मेरी जिंदगी
पूछती पगली पवन
आंचल उड़ा के
क्यों चली
आंचल उड़ा के
क्यों चली
कौन है साथी तुम्हारा
किसकी है ,तू मनचली
न कोई साथी है
किसकी है ,तू मनचली
न कोई साथी है
मेरा न किसी की
है तलाश
क्योंकि मेरा
है तलाश
क्योंकि मेरा
ये अकेलापन मेरे है
आसपास
अपने जज्बातों को
आसपास
अपने जज्बातों को
बयां करती हु मैं चाँद से
जिंदगी की राह में पूछती भगवान से
क्या मेरी जिंदगी पर तू तरस
न खायेगा
संघर्षमय जीवन में तन्हा ही
छोड़ जायेगा .....
क्यों मेरी दोस्ती का हाथ छुड़ाना
चाहते हो
क्यों जिंदगी की राह
में यु ही अजमाना
में यु ही अजमाना
चाहते हो
क्यों किसी और के
कारण बेगाना बनाना
कारण बेगाना बनाना
चाहते हो
क्यों तन्हाई के इस मोड़ पर छोड़ जाना
चाहते हो
हम तो इतने नादान निकले .....
आपकी यांदो को जेहन में
बसा रखा था
आपकी बातो को होठो में
दबा रखा था
आपकी सूरत को आँखों में
छुपा रखा था
आखरी साँस को भी आपके नाम पर
मिटा रखा था/