Sunday, December 6, 2020

मृत आत्माएं और रक्त संबंध भाग 5

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रोनित  उस  दिन बाजार से  रहस्यमई आत्माओं को जानने के लिए बाजार से किताबें खरीद लाया और दिन भर रोनित के दिमाग में रात में देखे गए सपने और आत्माओं का सच जानने की व्याकुलता तो थी ही साथ ही उस मकान को बेचने के पीछे छुपे हुए रहस्य को जानने की भी । रोनित किताब लाकर अपने कमरे में मेज पर रख देता है और मां के बुलाने पर खाना खाने के लिए चला जाता है। जहां रोनित के दिमाग में वही सब विचार चल रहे थे तभी रोनित के पापा ने हिलाते हुए रोनित से पूछा कहां खोयेे हुुुये हो ,सुबह से कुछ पता ही नहीं चल रहा क्या हुआ सब ठीक तो है ,जी पापा जी ,पापा कुछ नहीं मतलब सब ठीक है बस मकान को बेचने को लेकर क्या बात है थोड़ा डरते हुए पूछता है रोनित के पापा अपनी पत्नी की ओर देखकर इशारों से पूछने का प्रयास करते हैं कि कहीं उन्होंने तो नहीं बता दिया मकान को लेकर हुई बात को।

 रोनित की माँ ने ना में इशारा करते हुए बताया कि ऐसी कोई बात नही हुई।
तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो ,क्या हुआ किसी ने कुछ कहा क्या। नहीं उस दिन पूजन के बाद माँ का बेहोश हो जाना और फिर उसके बाद आप लोगों की बातें मैंने सुनी थी ,इसलिए । 
 ओह्ह तो यह बात है, कुछ नहीं बेटा वह तेरी मां को धुंए से एलर्जी है इसलिए बेहोश हो गई थी और वह भूत प्रेत के बारे में ज्यादा सोचती है इसलिए ऐसा हुआ। तू मत मां की तरह बन जाना तू तो साइंस का स्टूडेंट है ना। 
जी पापा, रोनित समझ चुका था कि उसकी बातों को कैसे विज्ञान की चादर से ढक दिया गया था। लेकिन रोनित की उत्सुकता अभी खत्म नहीं हुई थी और खाना खाने के बाद रोनित सीधे अपने कमरे में चला जाता है।

कमरे में पहुंचने के बाद रोनित को कल के सपने का डर  का एहसास कहीं ना कहीं उसके मन में था । वही घड़ी में 10:00 बज चुके थे और रोनित की नजर बाजार से लाई किताबों पर पड़ती है रोनित टेबल पर बैठकर आत्माओं पर आधारित किताब को खोलकर पढ़ना शुरू कर देता है ।
 जिस प्रकार इंसान अपने शहर को छोड़कर किसी दूसरे अनजान शहर में जाता है तो उसे वहां पर काफी असुविधा होती है और वह अपने रहने खाने और सोने के लिए इधर-उधर भटकता रहता है कि उसे कोई ऐसा स्थान मिल जाए ताकि वह वहां पर स्थिरता के साथ अपना काम करता रहे। लेकिन वह अनजान शहर में तब तक भटकता रहता है जब तक उसे रहने के लिए स्थाई निवास नहीं मिल जाता । ऐसी हालत में अनजान शहर में वह कभी फुटपाथ कभी पेड़ के नीचे तो कभी किसी के घर के बाहर सोकर दिन बिताता है। खाने के लिए भी वह दूसरों पर आश्रित रहता है । जबकि वह इंसान जो अपने घर या अपने शहर में होता है तो उसका एक ठिकाना और अपने लोग होते हैं जिनके बीच में आराम से जीवन व्यतीत करता रहता है ।लेकिन जैसे वह अकेले किसी अनजान  शहर में पहुंचता है वह अकेला भटकता है जहाँ शहर में सभी अपने  अपने काम में व्यस्त दिखते है और समय होने पर अपने घरों में चले जाते हैं । लेकिन वह रात के अंधेरे में अकेले भटकता है और थक हार कर अपनी भूख और अपने खर्चों के लिए वह राह चलते लोगों को परेशान करने लगता है कभी कभी वह इन्हीं कामों से एक अपराधी की तरह से पेश आने लगता है ।

वैसे ही सारे जीवन जब आत्मा मानव जीवन में रहते हुए इंसान के शरीर को छोड़कर जाती है तो उसकी जान पहचान उसकी धन दौलत सब यहां रह जाते हैं और वह आत्मा जब दूसरी दुनिया में पहुंचती है तो वहाँ उसे कोई जानने वाला नहीं होता है और वह इधर-उधर भटकता रहता है और अपने जीवन यापन के लिए कभी-कभी लोगों को परेशान करता है क्योंकि दूसरी दुनिया में जाने के बाद भी उसका मोह इस दुनिया में लगा रहता है। ऐसा तब होता है जब व्यक्ति अकाल मृत्यु  से मरता  है  उसके द्वारा जीवन भर कमाई गई धन दौलत संसाधन और मकान उसका मोह नहीं छोड़ते और वह अपनी चीजों पर एक इंसान की तरह ही  हक जमाता है और वह आत्मा भटकती रहती है और मानव उसको बुरी आत्माएं कहकर उनसे भागता और डरता रहता है।

 ऐसी ही एक कहानी है में एक मकान में किराए के कमरे में एक लड़का रहा करता था कई सालों के बीत जाने के बाद जब मकान मालिक उस मकान को बेचने की सोचने लगा तो उस लड़के के ऊपर भी कमरे को खाली कराने का दबाव बनाने लगा । लेकिन कई सालों से उस मकान में बिताने की वजह से उस कमरे से जैसे उस लड़के को प्यार हो गया था। संजय ने उस कमरे को बड़े सलीके से सजाया हुआ था मानो जैसे यह  उसका महल जैसा हो । लेकिन मकान मालिक संजय से उसका महल किसी भी हालत में लेना चाहता था इसलिए उसने लड़ाई झगड़े से लेकर मारपीट भी कर ली ,लेकिन संजय उस कमरे को ना खाली करने पर अड़ा हुआ था और संजय ने मकान मालिक से भी साफ कह दिया था की उसके मरने के बाद ही यह कमरा वह ले सकेगा ।
संजय की कही गई बात मकान मालिक को काफी बुरी लग गई और उसने भी ठान लिया था कि वह कमरा किसी भी तरह से वह खाली करवा कर ही रहेगा और एक दिन संजय और मालिक कहीं गायब हो जाते हैं । किसी को भी उनके बारे में कुछ पता नहीं चलता है । सालों बाद जब मकान को नए लोगों ने खरीद लिया और उसमें रहने लगे तो कुछ दिनों बाद से ही उनके साथ अजीब सी घटनाएं घटने लगी । कभी बिस्तर कभी अलमारी तो कभी खाने के सामान में आग लग जाया करती थी। शुरुआत में तो नए मकान मालिक को तो यह खुद की गलतियों की वजह से हुई घटना लगती थी । लेकिन जब यह घटना अक्सर होने लगी तो उनके मन में भी अजीब से विचार आने लगे थे । उन लोगो ने तांत्रिक और ज्योतिषियों से इस बारे में बाती की  और उसके बाद उनके होश उड़ गए। उनको पता चला चल चुका था कि मकान में किसी को जलाकर मार दिया गया था और उसकी आत्मा उस मकान में भटक रही है। जिसके बाद वह लोग उस मकान को छोड़कर चले गए और उसके बाद  मकान में कई लोग आए और गए लेकिन वह आत्मा अपने सिवा उस मकान में किसी और को  रहने देना नहीं चाहती थी 
ऐसा ही कई सालों तक चलता रहा फिर नए लोग रहने आए और कुछ दिनों के बीतने के बाद उनके साथ  ऐसी ही घटनाएं घटने लगी और उन्होंने भी तांत्रिकों पंडितों का सहारा लिया लेकिन उस आत्मा की तांत्रिक के हवन पूजन में कुछ दिनों के लिए तो वह आत्मा शांत हो जाती थी लेकिन फिर से वह अप्रिय घटना क्रम शुरू हो जाता था।
 उस मकान का वह कमरा जो अभी तक किसी ने नहीं खोला था आज नए मकान मालिक ने उस कामरे को भी खोल दिया और उस कमरे साफ सफाई करा कर आपने लिए वह कमरा रख लिया क्योंकि शेखर को कमरे में एक अजीब सी शांति सी दिख रही थी जब शेखर पहली रात उस कमरे में सोया तो उसे लगा कि खिड़की  हवा के झोंके से खुल गई और शेखर ने जैसे ही खड़की बंद की वैसे ही कमरे के दरवाजे खुल जाते हैं शेखर ने कमरे के दरवाजे बंद कर लिए लेकिन शेखर को उस कमरे में किसी के होने का एहसास हो चुका था शेखर डरता हुआ अपने बिस्तर पर लेट जाता है कि अचानक से खिड़की तेज आवाज के साथ खुल जाती है शेखर लेटा हुआ यह देख रहा था की मेज पर रखी पानी की बोतल अपनी जगह से खिसक जाती है शेखर अब पूरी तरह से आत्मा के कमरे में होने का एहसास को पक्का मान चुका था तभी शेखर को अपने बगल में किसी के लेट होने का एहसास होता है वह अचानक से उठता है कि एक तरफ़ का वह हिस्सा दबा हुआ सा दिखाई पड़ता है शेखर कुछ समझ पाता कि कमरे में रखी अलमारी से धुंवा निकलने लगता है और अलमारी जलने से लगती है शेखर ने तुरंत ही उस अलमारी को खोल दिया लेकिन वह अलमारी अभी भी चल रही थी और किसी का शरीर जैसे जलता है ऐसे ही बदबू  शेखर को महसूस हुई । शेखर कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर भाग जाता है और आस पड़ोस के लोगों को इस बारे में बताता है ।
  जब पड़ोसी उस कमरे को देखते हैं तो  हैं कि गांव का एक लड़का करीब 20-30साल तक  कमरे में रहा। इसका मकान मालिक मकान को बेचना चाह रहा था लेकिन लड़के को इस कमरे से और अपनी किताबों के अलमारी से इतना प्यार था कि वो इसे महल समझता था और वह इस को खाली करना नहीं चाहता था जिसको लेकर दोनों में कई बार लड़ाई भी हुई।
 फिर एक दिन मकान मालिक और संजय रातों-रात कहीं चले गए ।
किसी को कुछ इस बारे में पता नहीं चला कुछ लोगों का कहना था कि मकान मालिक ने संजय को जलाकर इस अलमारी में बंद कर दिया था और खुद गायब हो गया । जिसके बाद इस मकान को कितने ही लोगों ने खरीदा और बेचा लेकिन इस कमरे को आज तक किसी ने नही खोला।  लेकिन आज इस कमरे को खोल कर समझो भटकती आत्मा को शायद आजाद कर दिया गया था । शेखर ने भी तांत्रिकों की इस बारे में बात की तो उससे भी इस बात को सच्चाई समझी। और शेखर फिर से रात को उस कमरे में सोने की ठान ली थी और उस रात जब शेखर कमरे में गया तो उसको जल चुकी अलमारी सही सलामत मिली लेकिन शेखर उस कमरे में सोने लगा और उसको संजय के आने का एहसास हो चुका था संजय  से बात करने के लिए अपने बिस्तर पर सो जाता है और जैसे ही उस को बिस्तर पर संजय के होने का एहसास होता है तो वह तुरंत ही उठता है  और उस आत्मा  से कहता है कि मैं तुमसे बात करना चाहता हूं सामने आओ उसको संजय के हंसने की  और फिर रोने की आवाज सुनाई देती है। देखो संजय अगर तुम चाहते हो और की इस कमरे में कोई ना रहे तो कोई नहीं रहेगा लेकिन इससे तुम भी तो सालों साल भटकते रहोगे । तुम्हें भी तो प्रेत योनि  से मुक्त होना है,बताओ। शेखर को अपने सामने किसी के खड़े होने का एहसास साफ नजर आने लगा था। मुझे मालूम है कि दूसरे मकान मालिक ने तुमको जलाकर मार दिया था शायद, मुझको बताओ पूरी बात संजय की आत्मा ने बोलना शुरू किया मकान मालिक और मेरे बीच काफी लड़ाई हुई और मैंने भी कह दिया कि मेरे मरने के बाद ही यह कमरा खाली होगा और मकान मालिक ने भी सोने के बाद मुझे जला दिया और अलमारी में मेरे शरीर को बंद कर दिया लेकिन उसको मुझ पर दया नही आई आग की जलन से टैब से लेकर आज तक तड़फ रहा हु लेकिन वो मकान मालिक मुझे यहाँ बंद कर के भाग गया।
इसलिए मैं उसका मैं उसका इंतजार कर रहा हूं  और  इस मकान में किसी को भी रहने देना नहीं चाहता और इसलिए ही ना जाने कितने लोग इस मकान को छोड़ कर जा चुके हैं ।
संजय इतने सालों बाद ना वह मकान मालिक है और ना वह लोग अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी अस्थियों को  गंगा में प्रवाहित कर तुम्हें इस प्रेत योनि से मुक्त करा दूं 

संजय की आत्मा ने कहा कि चाहता तो मैं भी यहीं हूं लेकिन इस कमरे का मोंह मुझे कहीं भी रहने नहीं देता ।शेखर ने संजय की आत्मा से कहा कि अगर तुम राजी हो तो मैं यह प्रयास करके तुम्हें इस प्रेत योनि से मुक्त  करवा सकता हूं ।और उसके बाद उस कमरे में किसी प्रकार की कोई हलचल नहीं हुई और अगले दिन सुबह संजय उस अलमारी को खोलकर उसमें जली हुई हस्तियों को निकालकर गंगा में प्रवाहित कर देता है और उस मकान में उस आत्मा की शांति के लिए हवन पूजन और शांति पाठ करवाता है जिसके बाद  से आज तक उस मकान में उस कमरे में ऐसी घटनाएं होना बंद हो चुकी थी । शायद संजय की आत्मा उस पर प्रेत योनि से मुक्त हो चुकी थी और आत्मा को मुक्ति मिल चुकी थी

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