रक्त सम्बन्ध और मृत आत्माए भाग 4 ....
लेकिन मेरे मन के हवन कुण्ड में आत्माओ से सम्बंधित
प्रश्न अभी भी प्रज्वलित थे |रात के अधेरे रूपी धुवें के आगोश में वो समां नहीं
रहे थे| और मेरे कई प्रश्न मुझे परेशां कर
रहे थे| की सच में यह संभवं है क्या | सच में आत्माए किसी के शरीर में प्रवेश कर
जाती है| एक शरीर में एक आत्मा के होते हुए भी दूसरी आत्मा कैसे प्रवेश कर सकती है|
फिर कोई घर का सदस्य मृत्यु के बाद किसी
को क्यों परेशान करेगा| जिनके साथ रह रहा हो ,प्यार किया हो, वो अचानक मरने के बाद
कैसे किसी को परेशान करेगा| यह सोचते ही मुझे किसी के कमरे में होने का एहसास होता
है | मैं कुछ डरा हुआ सा था मेरी आंखे कमरे के चारो कोने में किसी के होने के उस
आभास को बराबर अपने नजरो से देखना चाह रही थी| लेकिन उसका आभास मात्र था, की जैसे कोई
कमरे में प्रवेश किया हो लेकिन नज़र कोई नहीं आ रहा था| तभी अचानक मेरी अलमारी से किताबें
अचानक गिर पड़ती है और मैं अचम्भे से चौक जाता हूँ |अभी यह डर ख़त्म भी नहीं हुआ था
की अचानक से कमरे में लगी खिड़कियाँ भी खुल जाती है | मेरा डर लगातार बढता जा रहा
था| मेर्री नज़रे दीवारों की हर जगह बार बार घुमती हुई उस अद्रश्य आत्मा को dhundh
ढूंड रही थी की वो कब कहा पर क्या कर दे| उसके होने और न होने के बीच का अंतर मैं
समझ नहीं पा रहा था| मेरी धड़कन लगातार बढती जा रही थी | तभी मेरी चादर को कोई धीरे
धीरे खीच रहा था| ऐसा मुझे लगा और मैं चादर अपनी और खीच रहा था | मैं चादर को पूरी
ताकत से अपनी ओर खीचने का प्रयास कर रहा
था| लेकिन कोई था जो मुझे से भी ज्यादा बलशाली था| और वो चादर खीच लेता है और मेरे
चेहरे पर अचानक से ही किसी ने पानी डाल दिया और मैं डर के साथ हडबडा कर उठ गया था ,सामने
मेरी माँ खड़ी थी | और मेरी दिल की धड़कन तेज़ थी और मैं अभी भी उस आत्मा के होने का एहसास
कर पा रहा था| मेरा शरीर पूरी तरह से पसीने और फेक गए पानी से भीग चूका था| तभी
माँ ने पूछा रोनित तू इतना हाफ क्यों रहा था, क्या हुआ तुझे| मैं अभी भी शांत था |और
यह नहीं समझ पा रहा था की मैं सपने में था या फिर जाग्रत अवस्था में मुझे यह एहसास
हो चूका था की मैं रात में सोचते सोचते पता नहीं कब सपनो की रहस्यमई दुनिया में खो
कर सो चूका था ,पता ही नहीं चला | तभी मेरी माँ ने मुझे जोर से हिलाते ही कहा ,कहाँ सोच रहा है सुबह के १२ बज चुके है ,तू अभी
तक सो ही रहा है | तेरे दादा जी और पापा जी कब का ऑफिस जा चुके है| जल्द से उठ जा
और चाय पी ले| मैं अब नहा धोकर पूरी तरह तैयार हो चूका था | चुपचाप उस नींद या
जागते हुए सपने के रहस्य के बारे में सोच रहा था और लगातार मेरी सोच उस सपने या
हकीकत के अंतर का पता लगाने में जूझ रहा
था | और मैं उस उधेड़ बुन में बाज़ार जा कर रहस्य आत्माओ को ज्यादा जानने के लिए
बाज़ार से कुछ किताबे भी ले आया| इन सब बातों में पता नहीं कब ढलते सूर्य को अंधेर ने अपने आगोश में
ले लिया था और मैं उस रात का फिर से इंतज़ार करने लगा ....
अगले अंक में पड़े की उस आत्मा और उस घर को बेचने के पीछे क्या
रहस्य था और क्या रोनित की उन आत्माओ के रहस्य के बारे में जान पता है की नहीं |
किजिए मेरी अगली पोस्ट का
इंतज़ार .......🙏🙏🙏
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