Wednesday, April 22, 2020

नेत्रो के समस्त विकारो को दूर करने का अद्भुत उपाय।

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चक्षुसी  विद्या 

आंखों की समस्याओं से आजकल हर व्यक्ति परेशान हैं बच्चों हो या बड़ा सभी को नेत्र रोग हैं कुछ आनुवंशिक  हैं कुछ कुंडली में स्थित कारक ग्रहों के आधार पर बताए जाते हैं कुछ आजकल की दिनचर्या को इसके लिए दोषी मानते हैं।
 कारण कुछ भी हो सबका मूल एक ही है कि आंखों की समस्या से सभी परेशान हैं ।
कारण कोई भी हो या यह सभी कारण एक ही है।
 क्या हमारे ऋषि मुनि इतने त्रिकालदर्शी थे कि उन्हें पता था कि कलयुग में ऐसा होगा । क्योंकि उस समय उन्होंने चक्षुसी विद्या  के रूप में एक ऐसा मंत्र दिया जो आंखों के समस्त विकारों को दूर कर सकता है ।
कुछ लोग या यह कहें कि ज्यादातर लोग इस चक्षुसी  विद्या का पाठ नित्य करते हैं लेकिन उन्हें कोई भी परिणाम प्राप्त नहीं होते है ।
कारण क्या है।
 कई ज्योतिषी भी इस पाठ का निरंतर पाठ करने के आप्रत्याशित लाभ बताते हैं ।लेकिन कई लोगों के पाठ करने पर कोई भी अंतर समझ में नहीं आता या उन्हें लाभ प्राप्त नहीं होता पाठ करने के बाद भी।
 इसका क्या कारण हो सकता है ।
पहला की जिसने भी इस पाठ को पढ़ने को बताया और लाभ बताएं उसने पूरी तरह से नहीं बताया कि पाठ कैसे किस विधि से किया जाए और कितनी संख्या में करने पर लाभ होगा ।
दूसरा कि जब हम कोई भी ईश्वर से संबंधित उपाय या कुंडली संबंधित उपाय करते हैं तो हमारे मन में पूर्ण विश्वास होना चाहिए न कि  तनिक भी संदेह । अगर संदेह उत्पन्न हुआ तो आप का उपाय करना निरर्थक साबित होगा।

हम यहां आपको बताएंगे चक्षुसी  विद्या का पाठ कैसे विधिपूर्वक करते हैं और कौन-कौन सी सामग्री इस पाठ को करने के लिए आवश्यक होती है ।
चक्षुसी विद्या का पाठ करने के कुछ नियम है ।
जैसे 1- लाल आसन पर बैठे 
       2- एक तांबे का छोटा कलश और एक पात्र एक चम्मच कुश धूपबत्ती या दीपक देसी घी का गुड़हल का फूल रोली कलावा 
3-सूर्य उदय  से 10 मिनट पहले सबसे ।
पहले नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें लाल आसन पर बैठे।
 यह छोटे कलश में गंगाजल भरें उसमें गुण रोली फूल कलावा जल में डाल ले । कर पात्र में भी थोड़ा सा गंगा जल भर ले । धूपबत्ती या दीपक प्रज्वलित कर ले । अब सूर्योदय से पहले श्री गणेश जी की वंदना करें फिर अपने कुलदेवी या कुलदेवता या अपने इष्टदेव का ध्यान करें ।
श्री आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ विनियोग के साथ करें ।तत्पश्चात कम से कम 11 पाठ थोड़ा समय हो तो 51 पाठ नित्य 51 दिनों तक करें और इस सबसे पहले हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं चक्षुसी विद्या  का 51 या 11 पाठ 51 दिनों तक लगातार करूंगा और इस पाठ में सभी से प्रार्थना करें अग्नि जल वायु आकाश पृथ्वी और सूर्य चंद्र देव सभी को साक्षी मानकर  पृथ्वी को प्रणाम कर  अपने नेत्रों के विकारों को दूर करने की प्रार्थना करे। अब विनियोग के साथ पाठ आरंभ करें ।
पाठ करते समय हाथ से कुशा के जल को ध्यान केंद्रित करते हुए कर पात्र के जल को कुश से घुमाते रहे। पाठ समाप्त करने पर सूर्य देव को तीन बार में जल अर्पित करें साथ ही कर पात्र में रखे जल को आंखों पर दवा के रूप में लगाएं । बस श्रद्धा पूर्वक नित्य पाठ करते रहे ।जब फायदा महसूस होगा तो 51 दिनों के बाद भी पाठ नित्य करने का अभ्यास करते रहे।
साथ ही जब भी सूर्य संक्रांति सूर्य या चंद्र ग्रहण हो तो 2 छोटे पीतल या तांबे के कलश ले दाहिने कलश में सफेद तिल सफेद सिक्का व बाएं कलश पीला सिक्का साथ में काले तिल भरकर पाठ करते समय रख ले। और पाठ करने के पश्चात योग्य ब्राह्मण को दान कर दे।
पंडित आशीष सी त्रिपाठी
ज्योतिषाचार्य

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