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Wednesday, July 16, 2014

आत्मा क्या है ?

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आत्मा क्या है  ?
आत्मा
 एक प्रकार की उर्जा है जो शरीर को क्रियान्वित करती है गर्भ से लेकर जन्म तक क्रमशः धीरे धीरे बढ़ते  हुए 50 वर्ष की आयु के बाद घटना शुरू होती है योग और व्यायाम के आधार पर कभी कभी ये 60 वर्ष की आयु के बाद घटना शुरू होती है /
जैसे घड़ी और खिलौनों में लगे सेल उनमे जान ला देते है वैसे ही किसी भी शरीर की जान आत्मा होती है जैसे सेल की चार्जिंग जरुरी होती है वैसे ही आत्मा की चार्जिंग भी जरुरी होती है जैसे खिलौने के सेल ख़त्म होंने पर सेल बदले जाते है या कभी कभी पूरा खिलौना ही बदल दिया जाता है वैसे आत्मा की चार्जिंग ख़त्म होने पर शरीर नष्ट हो जाता है और आत्मा नए शरीर में नए तरीके से काम करना शुरू करती है या फिर ये समझा जाए  की शरीर और आत्मा दोनों का नया जन्म होता है /
हमे अपने शरीर को चार्ज करने के लिए किसी बाहरी साधन की आवश्यकता नहीं होती है न ही किसी प्रकार की दवा की जरुरत होती है / इसके लिए हमारा सबसे मुख्य गृह सूर्य है सूर्य देव को नित्य जल चडाना और ॐ का उच्चारण मात्र करने से ही दिन भर शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है / सूर्य से निकालने वाली किरणे जो एक प्रकार की उर्जा तरंगे होती है जो जीवन के लिए अति आवश्यक है / हम सिर्फ इतना विचार करे की सूर्य हो ही न मतलब सब ख़त्म सूर्य के बैगैर जीवन के कल्पना ही नहीं की जा सकती है /
इसलिए सूर्य के सामने सुबह आठ बजे से पहले जब वो उदय हो रहा  होता है और उससे निकलने वाली किरणे या उर्जा तरंगे सबसे ज्यादा फायदेमंद होती है / और उस समय हम सूर्य को आसानी से देख भी सकते है सूर्य को जल चडाते समय गिरते हुए जल को देखने से विटामिन डी की प्राप्ति होती है जो आँखों के लिए फायदेमंद होती है  / साइंस और मेडिकल साइंस ने भी अपने रिसर्च में ये माना है की बडे लोगो के लिये प्रतिदिन 10,000 आइ यू (International Unit) की मात्रा काफ़ी है।  इस आवश्यक मात्रा के लिये सप्ताह में दो बार 5 से 20 मिनट तक हाथ-पैरों पर सूर्यप्रकाश पाना शरीर की आवश्यकता भर के विटामिन डी के लिये काफ़ी है। शरीर के कई रोगों का इलाज तो सिर्फ सूर्य उपासना के द्वारा ही हो सकता है / अपने शरीर को तरोताजा रखने का सबसे बेहतर माध्यम सूर्य ही है /
आत्मा हमेशा शरीर और शरीर हमेशा आत्मा से बंधा होता है सभी कार्य आत्मा से होते है और करता है शरीर ,आत्मा ही सभी चीजों का उपयोग करने के लिए कहती है लेकिन उपयोग हमेशा शरीर ही करता है म्रत्यु हमेशा शरीर की होती है आत्मा हमेशा  रहती है जन्म से जन्म तक / अगर हम शरीर के द्वारा आत्मा को नियंत्रित कर ले तो ठीक उस बिगडे घोड़े को नियंत्रित करने जैसा होगा जो नियंत्रित होने के बाद  घुड़सवार के आदेश पर चलता है / वैसे ही हम अगर आत्मा को नियंत्रित कर ले तो हम काफी आनंदायक जीवन व्यतीत कर सकते है / और इस शरीर को बैगैर कष्ट पहुचाए आनंदित हो सकते है /  लेकिन आज की युवा पीडी शरीर को कष्ट पहुचाकर आनंदित हो रही है नशे के द्वारा वो शरीर को नष्ट  कर रहे है /
इसलिए हमेशा दण्डित और दोषी शरीर ही होता है न की आत्मा ! शरीर के द्वारा अध्यात्म के माध्यम से आत्मा को नियंत्रित किया जा सकता है /

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