मनोभाव:
जिसको देखा करते थे आसमान में चमकते हुए
आज उसी मां को देखते है सरे राह तडपते हुए
रोती थी वो बिलखती थी वो सारी रात
पर पहले नहीं थे उसके ऐसे हालात
अपनी इज्ज़त अपने घर में ही तो है ऐसा कहते थे वो
लेकिन अपनी माँ को नीलाम घर पर ही तो करते थे वो
इन चंद नेताओ ने कर दिया अपनी माँ का सौदा
क्या कभी कोई बेटा करता था ऐसा
इन मतलबी लोगों ने कर दिया अपनी माँ को नीलाम
क्या उस माँ ने पाला था ऐसा अरमान
जो देती थी भूखे पेट को भरी हुई थाली
आज उसी माँ को देते है वो गाली
कभी रोते हुए बेटो को दिया करती थी अपनी आँचल का छाव
आज वही दिया करते उस छाती पर तरह तरह के घाव
गर्मी की तेज़ धूप हो या जाड़े की सर्द राते
आज लगती है उनको बेमानी वो राते
क्योंकि उनको मिला किसी और का साथ
इसलिए ही तो छोड़ दिया अपनी माँ का हाथ