अगले जन्म हमे बिटिया न दीजो या अगले जन्म हमे बिटिया न कीजो में ज्यादा अंतर नहीं है अर्थ दोनों का एक ही आता है की
२१ वी शताब्दी में जी रहे इस पुरुष प्रधान समाज में हम स्त्रियों की एक सुनिश्चित जगह नहीं बना पाए है /एक ओर लडकिया अपने माता पिता और देश का नाम दुनिया में रोशन कर रही होती है / अख़बार या न्यूज़ चैनल में सुर्खिया
बनती है /और वही अख़बार के दुसरे या तीसरे पन्नो और न्यूज़ चैनल की चट पट न्यूज़ में कन्या भ्रूण हत्या की खबरे होती है /आखिर कारण क्या है की लोग सुर्ख़ियों में रही उन लड़कियों से न प्रेरित
होकर अपने यहाँ जन्मी या अजन्मी लड़कियों को मार देते है/
क्यों क्या विचारो और मस्तिष्क
सोच इस बात को मनाने को तैयार ही नहीं है की लड़की कुल की मर्यादा
नहीं बन सकती एक वंश को आगे नहीं बड़ा सकती क्या सिर्फ लडके ही मर्यादा बढ़ाते है /
सानिया मिर्जा पी.टी उषा मायावती हो या फिर इन्द्रा गाँधी आशा भोश्ले जैस शख्सियत
सभी एक बच्ची (महिला ) ही तो थी सभी ने अपने अपने कुल और खानदान का नाम रोशन किया फिर लोग इनके जैसी बेटिया पैदा करने की क्यों नहीं सोचते है क्यों मार देते है उस कन्या भ्रूण को जो इतिहास लिख सकती थी /लेकिन लोग इनके जैसी लडकिया न पैदा करके सचिन
अभिषेक अमिताभ ऋतिक जैसे लडके पैदा करने की सोचते है क्यों ?
लड़की एक बहन होकर हमे स्त्रियों
की रक्षा करना सीखती है एक माँ होकर निःस्वार्थ प्रेम और ममता का सन्देश देती है और एक बेटी होकर दानकी शिक्षा देती है और क्या क्या सिखाती है ये बेटिया हमे लेकिन हम ? और गर हमारे बीच में ये बेटिया ही न होंगी तो ये शिक्षा न होगी और फिर हम किसी राक्षस से कम न होंगे /ये सत प्रतिशत
सत्य भी है जब आज के समाज में सिर्फ लड़कियों का प्रतिशत ही कम हुआ है तो राक्षसी प्रवत्ति के लोग बढने लगे है और मामले सामने आते है कानपुर के मासूम दिव्या हत्या कांड अरुणिमा सिन्हा रेल हादसा और सोनाली अनुराधा नॉएडा का कांड ये कुछ इसे मामले है जो सामने आए और पता नहीं कितने मामले जो आए ही नहीं समाज की नजरो में उनका क्या हुआ होगा /ये सब लडकियों
के भ्रूण में हो रही हत्याओ से उपजा असंतुलन है जो इस समाज की राक्षसी प्रवति को दिखा रहा है सोचिये अगर जब इस समाज में लडकिया होगी ही नहींतो समाज में किस तरह के लोग होंगे /
आखिर क्यों लड़की या उसे पैदा करने वाले दोनों ये सोचते है अपने अपने स्तर पर की लड़की इस दुनिया में आए ही न क्यों ?लड़की भी नहीं चाहती है की वो ऐसे समाज का हिस्सा बने जहा शोषण और शोषित नजरो से उसे देखा जाए /
आखिर कौन है जिम्मेदार इन सब के पीछे कौन और क्यों मारता है एक अजन्मी और जन्मी लड़की को !एक तरह से हम यानि ये समाज ही उकसाता है उन लोगो को ऐसा करने पर जो करते है भ्रूण हत्या /जब एक लड़की के साथ बलात्कार की घटना घटित हनी मत्र से समाज में न जाने कितनी कन्या भ्रूण हत्याओ को जन्म दे जाती है /एक वेश्या के वेश्यावृति की खबर से न जाने कितनी मासूम जन्मी लडकिया मौत के घाट उतार दी जाती है /और एक घर से प्रेम जाल में भागी लड़की न जाने कितनी अबोध लडकियों को घर से बेघर कर देती है /लेकिन इस समाज के लोग कहा ये सोचते है वो तो अपने कुछ कुकृत्यो से /
अब अगर बात हम लडको की करे तो क्या लडके ही सब कुछ कर सकते है लेकिन आज ये सोच भी लडकियों ने बदल दी है की जिस पुरुष प्रधान समाज में लड़कियों के लिए कोई स्थान न था आज लडकियों ने हर उस जगह अपना स्थान बना लिए है जहा उनका एकाधिकार चलता था /
जहा पुरुषो की हिम्मत डोल रही है वही पर महिला शक्ति बोल रही है
नित नए नए आयाम गड़ती जा रही है ये आज की लडकिया लेकिन फिर भी हमारी सोच हमारे आड़े आ जाती है क्यों ? हम अभी यही कहते है और उन देवी मंदिरों में जा कर मान्यता मानते है की हे माँ हे देवी हमे पुत्र देना एक लडके की अभिलाषा बनी ही रहती है क्यों?
और ये कहते है की अगले जन्म हमे बिटिया न दीजो / बिटिया शब्द जितना प्यारा है उतना ही प्यारा है उसका साथ /एक बिन बहन के घर में बैठा भाई यही सोचता है की अगर एक बहन होती तो आज मैं भी इस कोरी कलाई में राखी बांधे खुशिया मनाता / बिन माँ के घर में बैठा एक बेटा यही सोचता है की अगर माँ होती तो एक नहीं दो नहीं दस बार पूछती और खुद न खाती लेकिन अपने बेटो खाना खिला देती/बिन बेटी के एक पिता यही सोचता है की अगर बेटी होती तो अपने से दूर जाने के दर्द का एहसास तो होता /बिन लड़की के एक घर कैसा होता है ये जानते है हम /हमने कभी एक बेटी की चाहत ही न की /
अगले जन्म हमे बिटिया ही दीजो चाहे धन दौलत और बेटा न दीजो
आशीष त्रिपाठी