Tuesday, August 31, 2010

परिंदा

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परिंदा
कैद पिंजरे में परिंदा
फ़डफ़ाडाता पंख अपने
हो दुखित वो सोचता
टूट गए मेरे वो सपने
चाहता था वो गगन में
दूर तक विस्तार अपना
भाग्य के हाथ का वो
बन गया फिर से खिलौना
वो परिंदा है तो जिन्दा है
अंत अपना चाहता है
लेके फिर से जन्म वो
स्वछंद विचरण चाहता है
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पथिक
एक पथिक चड़ पड़ा निडर
लेकर दृढ़ संकल्प
नहीं पता ले जायेगा किस और
समय का चक्र
सहसा उसकी रहा में आया एक तूफान
भ्रमित हुआ वो पथिक
पथ हुआ अंजान
बदलो की गरज़ना सी आई एक आवाज़
रे पथिक रुक जा तनिक
कर ले तू विश्राम
जानता था वो पथिक ये काल का है पाश
पथिक बोला पथ पर पहुचकर
होगा मेरा विश्राम
रुक गई बदल की गरज़ं
थम गया तूफान
ह्रदय में था पथिक के
एक नया अरमान ....

संध्याशिश

Posted By KanpurpatrikaTuesday, August 31, 2010