Saturday, September 22, 2018

राजनीति का आनंद

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राजनीति का ''आनंद ''


प्रदेश में नई सरकार आने के बाद नौकरियों में चली आ रही आपाधापी ख़त्म सी हो गयी थी । इसी बीच हमारी सालों से चली आ रही सरकारी नौकरियों की तैयारी को मानो पंख से लग गए हो । एकदम साफ और निष्पछ ब्यवस्था से पढने-लिखने वाले छात्रों को एक नई राह दिखाई थी । हमने भी पुलिस में दरोगा के लिए फॉर्म भरा और लिखित परीक्षा व साक्षात्कार के बाद हमारा चयन दारोगा के पद पर हो गया । कुछ दिनों में हमे जोइनिंग भी मिल गयी।  अब हमारे परिवार में सभी खुश थे कि सालों की मेहनत के बाद हमारी मेहनत का फल हमे मिला। हमारी पहली पोस्टिंग के कुछ दिनों बाद मेरे जिले के सरकारी विद्यालय में आज प्रदेश के शिक्षा मंत्री का निरिक्षण था और हमारे वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हमे भी उनकी सुरक्षा ब्यवस्था के लिए तैनात किया गया था । हम सभी उनके स्वागत के लिए आतुर थे की उनके काफिले में लगभग १० गाड़ियाँ थी जो हूटर बजाते हुए रुकीं । उनके उतरते ही सभी ने उनका अभिवादन किया और जैसे ही उन शिक्षा मंत्री को मैंने देखा मेरी आँखे खुली की खुली रह गयीं । उन्होंने भी हमे देखा और हल्की सी मुस्कराहट के साथ मेरे कंधे पर हाँथ रखा और आगे बढ़ गए मई । काफी देर तक अचम्भित सा था वर्तमान से मै अचानक 10 साल पीछे अतीत में चला गया और अपने स्कूल की यादों में खो सा गया । मेरे कानो के आस पास अब शोर की जगह सिर्फ सन्नाटा था और अतीत के पन्नो को मैं देख रहा था । मेरे स्कूल के दिनों में हम चार दोस्त हुआ करते थे। मैं आनन्द,दीपक और राजशेखर । दीपक बेहद गरीब परिवार से था और उसके पापा चाय की दुकान चलाते थे हाईस्कूल की परीक्षा के दौरान उसके पापा की अचानक मौत हो गयी और उसे परीक्षा के समय ही पढाई छोडनी पड़ी और अपने पापा की चाय की दुकान को सँभालने लगा । अब हम तीनो स्कूल के बाद दीपक की चाय की दुकान पर पहुँच जाते थे ताकि दीपक को  बुरा न लगे । अब हम तीनो में राजशेखर और मैं ही पढाई मे तेज थे । आनन्द बेहद ही झगड़ालू प्रवत्ति का था और अक्सर किसी न किसी बात पर उसकी स्कूल में लड़ाई हो जाती थी । उसके पापा ठेकेदार थे जिससे पैसों की कमी उसको नहीं हुआ करती थी । वो तो हमेशा कहा करता था कि पढ़ लिख कर कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता है सिर्फ सरकारी नौकरी ही मिल सकती है । इंटर करने के बाद हम सभी अलग-अलग हो गए । राजशेखर बड़े शहर से पत्रकारिता का कोर्स करने चला गया । आनन्द अपने के परिवार  के साथ भी गावं छोड़कर चला गया । बस मैं और दीपक ही गावं में रह गए । दीपक को हमेशा आगे न पढ़ पाने का मलाल था । वह आगे कर भी नहीं कुछ सकता था ।
मैं भी नौकरी के लिए तैयारी करता रहा और नौकरी मिली भी लेकिन सालों बाद जब वापस वर्तमान में खड़ा था तो शिक्षा मंत्री आनन्द शर्मा के सामने । जो कभी मेरे साथ पढता था और हमेशा यही कहता था कि पढाई-लिखाई से सिर्फ नौकरी मिल सकती है बड़े आदमी नहीं बन सकते ।
तभी किसी ने मुझको आ कर हिलाया और कहा की सर कितनी देर से आप को बुला रहे है क्या सोच रहे हो तुम्हारा ध्यान किधर है । तभी हमने अपने वरिष्ठ अधिकारियों की ओर कदम बढ़ा दिया और जैसे उनके सामने पहुंचा उन्होंने कहा की तुम्हे मंत्री जी की सुरक्षा के लिए लगाया गया था की सपने देखने के लिए जाओ तुम्हे मंत्री जी बुला रहे है । और मैं मंत्री जी के कमरे की ओर बढ़ा , तभी उन्होंने कहा कि आओ गौरव आओ।  सभी मेरी ओर आश्चर्य से देखने लगे । उन्होंने हमे बैठने के लिए कुर्सी भी दी सभी मुझे ही घूर रहे थे । तभी आनन्द ने कहा कि गौरव मेरा दोस्त है मेरे साथ पढ़ा है और हम सब साथ में ही खेलते थे । गौरव ये बता कि दीपक कैसा है ,वह बेचारा बहुत गरीब था ,क्या वह अभी भी चाय का होटल ही चला रहा है ? मुझे अच्छा लगा कि आनन्द को सब कुछ याद है और वह राजशेखर बड़े अख़बार में संपादक है ,मैंने हाँ में सर हिलाया अच्छा ये बता तुझे नौकरी कब मिली मैंने कहा सर यह पहली पोस्टिंग ही है । तभी आनन्द अचानक से उठता है और सभी लोग उसके साथ खड़े हो जाते है। आनन्द ने मुझसे कहा गौरव तू चल अभी रात में गेस्टहाउस में आकर मुझसे मिल , वही पर बात करेंगे । मैंने हाँ में फिर सर हिलाया । बोल कर बाहर आ गया । अपने अधिकारियों के निर्देश पर उनकी सुरक्षा में लग गया । उनके जाने के बाद यह बात सब को पता चल गयी की आनन्द और मैं एक साथ पढ़े थे ,सब अपनी अपनी दोस्ती का हाँथ मेरी ओर बढाने लगे । उनके जाते ही मैं निराश सा घर आ गया ।
सब ने मुझसे पूछा की इतना उदास और थके हुए से क्यों हो ? तब मैंने बताया की अपने गावं में जो आनन्द मेरे साथ पढता था वही आनंन्द शर्मा आज शिक्षा मंत्री है।  तभी बाबूजी ने पूछा वो शर्मा ठेकेदार का लड़का ,मैंने हाँ में सर हिलाया तो बाबु जी ने कहा इसमें खुश होने की बात है।  उसने तुझे पहचाना कि नहीं ,मैंने कहा की उसने मुझे पहचाना भी और साथ में बैठाया भी और शाम को गेस्टहाउस पर भी बुलाया है। पापा पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। न ही उससे मिलने की कोई खुशी है। घर वालों का व्यवहार भी आनंद के प्रति सम्मानजनक था, पर मेरा उसका मंत्री बन जाना अच्छा नहीं लग रहा था । ये कोई जलन नहीं थी, ये सिस्टम का दोष था । मेरी नाराजगी आनंद से नहीं थी , बल्कि सिस्टम से थी ।
रात को मैं आनन्द से मिलने उसके गेस्टहाउस पहुंचा । उससे मिलने के लिए मुझे अपना परिचय भी देना पड़ा। जबकि मैं अपने दोस्त से मिलने गया था । तभी आनंन्द ने अन्दर से मुझे बुला लिया । अब कमरे में आनन्द और मेरे सिवा कोई नहीं था ,था तो सिर्फ सन्नाटा । आनन्द ने मुझे एक दोस्त के तरीके गले लगा लिया और कहा की ये सब सुरक्षा और इज्जत मंत्री का पद सब दूर से अच्छा लगता है,  मैं अपनों से ही नहीं मिल सकता और न ही अपनों के लिए टाइम है। लेकिन आज तुझे देखते ही लगा कि कोई अपना मिला, इसीलिए तुझे बुला लिया लेकिन तू ये बता तू इतना उदास सा क्यों है? क्या तुझे अच्छा नहीं लगा मुझसे मिलकर ? नहीं ,मतलब मुझे भी अच्छा लगा लेकिन दीपक तू राजशेखर और मैं चार लोग साथ में थे । दीपक आज सबसे निचले स्तर पर है और तू सबसे ऊपर।  राजशेखर भी एक अच्छी स्थिति में है और मेरे पास भी सरकारी नौकरी। मुझे तुझसे या तेरी शानोसौकत से कोई दिक्कत नहीं है । लेकिन एक सवाल मन में है कि दीपक पैसों की वजह से पढ़ नहीं सका और तू मतलब आप पढाई में इंटरेस्ट ही नहीं रखते थे । तुम कहा भी करते थे कि पढ़-लिख कर कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता मैंने और राजशेखर दोनों ने पढाई की और दोनों नौकरी कर रहे है । दीपक के पास एक अच्छी दुकान है लेकिन वेतन के मामले में हम दोनों से महीने में अच्छा कमा रहा है । मतलब बिना पढाई के वो हमसे ज्यादा कमा रहा है ,लेकिन मेहनत करके।  दूसरी तरफ तुम जिसने पढाई की और मंत्री बन गए और हम जैसे लोग आपकी सुरक्षा में लगे हुए है ।
मतलब क्या शिक्षा व्यवस्था इतनी लाचार है या देश का सिस्टम इतना ख़राब है । यहाँ पढाई का कोई  मोल नहीं है । अगर राजशेखर भी जोकि संपादक है बड़े अखबार में वो भी तुझसे मिलना चाहे तो उसको तुमसे टाइम लेना पड़ेगा। तब जाकर तुम उससे मिलोगे । तुमने पढाई से ज्यादा दूसरी चीजों पर ध्यान दिया है और प्रदेश में शिक्षा मंत्री बन गए । तुमने ही तो कहा था कि पढ़-लिख कर सिर्फ सरकारी नौकरी ही मिल सकती है । कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता है। राजनीति का ''आनंद'' , अगर आनंद लेना है तो राजनीति में आ जाओ पढाई लिखाई कि जरुरत ही नहीं है । सिर्फ नेता बन जाओ फिर जो चाहो वो करो । फिर किसी को भी इधर से उधर कर सकते हो और किसी को कही भी बैठा सकते हो । गौरव मेरी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी और हम दोनों शांत हो गए।
लेकिन सच्चाई यही है कि यह गौरव की बात नहीं है यह एक आम इन्सान की बात है जो पढ़-लिख  मेहनत करके नौकरी पाता है और एक अपराधी चुनाव जीत कर उस इन्सान को ही हड़का देता है यही है राजनीति का ''आनंद''


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