Saturday, June 23, 2012

षड्बल

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|| श्री गणेशाय नमः ||
षड्बल :- षड्बल से तात्यापर्य उन 6 प्रकार की बलों से है जिसके द्वारा ग्रहों की गतिशीलता और शक्ति का पता चलता है षड्बल में निम्न लिखित 6 प्रकार के बल आते है |
1 )  स्थान बल अर्थात स्थिति के अनुसार बल 
2 )  दिग्बल अर्थात दिशाओं से प्राप्त बल
3 )  काल बल अर्थात समय विशेष से प्राप्त बल
4 )  चेष्टा बल अर्थात गति से प्राप्त बल     
5 )  नर्सैगिक बल
6 )  द्रिक बल अर्थात अन्य ग्रहों द्वारा दृष्टि संयोग से प्राप्त बल
वृहद पराशर होरा शास्त्र जातक पारिजात शरावाली तथा फलदीपिका आदि प्रमाणित ग्रंथो में इन सभी बलो का सन्दर्भ मिलता है | दशा अंतर दशा में मिलने वाले शुभ अशुभ फल इस बात पर निर्भर करते है की उस ग्रह का सापेक्ष बल कितना है | सामान्य तौर पर दशानाथ का फल उस सपूर्ण दशा काल में मिलता है किन्तु अंतर दशा नाथ का फल प्रमुखतः अंतर दशा काल में ही प्राप्त होता है |
यदि दशा नाथ बलि हो और अंतर दशा नाथ निर्बल हो तो दशा नाथ का फल अधिक प्रभावी होता है |  और यदि अंतर दशा नाथ बलि हो और दशा नाथ निर्बल तो अंतर दशा नाथ ही अधिक प्रभावी होगी | अर्थात दशा नाथ और अंतर दशा में जो बलि होगा उसका ही फल देखने को मिलता है |
उदाहरण :- जन्म विवरण :- 12/13 सितम्बर 1981 समय रात्रि के 1:30 मिनट स्थान दिल्ली
            48 घटी 32 पल सूर्योदय 6:5 मिनट सूर्यास्त 18:19 मिनट

ग्रह
लग्न स्पष्ट
भोगांश अंशो में
लग्न
2S 26O20’
86.430
सूर्य
4S 26O 22’
146.370
चन्द्र
10S 90 30’
309.370
मंगल
3S 130 11’
103.180
बुद्ध
5S 200 32’
170.530
गुरु
5S 200 27’
170.450
शुक्र
6S 60 16’
186.270
शनि
5S 160 26’
166.430
राहु
3S 70 10’

केतु
3S 70 10’

स्थान बल :- प्रत्येक ग्रह एक राशि व भाव विशेष में होता है और इसकी स्थित अन्य ग्रहों के द्वारा द्रिस्ट होने के कारण यह निर्दिष्ट बल प्राप्त करता है जिसे स्थान बल कहा जाता है |
षड्लब के लिए गणना का आधार रूपा व षशट्यांश है |
एक रूपा = 60 षशट्यांश |
स्थान बल में निम्न प्रकार के पांच बल आते है |
1-उच्च बल   2-सप्त्वर्गीय बल      3-युग्मा युग बल     4-केंद्र बल    5-द्रेष्कान बल
कोई भी ग्रह एक विशेष राशि में स्थित होता है तो वह उपर्युक्त किसी भी प्रकार से हो सकता है |
उच्च बल :- जब ग्रह अपने सर्वोच्च स्थान पर होता है तो उसे उच्च बल के रूप में 60 षशट्यांश बल अर्थात एक रूपा बल मिलता है | इस प्रकार ही अगर ग्रह अपने नीचस्थ स्थान पर होता है तो उसका ग्रह बल शुन्य हो जाता है | अर्थात उसको उच्च बल के रूप में 0 षशट्यांश बल मिलता है |
निम्न स्थान से उच्च स्थान की और जाते हुए उपरोक्त बल में वृद्धि होती है | इस प्रकार से ही उच्च स्थान से नीच स्थान की और जाते हुए उपरोक्त बल में कमी हो जाती है | भचक्र में इन दोनों स्थानों  के बीच की दूरी 180 अंश है | इस दुरी को तय करने पर ग्रह का षशट्यांश बल प्राप्त होता है |
उच्च्बल = ग्रह का भोगंश ~ ग्रह का नीच बिंदु / 3
146.37/3 =43.63




ग्रह
भोगांश अंशो में
नीच बिंदु
अन्तर
उच्च बिंदु
लग्न
86.430



सूर्य
146.370
6s 100
43.63
14.54
चन्द्र
309.370
7s 30
96.5
32.17
मंगल
103.180
3s 280
14.82
4.9
बुध
170.530
11s 150
174.47
58.16
गुरु
170.450
9s 50
104.55
34.85
शुक्र
186.270
5s 260
9.26
3.09
शनि
166.430
0s 200
199.23
48.81
सप्त्वर्गीय बल :- सप्त्वर्गो में स्थित होने के कारण ग्रह को बल प्राप्त होता है उसे सप्त वर्गीय बल कहा जाता है |यदि ग्रह मूल त्रिकोण राशि में स्थित है तो उसे 45 षशट्यांश बल मिलता है ग्रह यदि स्वराशी में है तो उसे 30 षशट्यांश बल मिलता है ग्रह यदि अधि मित्र की राशि में है तो उसे 22.5 षशट्यांश बल मिलता है |
मूलत्रिकोण        45षशट्यांश
अपनी राशि   30 षशट्यांश
मित्र राशि    15    षशट्यांश
सम राशि    7.5   षशट्यांश
शत्रु राशि    3.75 षशट्यांश
अधि शत्रु    1.875  षशट्यांश
पंचधामैत्री चक्र :-
सप्त्वर्गीय तालिका :-
सप्तवर्ग
सूर्य
चन्द्र
मंगल
बुध
गुरु
शुक्र
शनि
D1
45
3.75
7.5
45
1.875
45
7.5
D2
7.5
7.5
7.5
22.5
22.5
7.5
7.5
D3
22.5
3.75
30
22.5
7.5
30
30
D7
7.5
3.75
30
1.875
7.5
15
7.5
D9
22.5
3.75
15
1.875
7.5
15
22.5
D12
15
3.75
22.5
22.5
7.5
15
3.75
D30
7.5
3.75
22.5
3.75
3.75
22.5
3.75
TOTAL
 127.5
30
135
120
58.125
150
82.5
युग्मायुग बल :- राशि चक्र व नवमांश चक्र में ग्रह सम व विषम राशि में स्थित होने के कारण उसे युग्म बल प्राप्त होता है उसे युग्मायुग्म बल कहते है |
चंद्रमा व शुक्र ग्रह D1 तथा D9 में समराशि में बलि होते है | और बलि होने पर  प्रत्येक में 15 षशट्यांश बल मिला है |
सूर्य मंगल बुध गुरु शनि विषम राशियों में स्थित होने पर बलवान होते है |
ग्रह
D1

D 1
D9

D 1
D 9
योग
सूर्य
5
विषम
15
8
सम
15
0
0
चन्द्र
11
विषम
0
9
विषम
0
0
0
मंगल
4
सम
0
7
विषम 
0
15
15
बुध
6
सम
0
4
सम
0
0
0
गुरु
6
सम
0
4
सम
0
0
0
शुक्र
7
विषम
0
8
सम
0
15
15
शनि
6
सम
0
2
सम
0
0
0
कुल योग 45
   
केंद्र बल :-केंद्र बल को केवल जन्मकुंडली के आधार पर ही देखा जाता है | केंद्र(1,4,7,10)  में स्थित ग्रहों को 60 षशट्यांश बल प्राप्त होता है | पनफर (2,5,8,11,) स्थित ग्रहों 30 षशट्यांश  बल प्राप्त होता है ओपोक्लिम(3,6,9,12) में स्थित ग्रह को 15 षशट्यांश बल प्राप्त होता है |
ग्रह
भाव
केंद्र बल
सूर्य
ओपोक्लिम
15
चन्द्र
ओपोक्लिम
15
मंगल
पनफर
30
बुध
केन्द्र  
60
गुरु
केन्द्र
60
शुक्र
पनफर
30
शनि
केंद्र
60

कुल
270

द्रेष्कान बल :-ग्रहों को तीन श्रेणियों में रखा गया है |
पुरुष                    नपुन्षक                  स्त्री
सूर्य मंगल गुरु             शनि बुध             शुक्र चन्द्र
पुरुष ग्रह जिस राशि में स्थित होते है उसके प्रथम द्रेष्कान में 0-10  में 15 षशट्यांश बल प्रदान किया गया है | दूसरे व तीसरे द्रेष्कान में शुन्य षशट्यांश बल मिलता है |
नपुंसक ग्रह जिस राशि में स्थित होते है उसके दूसरे द्रेष्कान में 15 षशट्यांश बल मिलता है जबकि प्रथम व तीसरे द्रेष्कान में शुन्य षशट्यांश बल मिलता है |
स्त्री ग्रह जिस राशि में स्थित होते है उसके तीसरे द्रेष्कान में 15 षशट्यांश बल मिलता है जबकि प्रथम व दूसरे द्रेष्कान में शुन्य षशट्यांश बल मिलता है |
द्रेष्कान सारणी :-
ग्रह
लिंग
राशि अंश
द्रेष्कान
बल
सूर्य
पुरुष
26
3
0
चन्द्र
स्त्री
9
1
0
मंगल
पुरुष
13
2
0
बुध
नपुंसक
20
3
0
गुरु
पुरुष
20
3
0
शुक्र
स्त्री
06
1
0
शनि
नपुंसक
16
2
15

कुल स्थान बल सारणी :-
ग्रह
उच्च बल
सप्त्वर्गीय
युग्मा युग्म
केंद्र
द्रेष्कान
कुल स्थान बल
सूर्य
14.5
127.5
15
15
0
172.04
चन्द्र
32.17
30
0
15
0
77.17
मंगल
4.94
135
15
30
0
184.94
बुध
58.16
120
0
60
0
238.94
गुरु
34.85
58.13
0
60
0
152.98
शुक्र
30.09
150
15
30
0
225.09
शनि
48.81
82.5
0
60
15
206.31
स्थान बल सबसे अधिक बुध को मिला है | जन्म कुंडली में बुध कन्या राशि में स्थित है | कन्या राशि की दिशा दक्षिण दिशा है |अतः जातक के लिए दक्षिण दिशा उत्तम रहेगी |प्रत्येक क्षेत्र के लिए दक्षिण दिशा उत्तम रहेगी |
\ ग्रहों का उच्च और नीच स्थान
ग्रह
सूर्य
चन्द्र
मंगल
बुध
गुरु
शुक्र
शनि
राशि अंश
राशि अंश
राशि अंश
राशि अंश
राशि अंश
राशि अंश
राशि अंश
उच्च
0-10
1-3
9-28
5-15
3-5
11-27
6-20
नीच
6-10
7-3
3-28
11-15
9-5
5-27
0-20

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