Friday, April 15, 2011

ये रिश्ता क्या कहलाता है

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-: ये रिश्ता क्या कहलाता है :-
समाज में बदलती रिश्तो की परिभाषा समाज में बदलती अपनों की सोच अपनों के लिए ...
माँ अपनी ही बेटियों से गलत काम करवाती है ,पिता अपनी ही लडकियों को हवश का शिकार बनता है , गुरु अपने ही शिष्य पर गलत नज़र रखता है और भाई बहन के रिश्तो को ही शर्मसार करते है ...
आखिर इन रिश्तो की भी तो कभी मिसाल दी जाती थी लेकिन आज के समाज को ये क्या हो गया है / बिलकुल साबुन के विज्ञापन की तरह हो गया है .. पहले इस्तेमाल करे फिर विश्वास करे .. आखिर क्यों और कब तक लिव इन रिलेशन शिप पर चर्चा होती है तो कभी गुरु और शिष्य के अपवित्र प्रेम पर ...कही ये ख़त्म होते रिश्तो की शुरुआत तो नहीं अगर कही ये शुरुआत है तो अंत जानवरों के रिश्तो पर जा के खत्म होगा जहा सभी रिश्ते मायने ही नहीं रखते वो सिर्फ खाने के लिए ही जीते है और आपसी संघर्ष में मारे जाते है ...
ये रिश्ता क्या कहलाता है की सोच मुझे समाज में हो रहे रिश्तो के क़त्ल को सोच कर आई क्या रिश्ते आज के समाज के लिए कोई मायने नहीं रखते है रिश्तो में बडती कडवाहट और घटा सामजिक परिवेश ही ख़त्म होते रिश्तो की असली वजह है एकाकी जीवन शैली और घटी अपनी पुरानी सभ्यता
-- जहा सयुक्त परिवार में रह कर सभी खुश रहते थे वही एकांकी जीवन शैली में घुट घुट कर जीने को मजबूर है ...आज टी वी से बड़ा हुआ बचपन अपने ही रिश्तो को नहीं पहचानता .. कारण न माँ के आँचल का छाव मिलता है न पिता की डाट .. शायद इसलिए ही रिश्तो की डोर कमज़ोर होती जा रही है
देश का बहु चर्चित आरुशी और हेमराज मर्डर केश सालो लग गय पुलिस और सी बी आई को ये पता लगाने में में आखिर कत्ल क्यों हुआ और किसने किया फिर भी नतीजा सिफ़र रहा ..एक लड़की का कत्ल उसके ही घर में हो जाता है और आज तक किसी को भी ये नहीं पता चला की कतला क्यों और कैसे हुआ .. शायद मालोममालूम सबको है लेकिन कोई बताना नहीं चाहता है कभी तलवार दम्पति कोर्ट में जाकर इंसाफ मांगते है तो कोई उनको ही गुन्हेगार बता कर उन पर ही हामला कर देता है आखिर क्यों क्या यभी भी रिश्तो में अपनापन नहीं था अपनों को समझाने की ताकत नहीं थी ..ये बात सभी को मालूम है की किसी को भी किसी का कत्ल करने में एक दिन नहीं एक घंटा नहीं एक मिनट नहीं कई दिन लगते है लेकिन एक सेकण्ड में उसको मार देते है ...यानि अरुशी और हेमराज को मारने में किसी न किसी बात का खुलना या राज फाश होना था .. क्या आपसी रिश्तो में इतनी दुरी आ गई थी की एक माकन में रहते हुए भी कोई किसी की भी परेशानियों को नहीं समझ पा रहा था सभी अपनी खुशिया खुद तलाश रहे थे ...क्या मेट्रो लाइफ इतनी तेज़ी से चलती है की लोगो के पास अपनों के लिए ही समय नहीं है अगर एसा ही रहा तो एक दिन हम में से कोई पड़ा होंगा सड़क पर और हमारा ही भाई ये कहते हुए निकल जायेगा की ये तो रोज़ की बात है .../

और दूसरी और कानपुर के बहुचर्चित दिव्या कांड को भला कौन कानपुर वाला भूल पायेगा ..जहा शिक्षा के मंदिर में ही गुरु ने अपनी ही शिष्य को अपनी हवश का शिकार बना डाला ..और उसकी जिंदगी बचाने के बजाय उसको छोड़ दिया मरने के लिए और वो मर भी गई शायद जीती तो रोज़ मरती..लेकिन ये मौत ज्यादा अच्छी थी समाज की आंखे खोलने के लिए ..कानपुर के दिव्या कांड में कई ऐसे नाटकीय मोड़ आये जब रिश्तो को अपमानित और टूटे देखा गया कभी पडोसी तो कभी दिव्या के ही मकान में रहने वालो पर पुलिस की बर्बरता कभी मुह बोले चाचा मुन्ना को ही उसका कातिल बता दिया गया लेकिन हर बार असली गुनहगार बचता रहा क्यों / क्योंकि यहाँ जनता और पुलिस के रिश्तो की डोर को कमज़ोर किया जा रहा था ..जहा आज रिश्तो से बड़ा पैसा हो गया है जिसके हाथ में जितनी मोती गड्डी होगी हम उसको उतनी ही देर तक साथ देते रहेंगे ..लेकिन आज के समाज का कड़वा सच यही है जहा रिश्तो से ज्यादा लोग पैसो को तवज्जो देते है ..लेकिन दिव्या कांड में जो रिश्ता कलंकित हुआ वो शर्मशार कर देने वला था ..क्योंकि ये रिश्ता था शिक्षा के मंदिर में गुरु और शिष्य का काफी लोगो ने कहा भी ये गलत था लेकिन इसके बाद भी गुरु और शिष्य को बदनाम करने वाली घटनाय कानपुर में होती रही ..लेकिन यहाँ असली गुनहगार को सजा मिल गई ..
लेकिन दिव्या कांड के साथ एक और कांड कानपुर में हुआ लेकिन उसको लोगो की उतना साथ नहीं मिला जितना दिव्या को मिला शायद कह सकते है की केस लगभग एक ही तरह का था लेकीन उम्र और जगहों का अंतर था ..ये था कविता कांड जहा भगवान स्वरुप समझे जाने वाले डाक्टर के मंदिर स्वरुप अस्पताल में कविता के साथ भी गलत होता है और दोषी बच जाता है जबकि कविता की मौत हो जाती है ....जहा लोग डाक्टर को भगवान और अस्पताल को मंदिर समझते है वहा ऐसे काम होते है इन रिश्तो को क्या कहेंगे क्या यहाँ भी मेट्रो लाइफ हावी है नहीं कम से कम यहाँ तो नहीं है मेट्रो लाइफ फिर भी रिश्तो में ऐसा सौतेलापन क्यों ..लेकिन यहाँ जहा रिश्ते भगवान के करीब से पूजे जाते है और कविता अपने लिए जिंदगी मांगने आई थी वहा उसको बदनामी और मौत मिली ..परिवार वाले रॉय चिल्लाय लेकिन कुछ नहीं हुआ क्यों ये सब जानते है ..
खास बात ये थी की दिव्या और कविता कांड में की दोनों ही जगह अच्छे माने जाने वाले रिश्तो को बदनाम किया गया लेकिन अपनों का अपनापन न मिल पाने की वजह से कोई जीता तो कोई हारा ...
इसे ही न जाने कितने कांड शीलू अरुशी दिव्या कविता नित्य नए रिश्तो की कमज़ोर होती डोर का शिकार होती है ..लेकिन ये तो शुरुआत है अंत कितना भयावह होगा ॥
ये रिश्ता क्या कहलाता है
रिश्तो की डोर रिश्तो से है कमज़ोर
रिश्ते ही थामे है जीवन की बागडोर
आखिर ये रिश्ता क्या कहलाता है
कभी अपनों को सहलाता कभी है बहलाता
...
कभी हाथ मिलाकर कभी गले लगाकर
कभी हस कर तो कभी रो कर
रिश्ते अपनों की याद दिलाते
आखिर ये रिश्ता क्या कहलाता है ...
फिर क्यों रिश्ते टूटते जाते है
रिश्ते क्यों बदनाम होते जाते है ..
कभी गुरु का शिष्य से कभी पिता का पुत्री से
कभी भगवान का भक्त से कभी इन्सान का इन्सान से
आखिर ये रिश्ता क्या कहलाता है ...


ये रिश्ता क्या कहलाता है

ये रिश्ता क्या कहलाता है




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