Friday, July 13, 2018

माँ तुम हो क्या और तेरे बिन मैं हु क्या

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ज़िन्दगी कुछ धीमी सी है
सांसे भी थमी सी है
आज दिन भी उदास सा है
वो मन्नते मुरादे और वादे
ये सब आज क्यों याद है आते
तुम हो तो ज़िन्दगी ज़न्नत सी लगती है माँ
पर तेरे बिन ये मंदिर की मन्नत ही लगती है
तेरे बिन उदास सा हूँ
जज्बात तो है लेकिन खामोश सा हूं
तुम्हारी वो सीख हिम्मत तो देती थी
पर तेरे बिना माँ ये दुनिया पैर खीच लेती है
इस दुनियां की भीड़ में अपने तो सारे है
लेकिन इन सब का साथ आसमान के तारे हैं
इनका मिलना जुलना अच्छा तो लगता हैं
पर तुम बिन सब बेगाना सा लगता हैं
तेरी वो डांट और छिपी हुई मुस्कराहट अच्छी लगती थी
पर ये दुनिया वालो की मुस्कराहट और छिपी हुई चाल साज़िश सी लगती है
मां तेरा होना ही सब कुछ था
पर सब कुछ तो है पर तु नही है
तेरा वो कड़कती धूप में पैदल चलना
मुझे गोद मे उठा कर तेरा न थकना
याद आता है
माँ आज फिर तेरा साथ याद आता है
माँ तुम हो क्या और तेरे बिन मैं हु क्या बता
क्या तुम्हे नही पता था
छोड़ दिया है तुमने तोड़ दिया है तुमने
अच्छा ये बता वापस आएगी न
डांट के मुस्कराओगी न
बता न माँ बता न माँ

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