तेरे मेरे सपने .....
और सभी की आपसी बातचीत के बाद सलोनी ने अपने सपनो को कुचल कर विपिन में अपने सपने पूरे करने की सोची क्योंकि घर का सबसे छोटा बच्चा वैसे ही प्यराहोता है और दो बहनों के बाद विपिन का होना वैसे भी परिवार के लिए खुसिया ले कर आया था इसलिए सलोनी ने अपनी नौकरी छोड़ कर विपिन पर ही पूरा ध्यान देना शुरू कर दिया ...और अनुराधा अभी भी अपने सपनो की मंजिल पर चली जा रही थी ...
लेकिन शायद इसपरिवार का खुशियों की और से नाता ही टूट चूका था उर रिश्तो कसके बंधी डोर धीरे धीरे कमज़ोर होती जा रही थी ये आपसी रिश्तो में कमी न होकर उनके पिता का भी इस दुनिया से चला जाना था .. जब उनको लगा की माँ की मौत के बाद हमारा परिवार संभल गया है तभी पिता की मौत ने सलोनी को पूरी तरह से तोड़ दिया था ..और सलोनी नितिन को स्कूल भेजने के बाद अक्सर गुमशुम बैठी रहती .. और जब कभी अनुराधा पूछ्ती की दीदी क्या हुआ तो यही कहती कुछ नहीं बस यु ही तबियत ठीक नहीं है ..और वो विपिन के बडे होने पर यही सोच रही थी की अब विपिन कही नौकरी करने लगे और उसकी शादी के बाद हमारा घर एक बार फिर से खुशियों का मुह देखेगा लेकिन एसा नहीं हुआ ...और वो यही सोचती की अब शायद फिर से सर्विस कर लू ताकि थोडा टाइम पास हो जायेगा लेकिन फिर यही सोचती की अब क्या बचा है ..और विपिन को पूरी तरह सेटेल करने के बाद ही कुछ करुँगी लेकिन यहाँ भी खुशियों ने उनके साथ छलावा किया ..
विपिन की नौकरी भी लगी और सब खुश भी थे अब विपिन के लिए लड़की भी देखि जाने लगी और विपिन की शादी भी तय हो गई ..लेकिन विपिन ने उस घर को जिसमे उसका बचपन बीता और जवान हुआ शादी के बाद उसको वो घर ही छोटा लगने लगा और उसने अपनी बहनों से कह की अब हम दूसरी जगह सिफ्ट हो जाते है क्योंकि ये घर हम सब के लिए छोटा है .. इस बात से सलोनी के अकेले पन और खुशियों को एक जोरदार झटका लगा ..
और सलोनी ने भी उसी घर में रहने की बात कही की मैं इस घर को छोड़ के नहीं जाउंगी जहा मेरे माँ और पिता जी यादे जुडी हुई है मैं उस घर को छोड़ के नहीं जाउंगी .... भाई ने उन दोनों बहनों को छोड़ कर दूसरी जगह रहने चला गया ..
अब सोनाली अनुराधा के जाने के बाद एकदम अकेली हो जाती थी और दिन भर यही सोचती की कैसे उसने अपने लिए सपने देखे थे और किस प्रकार माँ के जाने के बाद अपने सपनो को एक किनारे करके विपिन की ओर पूरा ध्यान लगाय की मैं उसको ही इतना काबिल बना दूंगी की मुझे कभी अफसोस ही नहीं होगा की मैने कुछ किया ही नहीं लेकिन ये क्या हुआ वही विपिन मुझे ही छोड़ कर चला गया ..जिसको मैने कभी अकेला ही नहीं छोड़ा वो किसी भीज चीज़ के लिए एक बार या दस बार हर बार मैं पूरी करती थी अब वही भाई कहता है की मैने कई बार कहा लेकिन बहने मेरे साथ रहने के लिए तैयार ही नहीं है क्या विपिन ने कभी ये जानने की कोशिश की हम क्योँ नहीं जा रहे है ..जब हमने उसे अकेले नहीं छोड़ा तो आज उसे भी हमे नहीं छोड़ना चाहिए था लेकिन अब क्या होसकता है ॥ अब तो किसी पर भी विश्वाश नहीं किया जा सकता है ....क्या रिश्ते इतने कमज़ोर होते है गर हा तो मैने क्योँ अपने सपनो को मार के भाई के लिए सपने देखने चालू किये थे शायद जब हम बड़े हो जाते है तो रिश्ते छोटे हो जाते है ....शायद दुनिया के भी सभी रिश्ते ही ऐसे होते है किसी पर विश्वाश ही नहीं करना अब किसी से रिश्ते बनाऊँगी ही नहीं तो टूटेगे कैसे ...और ऐसी सोच के साथ सोनाली ने सबसे मिलना जुलना बंद कर दिया था उर अपने को कमरे में बंद कर लिया ॥ और कभी कभी सोनाली ये भी सोचती की ऐसा तो नहीं किसी ने हमारे ऊपर कुछ कर दिया हो जादू टोना जिसकी वजह से ही माँ फिर पापा और अब मेरा भाई भी छोड़ के चला गया ॥ अब मैं अनुराधा को नहीं खोना चाहती ...लेकिन दूसरी ओर अनुराधा अभी भी अपने काम पर जाती रही लेकिन जब भी वो काम से वापस घर आती तो अब उसको अपनी दीदी सोनाली में कुछ अजीब से बदलाव नज़र आने लगे उसकी बाते और उसका व्यवहार और अनुराधा को लगा की सोनाली के अकेले रहने के कारण ही ऐसा होता जा रहा है अब अनुराधा ने भी अपनी दीदी के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और वो भी सोनाली के साथ रहेनी लगी और कभी कभी घर से बाहर सामान वगैरह लेने जाती रही लेकिन जब भी वो बाहर जाती सोनाली उसको बड़े प्यार से समझाती की किसी से बात न करना कोईखाने को दे तो मत खाना किसी ने हमारे घर के ऊपर जादू टोना ब्लैक मैजिक कर दिया है और अनुराधा भी धीरे धीरे कमरे में ही रहने लगी इसी बीच टेलीफोन और बिजली के बिल न जमा होंने के कारण उनका कैन्केशन कट गए यानि अब न जमाने से उनका कोई रिश्ता था न बिजली और टेलीफ़ोन से अब फ़्लैट नंबर ३२६ एक काली कोठरी में तब्दील हो चुकी थी जहा दो बहने अकेले रहती थी और न खाना न पीना हा जब तक फोन ठीक था तब तक बगल केस्टरे से फोन करके सामान जरुर माँगा लिया करती थी लेकिन अब वो भी नहीं ...
इसी बीच उन दोनों बहनों के साथ उनका प्यार कुत्ता भी अन्दर ही बंद रहता और एक दिन उसने भी दम तोड़ दिया जिससे की सोनाली अब बिलकुल ही टूट चुकी थी और उसने अब दिन हो या रात बस बिस्तर के एक कोने में ही पड़ी रहेती थी न भूक न प्यास हा अनुराधा भी भी कुछ खा लिया करती थी लेकिन सोनाली अब एक जिन्दा नर कंकाल से ज्यादा कुछ भी नहीं थी और अनुराधा सर्दी हो या गर्मी दिन हो या रात अब इनको कोई फर्क ही नहीं पड़ता था ....अब उनका भाई जो कभी कभी हाल चाल ले लिया करता था उसने भी बिलकुल ही सम्बन्ध ख़त्म कर दिए की इन लोगो को समझाने से कोई फायेदा नहीं है ..अब दोनों बहने यही सोचती की किस प्रकार हम यह खेला करते थे लड़ा करते बठे और आज हमरे साथ कोई नहीं है न कोई आता है न कोई जाता है बस है साथ तो यादे और अँधेरा अब तो किसी भी रिश्ते पर विश्वास ही नहीं रह कब कौन अपने फायेदे ले लिए हमसे रिश्ते बनाय ..कोई नहीं है हमारा ....
यहाँ पर ही अनुराधा उर सलोनी की मौत हो जाती और कई दिनों बाद जब पड़ोसियों को लाशो की बदबू लगती तब वो सोसायटी में खबर करते तब मालूम पड़ता लेकिन इस सोते ही समाज में कई ऐसे भी लोग है जिनको जगने की भी आदत है और दूसरो के लिए कुछ करने की तभी तो जब उनको ये मालूम पड़ा की दो बहने अपने को महीनो से कमरे में बंद किया हुआ है तो उन्होने अपने प्रयासों से उन दोनों को बाहर निकलवाया और इलाज के लिए भेजा लेकिन दुसरे ही दिन सलोनी ने दुनिया छोड़ दी शायद वो यही सोच रही होगी की अब फिर से कोई रिश्ता बनेयेगा और फिर तोड़ेगा इससे अच्छा है की मैं दुनिया ही छोड़ दू ..लेकिन अब लोगो को उनकी चिंता भी होने लगी थी और सोसायटी और सब अब अपनी अपनी सफाई दे रहे थे ...
रिश्तो की गर असली परिभाषा जाननी है तो पश्चमी देशो के नागरिको से पूछो जो आज भी भारतकी संशाक्रती और समज को देखने के लिए सात समन्दर पर से अपना कीमती समय निकल के आते है और जानते है यहाँ के रिश्तो के बारे में लेकिन आज यहाँ के लोग उनकी संशाक्रती को ही अपना रहे है तब क्या होगा ऐसा ही होगा ॥ वो सैलानी बताते है की कैसे भाई बहन के रिश्ते हिंदुस्तान में निभाई जाते है कैसे माता पिता का शीर्वाद सबके काम आता है कैसे एक ही घर में १० से २० लोग रहते है और प्यार लगातार बढता रहता है लेकिन अब ऐसा नहीं है हमसे जो सीख रहे थे आज हम उन्ही से सीख रहे है ..
आज अहम भारतीय उस कल्चर को अपना रहे उसकी ही बात करते है उस ही कल्चर का खाना खाना पसंद करते है जिसका की कोई वजूद ही नहीं है जहा रिश्तो की क़द्र ही नहीं है जहा रिश्ते निभाय ही नहीं जाते है जहा सपने सिर्फ अपने लिए देखे जाते है अपनों के लिए नहीं ...
मेट्रो लाइफ जहा हर कोई भाग रहा है शायद इसी को मेट्रो लाइफ कहते है जहा हर कोई भाग रहा है पैसो के लिए ॥ रिशोत से ज्यादा पैसो की कीमत है जब रिश्ते ही नहीं रहंगे तो ऐसे पैसो का क्या काम ॥
ये ख़त्म होते रिश्तो की शुरुआत है
ये आपसी रिश्तो की कमज़ोर होती डोर है