राजनीति का खेल
जारी है ....
देश में दिनों
दिन बढ़ती बलात्कार की घटनाओं ने आम आदमी से लेकर संसद तक, दुकान से लेकर मानव अधिकार का बाजा
बजाने वाले, ऑर्डर-ऑर्डर से
लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तक, जनता से लेकर नेता तक, सब चीख रहे हैं। ऐसा लगता है यह देश
नहीं किसी सब्जी मंडी का दृश्य है।
भंडारे में
चढ़ी सब्जी और तेल में खोलती पूडिया को देख कर लोग उतावले हो रहे हैं और शोर मचाकर
सभी भंडारे में बट रही खोलती पूडिया लेना चाहते हैं और बांटने वाले शांत हैं
पुख्ता इंतजाम होने का दावा कर रहे हैं। खैर यहाँ पर खाओ पियो और मौज करो, कम पड़े तो और लो, की कहावत चरितार्थ कर हो रही है।
सुनने और बोलने
में मैं भी शर्मिंदा हूँ। लेकिन क्या करूं राजनीति का खेल देखकर हैरान हूँ। जैसे
क्रिकेट में बैटिंग करने वाले को 11 खिलाड़ी घेर लेते हैं। कभी ग़लत निर्णय भी
अम्पायर के द्वारा हो जाते है। छक्का मारने वाला भी आउट होता है। यही राजनीति में
भी होता है। सत्ताधारी कोई भी विपक्षी ही धरने पर बैठता है। सरकार को घेरेगा, मीडिया को घेरेगा, सजा, मुआवजा और गिरफ्तारी की मांग करेगा।
लेकिन इससे होगा क्या नेता जी आप की दुकान थोड़ी और अच्छी चल जाएगी बस इसलिए. घिन आती है ऐसी
राजनीती पर!
क्या थोड़े दिन
चिल्लायेंगे अखबारों मीडिया में सुर्खिया बनेगे और फिर ऐ-सी रूम में बैठकर आराम
फरमाएंगे साहब है न।
रैलियों में
भीड़ इकठ्ठा करके अपने विकास और अपने आन्दोलन का ढिंढोरा पीटेंगे। बजाओ ताली जनता।
चलो फिर कुछ नया करते है ...
सत्ताधारी कोई
हो, सरकार किसी की
हो चिंता हमेशा विपक्ष को ही होती है। अरे नेता जी अगर चिंता जनता की है तो उन बहू
बेटियों को जब जलाया गया, तब उस जलती आग में राजनीतिक रोटियाँ
सेकने आ गए आप। कभी अपनी भी आग जलाइये नेता जी फिर राजनीति करिए, फिर देखे जनता भी मौज करेगी। तकलीफ
आपको भी होगी नेता जी|
जिसकी चीख निकल
रही थी। जब वह रो रही थी। जिसके दामन पर कोई हाथ डाल रहा था। जब वह न्याय के लिए
दर-दर भटक रही थी, तो आप क्या कर रहे थे नेताजी, पेपर तो पढ़ते ही होंगे टी वी भी देखते
होंगे, सोशल मीडिया
में उसके फरियाद के वीडियो भी देखे होंगे। तब शांत क्यों थे, क्या आपको उसके जलने जलाने का
मुहूर्त निकलवा रहे थे। मौका तलाश रहे थे रोटियाँ सेकने के लिए साहब। मुआवजा तो
जनता भी दे देगी। लेकिन आप क्या करोगे। जब वह फरियादी दर-दर भटकता है। तो पक्ष में
हो या विपक्ष में नेताजी मुह घुमा लेते है। समाज ठेकेदार भीड़ तभी इक्कठा करेंगे जब
मामला गर्म होता है क्योंकि रोटी तभी सिकती है जब तवा गर्म होगा। ना जाने कितनी जल
चुकी है और न जाने कितनी जलने और जलाने पर विवश होगी। जनता और विपक्ष कानून को
सख्त कर दो के नारे तो लगाता है पर लेकिनचौराहे पर हेलमेट न लगाने पर नेता जी को फ़ोन
भी तो हम ही करते है। अभी राजनीति का खेल जारी है अफसोस की फ़िल्म अभी बाकी है।
पंडित आशीष
त्रिपाठी
लेखक व
ज्योतिषाचार्य