोग पूजा, हवन, प्रसाद, स्नान, स्‍नान, दान, भोजन और तर्पण में किया जाता है। तिल के दान के दान का विधान होने के कारण कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है।

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