हम सभी अपने जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक एक स्वार्थी चरित्र को अपने साथ लेकर चलते हैं कि जैसे ही एक बच्चा बच्चा बड़ा होता है और जैसे ही जीवन जीने की समझ उसमे आती है वह स्वार्थी चरित्र उसे घेर लेता है ऐसा नहीं कि वह ऐसा करता है लेकिन हमारे समाज में ज्यादातर लोग ऐसा ही करते हैं और जैसा सब करते हैं वैसा मनुष्य चरित्र है तो हम भी करते है । अपने आसपास जैसा देखते हैं वैसा देश काल और परिस्थिति के अनुसार करने लगते हैं।
मौजूदा समय प्रकृति द्वारा दिया गया एक ऐसा समय है जो हमें दोबारा न मिले अपने जीवन में शायद ।
जहां हम अपने आसपास की घटनाओं को जैसे घटित हुए देख रहे हैं वह शायद हमने कभी सोचा भी हो।
कोरोना वारियर्स जिन्हें मालूम है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति द्वारा संक्रमण उन्हें भी हो सकता है बावजूद इसके वह अपने फ़र्ज़ पर डटे हैं फिर चाहे वह डॉक्टर हो पुलिस हो यह फिर सफाई कर्मी ।सभी अपने फर्ज पर लगातार डटे हुए हैं। यह कार्य जो ये सब कर रहे है यह सालो से कर भी रहे थे लेकिन खास बात यह है कि जब लॉक डाउन में सभी अपने घरों में सुरक्षित रहने के लिए बाध्य है वहीं कोरोना वारियर्स फ्रंट लाइन पर डटे हुए हैं ।
जिसके लिए उन्हें अतिरिक्त कुछ और नहीं मिलना है ऐसे में इनका सम्मान कर हौसला बढ़ाना इनके लिए सच्चा और श्रेष्ठ पुरस्कार होगा । जिसको देश के प्रत्येक नागरिक को उनका सम्मान और हौसला बढ़ाना चाहिए और ऐसा लोग कर भी रहे हैं ।तीनों सेनाओं द्वारा भी कोरोना वारियर्स का हौसला बढ़ाया गया ।
मनुष्य अपने वर्तमान समय में अगर यह सब देखे तो कहीं ना कहीं देश के प्रधान सेवक से लेकर अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति निस्वार्थ भाव से देश के सच्चे नागरिक की भूमिका निभा रहा है । लेकिन हमेशा से ही अपवाद शब्द ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा और ऐसे संकटकाल में भी वह अपवाद स्वरूप कुछ लोग स्वार्थ साध रहे हैं । कुछ लोग जो रोज खाने कमाने वाले कुछ रुपयों के साथ लॉक डाउन में गुजर-बसर करना चाह रहे थे।कुछ लोग कम दामो की वस्तुवों को महंगे दामो में बेचकर अपना स्वार्थ सिद्ध करके देश में आये संकट को एक त्योहार समझ कर लोगो को लूटने में लगे थे।
यही मनुष्य का स्वार्थ है जिससे वह अपने जीवन में घटने वाली अचानक घटनाओं को निमंत्रण देता रहता है ।
सेठ साहूकारों ही सिर्फ इस स्वार्थ वाली पंक्ति में अकेले नही खड़े थे बल्कि नीचे तबके के लोग भी इस संकट की घड़ी में अपना अपना स्वार्थ ढूंढ रहे थे।
देश में आए इस संकट काल में कई समाजसेवी संस्थाओं ने भी अपने स्तर पर सहयोग किया और और गरीब लोगों के लिए खाने का इंतजाम किया ताकि कोई भी व्यक्ति भूखा ना रहे बल्कि सुरक्षित रहें स्वस्थ रहें ।
सरकार ने भी अपने स्तर पर लोगों को राहत दी मुफ्त राशन से लेकर पैसे और पका हुआ भोजन वितरण करके सहयोग किया।
यहां पर भी अपवाद स्वरू वह स्वार्थी जनता जरूरत न होने पर भी खाने और सरकारी मदद के लिए पुरजोर कोशिश करने में लगी हुई थी ।
देने वाला तो निस्वार्थ भाव से ही दे रहा था लेकिन लेने वाला जरूरत ना होते हुए भी स्वार्थ वस खड़ा हुआ था उस लाइन में ।
सवाल यह उठता है कि ऐसे लोग जो उस लाइन में नहीं लग सकते है लेकिन भूखे थे या वह लोग जो भूखे थे और उसी लाइन में खड़े थे लेकिन उनका नंबर अंत में आता था और जब तक उनका नंबर आता भोजन खत्म हो चुका होता था ।
क्या वह लोग जो जरूरत ना होते हुए भी स्वार्थ व दूसरों का हक मार रहे थे सही थे । नही जब देश या राज्य पर संकट आये तो अपने अनुसार लोगो की मदद करनी चाहिये ना कि सवार्थी बनकर संकट काल में भी ऐसा करना चाहिए ।।
एक व्यक्ति बच्चे के रोने पर उसके लिए बिस्कुट व अन्य सामान लेने के लिए दुकान पर जाता है उस दुकान पर ही दूसरा व्यक्ति भी पहुचता है जिसे जरूरत नही भी थी फिर भी । तीसरा व्यक्ति दुकानदार होता है।
यहीं पर स्वार्थ और निःस्वार्थ दोनों तरह के लोग और तीसरा जरूरतमंद तीनों खड़े हुए हैं । जिसको जरूरत है वह बच्चे को भूख शांत कराने के लिए बिस्कुट का पैकेट लेने के लिए आता है लेकिन उसके पहले ही दूसरा व्यक्ति जरूरत ना होने पर भी बिस्कुट लेने के लिए आता है और दुकानदार से बिस्कुट के लिए कहता है दुकानदार के हां में जवाब देने पर जितने भी बिस्कुट उसके पास हो देने के लिए कहता है ।
यह बात सुनकर वह पिता जो अपने बच्चे भूख शांत करने के लिए बिस्कुट लेने के लिए आया था वह यही सोच रहा था क्या अभी मैं बिस्कुट नहीं ले पाऊंगा मेरा बच्चा रोता रहेगा। लेकिन तभी दुकानदार के यह कहकर उसके परेशानी और बढ़ा दी थी एक ही पैकेट मेरे पास है और वह गैर जरूरत वाला व्यक्ति लेकर चला जाता है ।
वह व्यक्ति जो बच्चे के रोने पर बिस्कुट का पैकेट लेने के लिए आया था जाने लगता है तभी दुकानदार उसको रोक कर उससे भी बिस्कुट का पैकेट देने लगता है उस पर उस पिता ने पूछा कि अभी तो आपने एक होने की बात कही थी इस पर दुकानदार ने कहा मुझे तो बेचना ही है और बेचकर उतना ही पैसा मिलेगा चाहे वह 10 पैकेट एक व्यक्ति दे दूं या 10 अलग अलग व्यंक्तियो को। इससे अच्छा है 10 लोगो को देकर सबकी जरूरत पूरी की जाए न कि बेवजह खरीददारी करने वाले लोगो की ।
आगे दुकानदार ने कहा मेरे पास पर्याप्त मात्रा में है और थोक बाजार में भी सब कुछ पर्याप्त मात्रा में है फिर भी कुछ लोग स्वार्थ वस अपने घर में एकत्र कर रहे हैं क्यों उनको यह बात खुद भी नहीं पता । लेकिन वह यह काम कर रहे हैं। यह वही लोग हैं जो दूसरों का हक मारने के लिए सड़कों पर टहल रहे हैं । इस सच्ची घटना के द्वारा हम यह कह सकते हैं कि यह सब घटनाएं हमारे आसपास भी घटित हो रही हैं लेकिन हम क्या कर रहे हैं स्वार्थ वस चुप है या निःस्वार्थी बनकर मदद कर रहे है ।
कहानी छोटी है लेकिन सीख बड़ी है कि अगर ऐसा संकट देश पर आएगा तो एक सच्चा नागरिक अपना स्वार्थ देखेगा या देश के साथ खड़े होकर देश हित में कदम उठाएगा ।
देश भी आपका समय भी आपका सोचे आप देश के लिए आपका वर्तमान समय मे क्या करते है ताकि भविष्य के लिए लोगो को क्या संदेश और सीख देते है । आप पर ही निर्भर करता है ।
जय हिंद
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