-: गाय और माँ :-
गाय और माँ एक ऐसा शब्द जो काफी मिलता जुलता है हम भारतीय गाय को माँ कहते है ...गाय की पूजा करते है पैर छूते है और उसका दूध प़ी कर बड़े होते है और जब हम बड़े हो जाते है और गाय बुडी हो जाती है और दूध देना बंद कर देती है तो उसे छोड़ दिया जाता है सडक पर रेल पटरियों के किनारे मरने के लिए ...क्या यही हमारा धर्म है ॥ अपनी माँ के लिए ॥
खैर ये तो बेजुबान माँ ( गाय ) है जिससे की हमारा कोई नाता ही नहीं है बस स्वार्थ वश हम इस जानवर को पाले ही थे लेकिन जिनसे हमरा खून का रिश्ता है उसके साथ हम क्या करते है जरा सोचिये ...जो की हमे जन्म देती है हमे अपना दूध पिला कर बड़ा करती है ..तेज़ धुप में खुद झुलस कर हमे आंचल से ढक लेती है ..तेज़ बारिश में खुद भींग कर हमे बचाती है रात में हमे सुलाने के लिए न जाने कितनी राते जगती है माँ खुद भूखी रह कर हमे खाना देती है .... और इस संसार का दस्तूर देखिये की और जब हम बड़े हो जाते है तो और माँ बुड्ढी हो जाती है तब हम कहते है की माँ तुम बुडी हो गई हो तुमको तो किसी बात की अक्ल ही नहीं है ..ये बात भी अपनी जगह सही है की माँ को अक्ल ही नहीं होती तभी तो निस्वार्थ होकर वो हमारा पालन करती है चलना सिखाती है सारे जमाने से लडने के गुर सिखाती है और एक दिन वही गुर अपनी माँ को बे अक्ल बता देते है ..फिर जब रोती है तो वो आज का बड़ा हुआ लड़का अपने कमरे में जा कर सो जाता है लेकिन जब बच्चा छोटा था तब अगर वो रोता था तो माँ उसको लोरी गा कर कविता कहानिया सुना कर सुला देती थी लेकिन माँ तो बे अक्ल है तभी तो आज रो रही है ...
कभी वृधा आश्रम तो कभी सडको स्टेशन और बस अड्डो में पड़ी रहती है माँ और अपनी जिंदगी के बचे पालो को जीने की एक नए शुरुआत करती दिखाई देती है ...
आखिर उस समय क्या सोचती होगी माँ जब सर्द रातो में सब सो जाते है और फटे चित्दो में सडक किनारे पड़ी वो बुढ़िया ....हजारो लोगो की नजरो उस पर हो कर गुज़र जाती है लेकिन वो यही सोचती है की किस प्रकार मैने भी अपने माँ बापू के घर में कैसे पली बड़ी और ममता के आचल में खेली ... बड़ी हुई और अन्जान लोगो के साथ रिश्ता हुआ निभाया चले और नया रिश्ता बना कर जीवन की नई शुरुआत की और अपने बच्चो को भी उसी तरह पाला ममता दी और बड़ा किया फिर आज न पति है और न बच्चे .....एक अन्जान इस शहर में पड़ी है न घर है न कोई ठिकाना ..मेरे से ऐसा क्या हुआ की आज वो अपने घरो में और मै सडक पर... रोती है और सोने की कोशिश करती है ....
इस संसार का इत्तेफाक देखिये की गाय और माँ में समानता कितनी है दोनों ही बेजुबान है क्योंकि दोनों ही सब कुछ देकर लूट जाती है सब सह कर चुप ही रहती है
गाय को भी सर्द रातो में एक बोरे के टुकडे से ढक कर लोग अपने घरो में रूम हीटर चला कर सो जाते है ..वही एक माँ सुबह से लेकर शाम तक कम करती है और खुद बच्चो की आराम देखकर अपनी आराम भूल जाती और बच्चे उसको सडक पर छोड़ आते है ...लेकिन वो भी बेजुबान माँ ( गाय ) की तरह ही चुप रहती है ...
भारत का हर शहर और प्रदेश मोहल्ला हो या रेलवे या बस स्टेशन सभी जगह आपको दोनों माँ की दयनीय स्थित देखने को मिल जाएगी ...
कुछ घरो में बासी बचा खाना घर के बाहर खड़ी गाय को दे दिया जाता है और कुछ घरो में भी हाल यही होता है ..कभी किसी के आकस्मिक दौरे पर सडको और स्टेशनों से गाय हटा दी जाती है या मीडिया के सामने उनकी खूब सेवा की जाती है ठीक उसी प्रकार अगर घर में कोई रिश्तेदार या अपरचित आ जाता ही तो वहा भी माँ को माँ बना कर ही पेश किया जाता है ...
लेकिन एक माँ और है जो इन दोनों माँ कीतरह ही बेजुबान है और वो भी चुप रहती है सब सहती है कुछ नहीं कर पाती उसने भी सबको अपनी छाव में पला इस देश की माँ भारत माँ शायद उसका भी यही हाल है जब कोई दुसरे देश का कोई अतिथि आता है तो इनको भी सजा दिया जाता है ...
खैर माँ ऐसी क्यों होती है वो बेजुबान क्यों हो जाती है आखिर माँ गोंऊ क्यों होती होती है क्या हर पुजनिए चीज़ का अनादर होता ही है ...
जिसको देखा करते थे आसमान में चमकते हुए
आज उसी मां को देखते है सरे राह तडपते हुए
रोती थी वो बिलखती थी वो सारी रात
पर पहले नहीं थे उसके ऐसे हालात
अपनी इज्ज़त अपने घर में ही तो है ऐसा कहते थे वो
लेकिन अपनी माँ को नीलाम घर पर ही तो करते थे वो
इन चंद नेताओ ने कर दिया अपनी माँ का सौदा
क्या कभी कोई बेटा करता था ऐसा
इन मतलबी लोगों ने कर दिया अपनी माँ को नीलाम
क्या उस माँ ने पाला था ऐसा अरमान
जो देती थी भूखे पेट को भरी हुई थाली
आज उसी माँ को देते है वो गाली
कभी रोते हुए बेटो को दिया करती थी अपनी अंचल का छाव
आज वही दिया करते उस छाती पर तरह तरह के घाव
गर्मी की तेज़ धुप हो जाड़े की सर्द राते
आज लगती है उनको बेमानी वो राते
क्योंकि उनको मिला किसी और का साथ
इसलिए ही तो छोड़ दिया अपनी माँ का साथ......
गाय और माँ एक ऐसा शब्द जो काफी मिलता जुलता है हम भारतीय गाय को माँ कहते है ...गाय की पूजा करते है पैर छूते है और उसका दूध प़ी कर बड़े होते है और जब हम बड़े हो जाते है और गाय बुडी हो जाती है और दूध देना बंद कर देती है तो उसे छोड़ दिया जाता है सडक पर रेल पटरियों के किनारे मरने के लिए ...क्या यही हमारा धर्म है ॥ अपनी माँ के लिए ॥
खैर ये तो बेजुबान माँ ( गाय ) है जिससे की हमारा कोई नाता ही नहीं है बस स्वार्थ वश हम इस जानवर को पाले ही थे लेकिन जिनसे हमरा खून का रिश्ता है उसके साथ हम क्या करते है जरा सोचिये ...जो की हमे जन्म देती है हमे अपना दूध पिला कर बड़ा करती है ..तेज़ धुप में खुद झुलस कर हमे आंचल से ढक लेती है ..तेज़ बारिश में खुद भींग कर हमे बचाती है रात में हमे सुलाने के लिए न जाने कितनी राते जगती है माँ खुद भूखी रह कर हमे खाना देती है .... और इस संसार का दस्तूर देखिये की और जब हम बड़े हो जाते है तो और माँ बुड्ढी हो जाती है तब हम कहते है की माँ तुम बुडी हो गई हो तुमको तो किसी बात की अक्ल ही नहीं है ..ये बात भी अपनी जगह सही है की माँ को अक्ल ही नहीं होती तभी तो निस्वार्थ होकर वो हमारा पालन करती है चलना सिखाती है सारे जमाने से लडने के गुर सिखाती है और एक दिन वही गुर अपनी माँ को बे अक्ल बता देते है ..फिर जब रोती है तो वो आज का बड़ा हुआ लड़का अपने कमरे में जा कर सो जाता है लेकिन जब बच्चा छोटा था तब अगर वो रोता था तो माँ उसको लोरी गा कर कविता कहानिया सुना कर सुला देती थी लेकिन माँ तो बे अक्ल है तभी तो आज रो रही है ...
कभी वृधा आश्रम तो कभी सडको स्टेशन और बस अड्डो में पड़ी रहती है माँ और अपनी जिंदगी के बचे पालो को जीने की एक नए शुरुआत करती दिखाई देती है ...
आखिर उस समय क्या सोचती होगी माँ जब सर्द रातो में सब सो जाते है और फटे चित्दो में सडक किनारे पड़ी वो बुढ़िया ....हजारो लोगो की नजरो उस पर हो कर गुज़र जाती है लेकिन वो यही सोचती है की किस प्रकार मैने भी अपने माँ बापू के घर में कैसे पली बड़ी और ममता के आचल में खेली ... बड़ी हुई और अन्जान लोगो के साथ रिश्ता हुआ निभाया चले और नया रिश्ता बना कर जीवन की नई शुरुआत की और अपने बच्चो को भी उसी तरह पाला ममता दी और बड़ा किया फिर आज न पति है और न बच्चे .....एक अन्जान इस शहर में पड़ी है न घर है न कोई ठिकाना ..मेरे से ऐसा क्या हुआ की आज वो अपने घरो में और मै सडक पर... रोती है और सोने की कोशिश करती है ....
इस संसार का इत्तेफाक देखिये की गाय और माँ में समानता कितनी है दोनों ही बेजुबान है क्योंकि दोनों ही सब कुछ देकर लूट जाती है सब सह कर चुप ही रहती है
गाय को भी सर्द रातो में एक बोरे के टुकडे से ढक कर लोग अपने घरो में रूम हीटर चला कर सो जाते है ..वही एक माँ सुबह से लेकर शाम तक कम करती है और खुद बच्चो की आराम देखकर अपनी आराम भूल जाती और बच्चे उसको सडक पर छोड़ आते है ...लेकिन वो भी बेजुबान माँ ( गाय ) की तरह ही चुप रहती है ...
भारत का हर शहर और प्रदेश मोहल्ला हो या रेलवे या बस स्टेशन सभी जगह आपको दोनों माँ की दयनीय स्थित देखने को मिल जाएगी ...
कुछ घरो में बासी बचा खाना घर के बाहर खड़ी गाय को दे दिया जाता है और कुछ घरो में भी हाल यही होता है ..कभी किसी के आकस्मिक दौरे पर सडको और स्टेशनों से गाय हटा दी जाती है या मीडिया के सामने उनकी खूब सेवा की जाती है ठीक उसी प्रकार अगर घर में कोई रिश्तेदार या अपरचित आ जाता ही तो वहा भी माँ को माँ बना कर ही पेश किया जाता है ...
लेकिन एक माँ और है जो इन दोनों माँ कीतरह ही बेजुबान है और वो भी चुप रहती है सब सहती है कुछ नहीं कर पाती उसने भी सबको अपनी छाव में पला इस देश की माँ भारत माँ शायद उसका भी यही हाल है जब कोई दुसरे देश का कोई अतिथि आता है तो इनको भी सजा दिया जाता है ...
खैर माँ ऐसी क्यों होती है वो बेजुबान क्यों हो जाती है आखिर माँ गोंऊ क्यों होती होती है क्या हर पुजनिए चीज़ का अनादर होता ही है ...
माँ तुम में सब कुछ है ॥
शांति ,सहनता ,ममता , छाव ,संस्कार, प्यार, कर्म ॥
माँ तुम निस्वार्थ हो ..
जिसको देखा करते थे आसमान में चमकते हुए
आज उसी मां को देखते है सरे राह तडपते हुए
रोती थी वो बिलखती थी वो सारी रात
पर पहले नहीं थे उसके ऐसे हालात
अपनी इज्ज़त अपने घर में ही तो है ऐसा कहते थे वो
लेकिन अपनी माँ को नीलाम घर पर ही तो करते थे वो
इन चंद नेताओ ने कर दिया अपनी माँ का सौदा
क्या कभी कोई बेटा करता था ऐसा
इन मतलबी लोगों ने कर दिया अपनी माँ को नीलाम
क्या उस माँ ने पाला था ऐसा अरमान
जो देती थी भूखे पेट को भरी हुई थाली
आज उसी माँ को देते है वो गाली
कभी रोते हुए बेटो को दिया करती थी अपनी अंचल का छाव
आज वही दिया करते उस छाती पर तरह तरह के घाव
गर्मी की तेज़ धुप हो जाड़े की सर्द राते
आज लगती है उनको बेमानी वो राते
क्योंकि उनको मिला किसी और का साथ
इसलिए ही तो छोड़ दिया अपनी माँ का साथ......