अष्टक वर्ग :- अष्टकवर्ग के सिद्धांतो का सही प्रकार
से उपयोग करने के बाद ही कुण्डली की विवेचना करनी चाहिए. सबसे पहले यह देखा
जाना चहिए कि किस ग्रह ने कितने बिन्दु किस भाव में दिए हैं और ग्रह
स्वयं जिस राशि में स्थित है वहाँ कितने बिन्दु हैं. जन्म कुण्डली में कोई
भी ग्रह यदि अपने भिन्नाष्टक में 5 या
अधिक बिन्दुओ के साथ होता है और सर्वाष्टक में 28 या अधिक बिन्दुओ के साथ होता है तब वह
ग्रह बहुत ही श्रेष्ठ व उत्तम परिणाम देता है. कई बार कोई ग्रह किसी भाव में 4 या इससे भी कम अंक प्राप्त करता है और
उसी भाव
में अपनी उच्च में स्थित होता है तब भी ज्यादा शुभ परिणाम ग्रह से नहीं मिलते हैं. कई बार
ग्रह अपनी नीच अथवा शत्रु राशि में 4 या इससे से भी कम बिन्दुओ के साथ होता है तब भी जातक को
अशुभ परिणाम नहीं मिलते हैं. इसका क्या कारण हो सकता है आइए जाने. इसके
लिए दशा/अन्तर्दशा और व्यक्ति की कुण्डली में उस समय में चलने वाला गोचर
देखा जाना चाहिए कि क्या है. अष्टकवर्ग से हम जीवन के किसी भी क्षेत्र के फलों का अध्ययन कर सकते
हैं. बृहस्पति
के गोचर से शुभ फलों को जाना जा सकता है. नौकरी कब लगेगी, विवाह कब होगा आदि बहुत से प्रश्नो का उत्तर अष्टकवर्ग के
द्वारा जाना जा सकता है. अष्टकवर्ग में जिस ग्रह के पास जितने अधिक बिन्दु
होते हैं वह उतने ही शुभ फल प्रदान करता है और परिणम उतना ही श्रेष्ठ भी
होता है. माना किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में द्वितीयेश के पास 5 से अधिक बिन्दु है और द्वितीयेश जिस राशि में स्थित है और
द्वितीय भाव में 28 से
अधिक बिन्दु है तब ऎसा व्यक्ति अवश्य ही अपने जीवन में धनवान बनता है. अष्टकवर्ग
का एक नियम सदा ध्यान में रखना चाहिए कि कोई भी ग्रह अपनी उच्च राशि में अथवा
स्वराशि में होने पर भी तब तक शुभ फल नही देता है जब तक कि उसके
भिन्नाष्टक में पर्याप्त बिन्दु उसे मिल नहीं मिल जाते हैं.
- सभी ग्रह 0 से 3 बिन्दुओ के साथ स्थित होने पर निर्बल माने जाते हैं.
- 4 बिन्दुओ के साथ स्थित ग्रह को सामान्य माना जाता है. ना शु भ और ना ही अशुभ.
- 5 से अधिक बिन्दुओ के साथ स्थित होने पर ग्रह को बली माना जाता है.
गुरु के अष्टक वर्ग द्वारा
12 भावों में 7 ग्रह व लग्न ने अलग अलग बिंदु दिए जो निम्न प्रकार है | इन प्राप्त
बिन्दुओं के आधार पर हम त्रिकोण शोधन करेगें |
त्रिकोण शोधन :-
जन्म कुण्डली में स्थित बारह राशियों को अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल के आधार पर चार वर्गों में विभाजित किया
जाता है. इस तरह से हर एक वर्ग में तीन-तीन राशियां आती हैं जो आपस में
त्रिकोण भाव की राशियां होती हैं यह (1-5-9), (2-6-10), (3-7-11) और (4-8-12) के वर्गों में बंटती हैं, यह चार वर्ग की राशियां निम्न हैं :-- अग्नि तत्व वाली राशियां हैं - मेष, सिंह और धनु
- पृथ्वी तत्व वाली राशियां हैं - वृषभ, कन्या और मकर
- वायु तत्व वाली राशियां हैं - मिथुन, तुला और कुम्भ
- जल तत्व वाली राशियां हैं - कर्क, वृश्चिक और मीन
नियम | Rules
- अगर किसी भी तत्व की तीनों राशियों में प्राप्तांकों की संख्या एक समान नहीं है तो सबसे कम संख्या को तीनों राशियों की संख्याओं से अलग अलग घटाएं शेष जो संख्याएं बची हो उनको संबंधित राशि वाले स्थान में लिखें.
- यदि तीनों राशियों में से किसी भी एक राशि को शून्य अंक मिले हों तो उस तत्व की राशियों का शोधन नहीं होगा.
- अगर तीनों राशियों में से किसी भी दो राशियों के प्राप्तांक शून्य हैं तो तीसरी राशि का अंक भी शून्य में परिवर्तित हो जाएगा.
- अगर तीनों राशियों के अंक समान हों तो शोधन के पश्चात तीनों राशियों के अंक शून्य हो जाएंगे.
राशि
|
मेष
|
सिंह
|
धन
|
बिन्दु
|
5
|
5
|
4
|
न्यूनतम अंक से घटाएंगे
|
4
|
4
|
4
|
शोधन से प्राप्तांक
|
1
|
1
|
0
|
राशि
|
वृष
|
कन्या
|
मकर
|
बिन्दु
|
3
|
4
|
5
|
न्यूनतम अंक से घटाएंगे
|
3
|
3
|
3
|
शोधन से प्राप्तांक
|
0
|
1
|
2
|
राशि
|
मिथुन
|
तुला
|
कुंभ
|
बिन्दु
|
4
|
4
|
4
|
न्यूनतम अंक से घटाएंगे
|
4
|
4
|
4
|
शोधन से प्राप्तांक
|
0
|
0
|
0
|
राशि
|
कर्क
|
वृश्चिक
|
मीन
|
बिन्दु
|
6
|
5
|
7
|
न्यूनतम अंक से घटाएंगे
|
5
|
5
|
5
|
शोधन से प्राप्तांक
|
1
|
0
|
2
|
एकाधिपत्य शोधन :- त्रिकोण
शोधन के पश्चात् हम एकाधिपत्य शोधन करते है एकाधिपत्य शोधन के लिए हमे त्रिकोण
शोधन से पारपत बिन्दुओ को आधार बनाना होता है सूर्य सिंह राशी और चंद्रमा कर्क
राशी अर्थात एक एक राशी के स्वामी है अतः इनका शोधन नहीं होता है | एकाधिपत्य शोधन
में हम यह देखते है की दो जो ग्रह दो राशियों के स्वामी है उनका कौन सी एक राशि में
बल ज्यादा है |
·
नियम :- दोनों राशियों में
यह देखना की किस राशि में ग्रह स्थित है |
·
दोनों राशियों में
ग्रह ( ग्रह युत --ग्रह युत ) स्थित है |
·
दोनों राशियों में कौन सी
राशी में ग्रह स्थित( ग्रह युत – ग्रह हीन ) है |
·
दोनों राशियों में ग्रह स्थित
ही नहीं है ( ग्रह हीन ग्रह हीन )|
·
इन तीन प्रमुख बिन्दुओं में
तीन अलग अलग नियम है जो निम्न है :-
ग्रह
प्रथम राशि द्वितीय राशि
ग्रह युत ग्रह
युत
1.
सामान बिंदु सामान
बिंदु
2.
अधिक बिंदु कम बिंदु
3.
अधिक बिंदु शुन्य
बिंदु
4.
शुन्य बिंदु शुन्य
बिंदु
ग्रह युत ग्रह हीन
5.
सामान बिंदु सामान
बिंदु
6.
अधिक बिंदु कम बिंदु
7.
अधिक बिंदु शुन्य
बिंदु
8.
शुन्य बिंदु शुन्य
बिंदु
9.
कम बिंदु अधिक
बिंदु
10.
शुन्य बिंदु अधिक
बिंदु
ग्रह हीन ग्रह
हीन
11.
सामान बिंदु सामान
बिंदु
12.
अधिक बिंदु कम बिंदु
13.
अधिक बिंदु शुन्य
बिंदु
14.
शुन्य बिंदु शुन्य
बिंदु
नियम :-
·
1,2,3,4,7,9,10,13,14 की अवस्था में कोई शोधन नहीं होगा त्रिकोण शोधन
के बाद राशियों में जितनी बिंदु है उतने ही बिंदु लिखे रहने दिए जायेंगे |
·
यदि 5 व 6 स्थित बनती है तो ग्रह हीन राशी से सभी बिंदु
हटा दिए जायेंगे और वहा पर शुन्य लिखा जायेगा |ग्रह युत राशी में लिखे हुए पुरे
बिंदु लिखे जायेंगे |
·
यदि 8 वी स्थित बनती है तो
दूसरी राशी में उतने ही बिंदु कर दिए जायँगे जितने ग्रह युत राशि में है |
·
यदि 11 वी स्थित बनती है तो
दोनों राशियों से सभी बिंदु हटा कर शुन्य लिख दिया जायेगा |
·
यदि 12 वी स्थित बनती है तो
कम बिंदु वाली राशि में जो ज्यादा हो उतने बिंदु दोनों राशियों में लिख दिए जायँगे
|
शोध पिंड :- एकाधिपत्य शोधन
के बाद हम राशि के शोध पिंड निकलते है | अष्टकवर्ग के सर्वाष्टक में मंडल शोधन, शोधनों
त्रिकोण शोधन और एकाधिपत्य शोधन
करने के पश्चात शोध्य पिण्ड की गणना कि जाती है. प्रत्येक
ग्रह के और प्रत्येक राशि में शेष संख्या को
राशि गुणाकर तथा जिन भावों में
ग्रह स्थित हैं उन भावों के बिन्दुओं को ग्रह से गुणा करना पड़ता है. दोनों विधियों से प्राप्त ग्रहों के
बिन्दुओं का योग करके उनका शोध्य पिण्ड प्राप्त कर लिया जाता है |
राशि गुणक एकाधिपत्य
शोधन के बाद प्राप्त बिन्दुओ का राशि गुणक से गुणा करते है 12 राशियों को अलग अलग
गुणांक या अंक मिले है जो निम्नवत है राशि विशेष की राशि गुणक कहलाती है. यह संख्या बदलती नहीं है और हर स्थिति में समान रहती है:-
राशि
|
गुणाकर
|
मेष
|
7X1=7
|
वृषभ
|
10 X 0=0
|
मिथुन
|
8 X 0=0
|
कर्क
|
4 X 1=4
|
सिंह
|
10 X 1=10
|
कन्या
|
5 X 1=5
|
तुला
|
7 X 0=0
|
वृश्चिक
|
8 X 0=0
|
धनु
|
9 X 0=0
|
मकर
|
5 X 2=10
|
कुम्भ
|
11 X 0=0
|
मीन
|
12 X 2=24
|
कुल
|
60
|
राशी गुणांक
निकालने के लिएय जैसे मेष राशी का गुणांक 7 है और एकाधिपत्य शोधन से प्राप्त बिंदु
शुन्य है तो 7 *0 =0 मेष के आगे शुन्य लिख दिया जायेगा |
ऐसे ही सिंह राशी
का गुणांक 10 है और एकाधिपत्य शोधन से प्राप्त बिंदु 2 है तो
2*10=20 सिंह
राशी के आगे २० लिख दिया जायेगा |
ग्रह गुणाकार :-
इस तरह ही प्रत्येक ग्रह सात ग्रह 0 को भी गुणांक मिले है जो भी स्थाई है in
ग्रहों के गुणक को एकाधिपत्य शोधन से मिले बिंदु से गुणा करके राशि के आगे लिखा
जायेगा जहा ग्रह स्थित है |
ग्रह हीन राशी के
आगे शुन्य लिखा जायेगा |
जैसे कुंभ राशि
में गुरु स्थित है और एकाधिपत्य शोधन से कुभ राशि में 4 अंक मिले है ऐसे में 4 का
गुणा गुरु ग्रह के ग्रह गुणक 10 से करेगे | 4*10 = 40 जो ग्रह गुणक हुआ |
सात ग्रहों के
ग्रह गुणक निम्नवत है |
ग्रह
|
गुणाकर
|
सूर्य
|
5 X 0=0
|
चंद्रमा
|
5 X 0=0
|
मंगल
|
8 X 1=8
|
बुध
|
5 X 0=0
|
बृहस्पति
|
10 X 2=20
|
शुक्र
|
7 X 0=0
|
शनि
|
5 X 0=0
|
Total
|
28
|
शोध पिंड :- राशि के शोध
पिंड और ग्रह के शोध पिंडो को जोड़ कर शोध पिंड निकला जाता है |
राशी के शोध पिंड निकालने
के लिए राशी गुणक से प्राप्त अंको को जोड़ दिया जाता है जो राशि पिंड के आगे लिखा
जायेगा ऐसे ही ग्रह गुणक से प्राप्त संख्या को जोड़ कर ग्रह पिंड के आगे लिखा
जायेगा और दोनों संख्याओ को जोड़ कर शोध पिंड के आगे लिखा जायेगा |
मेष
|
वृष
|
मिथुन
|
कर्क
|
सिंह
|
कन्या
|
तुला
|
वृश्चिक
|
धनु
|
मकर
|
कुम्भ
|
मीन
|
||
ग्रह
|
सूर्य मंगल बुध गुरु शनि
|
लग्न सूर्य चन्द्र
|
लग्न सूर्य मंगल शुक्र
|
सूर्य चन्द्र मंगल
बुध गुरु शुक्र
|
सूर्य बुध गुरु शुक्र
लग्न
|
लग्न चन्द्र मंगल बुध
|
सूर्य मंगल गुरु शनि
|
लग्न सूर्य बुध गुरु शुक्र
|
लग्न सूर्य चन्द्र मंगल
|
लग्न सूर्य बुध शनि गुरु
|
लग्न बुध गुरु शुक्र
|
लग्न चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि
|
|
बिंदु
|
5
|
3
|
4
|
6
|
5
|
4
|
4
|
5
|
4
|
5
|
4
|
7
|
|
त्रिकोण शोधन
|
1
|
0
|
0
|
1
|
1
|
1
|
0
|
0
|
0
|
2
|
0
|
2
|
|
एकाधिपत्य शोधन
|
1
|
0
|
0
|
1
|
1
|
1
|
0
|
0
|
0
|
2
|
0
|
2
|
|
राशि पिंड
|
7
|
0
|
0
|
4
|
10
|
5
|
0
|
0
|
0
|
10
|
0
|
24
|
60
|
ग्रह पिंड
|
8
|
10
|
28
|
||||||||||
शोध पिंड
|
88
|
||||||||||||
ग्रह
स्थित
|
मंगल
|
शुक्र सूर्य
|
शनि चन्द्र बुध
|
गुरु
|
प्राप्त शोध पिंड 88