Wednesday, August 13, 2014

कानपुर देहात का एक क़स्बा सिकन्दरा

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आज इस कड़ी में पेश है कानपुर देहात का एक क़स्बा सिकन्दरा............. सिकन्दरा कानपुर नगर से ९० किमी दूर पश्चिम दिशा में तथा औरैया जिला से १५ किमी दूर पूर्व दिशा में नेशनल हाईवे नंबर २ पर स्थित हैं.सिकन्दरा कस्बे से २ किमी दूर  साखिन बुजुर्ग ग्राम है जहाँ एक कोस मीनार स्थित है.जिसको मुग़ल शाशन काल में बनवाया  गया था.यह कोस मीनार मुग़ल रोड पर स्थित है.सिकन्दरा से मुग़ल रोड निकलती है जो भोगनीपुर से होते हुए कानपुर के रामादेवी  चौराहे पर  मिली है.इस रोड को पहले राष्ट्रीय राज्य मार्ग २ के नाम से जाना जाता था.मुग़ल रोड का प्रयोग मुग़ल शासक परिवहन के लिए किया करते थे.मुग़ल शासको ने इस रोड पर लगभग ३.२ किमी की दूरी पर कोस मीनारे बनवाई थी जिनका निर्माण १५५६ से १७०७ के बीच में हुआ था.इस कस्बे पर प्राचीन समय पर बस्ती एक ऊँचे टीले पर हुआ करती थी जिसे गडी के नाम से जाना जाता था .वर्तमान समय में इस कस्बे की जनसँख्या १०८८४ है(सन २००१) जिसमे ५३ प्रतिशत पुरुष और ४७ प्रतिशत महिलाये हैं.वर्तमान में यहाँ एक तहसील है एवं मुख्य बस्ती से लगभग २ किमी दूर एक होटल एवं पेट्रोल पम्प है .१९ वी सदी से पहले इस कस्बे में फुकनी से सीसी बनाने का काम और लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम होता था इसके साथ ही यहाँ तबला और ढोलक मढ़ी जाती थी.यहाँ की आटा छानने की छन्नी बहुत प्रसिद्ध हुआ करती थी.यहाँ पर कच्चा साबुन बनाने का काम होता था.सिकन्दरा तथा आस पास के क्षेत्रो में भेड़ पालने का काम बहुत बड़ी तादाद में होता था.वर्तमान समय में इस कस्बे ने अपनी पुरानी पहचान पूरी तरह से खो कर नयी पहचान को ग्रहण कर लिया है.
                             
                                           .... प्रस्तुतकर्ता राजेश विश्नोई
http://kanpurbloggers.blogspot.in/2011/02/kanpur-atit-ke-saye-se.html

Posted By KanpurpatrikaWednesday, August 13, 2014

कानपुर के मेस्टन रोड का इतिहास

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कानपुर मेस्टन रोड इतिहास
देश में लोकतंत्र कायम है। लेकिन राजनीतिक दलों में लोकतंत्र कब आएगा? क्या हसरत मोहानी के गुजर जाने के कोई 60 साल बाद भी कांग्रेस इस बात की गारंटी ले सकती है कि वहां किसी हसरत मोहानी को सिर्फ इस बात पर हाशिए पर नहीं डाल दिया जाएगा कि उसने पार्टी के सबसे बड़े नेता से अलग हटकर कुछ ऐसा सोचने की कोशिश की, जिसका पूरे समाज पर असर पड़ सकता है। महात्मा गांधी ने भले बरसों बाद अपनी जीवनी में हसरत मोहानी को पूर्ण स्वराज्य की मांग करने वाला पहला शख्स बताकर अपना दिल हल्का करने की कोशिश की हो, लेकिन कांग्रेस के आभामंडल की रोशनी में लिखे गए ज्यादातर इतिहास में न सिर्फ पूर्ण स्वराज्य बल्कि स्वदेशी आंदोलन को भी महात्मा गांधी से ही जोड़कर देखा जाता रहा है। बाल गंगाधर तिलक को हसरत मोहानी अपना उस्ताद मानते थे और इंक़लाब ज़िंदाबाद नारे को भी हसरत मोहानी से ही जोड़कर देखा जाता है। और इस बात के तो सबूत है कि – सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू ए क़ातिल में है – तराना हसरत मोहानी की क़लम से निकला, लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल के नाम दर्ज़ हो चुके इस तराने को लिखने के लिए मोहानी को उनका असली हक़ दिलवाने की पहल कौन करेगा? इस्तेमाल तो मशहूर निर्देशक बी आर चोपड़ा ने उनकी ग़ज़ल भी अपनी फिल्म में बिना किसी इजाज़त के ही कर ली थी, और इसके लिए उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमे का सामना भी करना पड़ा। लेकिन, सरकार पर कौन मुकदमा करे, जिसने बस कानपुर की मेस्टन रोड का नाम हसरत मोहानी मार्ग करके अपनी जिम्मेदारी से निज़ात पा ली।

ना हसरत के गांव मोहान में उनकी कोई निशानी है। ना अलीगढ़ के रसलगंज में, जबकि अलीगढ़ में ही हसरत मोहानी ने अपने दम खम रिसाला निकालकर अंग्रेजों से मुचैटा संभाला था। वो खुद ही लिखते और खुद ही पुरानी सी मशीन पर अखबार छापते। उस ज़माने में डेढ़ सौ रुपये महीना इनायत को हसरत मोहानी ने ठोकर मार दी थी। कॉलेज से भी निकाले गए लेकिन लोगों के दिलो दिमाग में वो घर बसाए रहे। और तो और उत्तर प्रदेश की जिस राजधानी में लगे पुतले गरीबों को मज़ाक उड़ाते नज़र आते हैं, उस शहर में भी हसरत मोहानी की कब्र तलाशने में पूरा एक दिन निकल गया। पुराने लखनऊ के बाग ए अनवार में उनकी कब्र के पास ही एक मज़ार पर भूतों और जिन्नात को भगाने का सिलसिला पूरे साल चलता है। पूरे मुल्क से लोग यहां आते हैं, लेकिन इनमें से भी किसी को नहीं मालूम कि इसी अहाते में एक ऐसा शख्स सोया है, जिसने अपने लेखों से अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी।

और केवल हसरत ही नहीं उनकी पत्नी के साथ भी इतिहास ने काफी नाइंसाफी की। हसरत मोहानी की पत्नी निशात उन निशां आम घरों की पहली मुस्लिम औरत थीं, जिसने बुर्का पीछे छोड़कर आज़ादी की जंग में शिरकत की। जेल में हसरत की हिरासत के दौरान अपने शौहर के नक्शे कदम पर चलते हुए निशात बेगम ने उन्हें हौसला दिया और उनकी गैर मौजूदगी में स्वदेशी सेंटर भी संभाला। ताज्जुब की बात ये है कि इस बहादुर महिला को भी हसरत मोहानी की तरह इतिहासकारों ने भुला दिया। उनका इकलौता फोटो तक भारत के किसी संग्रहालय में नहीं दिखता और खुद हसरत मोहानी के घर वाले बेगम निशात उन निशां का फोटो लंदन की एक लाइब्रेरी से भारत लाए।

सादगी को सिरमौर बनाने वाले हसरत मोहानी हो सकता है कि आज के सियासी माहौल में भी फिट नहीं बैठते। क्योंकि वह पहले शख्स थे जो आज़ाद हिंदुस्तान में सांसदों को मिलने वाली खास सहूलियतों के खिलाफ़ सबसे पहले उठ खड़े हुए। तब तो खैर सांसदों को पचहत्तर रुपये ही भत्ता मिलता था। हमेशा रेलवे के तीसरे दर्जे में सफर करने वाले हसरत ने कभी सरकारी आवास तक का इस्तेमाल नहीं किया। अगर देश की नौजवान पीढ़ी को सियासत से जोड़ना है तो आज की सियासी पार्टियों को हसरत मोहानी जैसे लोगों को और करीब से जानने और समझने की ज़रूरत है। हसरत मोहानी जैसे नेताओं के बारे में नए सिरे से शोध की ज़रूरत है और तब शायद दूसरे नेताओं की बनिस्बत कम मशहूर आज़ादी के ऐसे अनोखे सिपाहियों के बारे में आज की पीढ़ी को भी कुछ जानने को मिलेगा और सियासत को मिलेंगे कुछ नए नायक। और तभी शायद पूरी हो सकेगी वो इबारत जो हसरत मोहानी ने बरसों पहले लिख दी थी - हज़ार खौफ़ हों पर ज़ुबां हो दिल की रफ़ीक़, यही रहा है अजल से कलंदरों का तरीक़।

फोटो परिचय: पुराने लखनऊ के बाग ए अनवार में मौलाना हसरत मोहानी की कब्र। पत्थर पर लिखे शेर का मजमून ये है -

जहान ए शौक में मातम बपा है मर्ग हसरत का।

वो वजह पारसा उसकी, वो इश्क़ पाक़बाज़ उसका।

(पंकज शुक्ल के ब्लॉग क़ासिद से साभार)

Posted By KanpurpatrikaWednesday, August 13, 2014

कनपुरिया चटखारा ... आह क्या कहने

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कनपुरिया चटखारा ... आह क्या कहने
आप हिंदुस्तान की कितनी ही जगहों की मिठाई और चाट खाए  हो लेकिन  जो मजा कानपुर की  मिठाइयो और चाट  को चाटकर खाने में है वह ना तो बंबई में मिल सकती हिया ना दिल्ली में | खाना खजाना का संजीव कपूर जब भी कानपुर आते है तो उनका ठेका ठग्गू के लड्डू पर ही होता है | बुद्धसेन स्वीट  हाउस से संदेश , खोया, मंदी में हाथरस वाले की इमरतिया किसी श्रृगार रस की कविता की ही भांति रसीली है 
आर्यनगर के घोष के रसगुल्लों का कहना ही क्या मिठाइयो   में कानपुर का टक्कर सिर्फ बनारस ही ले पाता  है भीखाराम महावीर प्रसाद और बिराहना रोड के अर्जुन सिंह  की कचौड़ियाँ
१६ दोनों में तरह तरह की सब्जियों चटनियों और रायते के साथ जब सामने होती है ... आह क्या कहने
कानपुर में जलेबी सुबह हर हलवाई बनाता है जैसे मन्दिर में सुबह पुजारे भगवान् का पूजन करता है वैसे दही जलेबी का कलेवा करना यहाँ नाश्ते में  शुमार  है |
कानपुर में गरीब और मध्यम वर्ग के लोग अधिक रहते है लेकिन यह शहर किसी को भूखा नहीं सोने देता |
यहाँ के कारीगर गरीब हैं इसलिए भूख का दर्द जानते है | इसलिए कम से कम कीमत पर अपना उत्कृष्ट सामान उत्पादित कराते है नयागंजा चौराहे के कुछ दूर खडा होने वाला शंकर पानी के बताशे वाला अब भी दो रुपये में पानी के चार बताशे देता है लेकिन उसका बताशों का पानी अद्भुत होता है | जलतरंग की प्यालियों से सजे बताशों के पानी के मर्तबान | उनमें घुला सोंठ , जीरा , हींग पुदीना , खटाई और न जाने क्या क्या | खाने वाला एक बार खाना शुरू करता है तो गिनती भूल जाता है | क्या खाक  मुबंई की पानी पूरी मुकाबला करेगी इनका.
पिछले बीस बरसों से कानपुर में सर्दियों में झाग  वाला मक्खन खूब बिकता है मिट्टी की प्यालियों में हलके केसरी रंग के मक्खन की झाग    खाना ज़रा मुश्किल  काम है पर यह झागदार  मक्खन इतना स्वादिष्ट होता है कि एक प्याली से मन नहीं भरता ऐसे  झागदार मक्खन के मुख्य बाजार बीराहाना रोड और नयागंज है |
कानपुर की चाट के लिए स्वाद के विकास में यहाँ के मेस्टन रोड से लेकर बिरहाना रोड तक फैले थोक के व्यापार के आढ़तियो का बड़ा हाथ है | टी टेस्टर की तरह ही ये सब चाट के स्वाद के मर्मज्ञ है | चाट में मसली का अनुपात ज़रा भी गड़बड़ाते   ही ये टोक देते है - गुरु आज तुम्हारा जीरा ठीक से भुना नहीं है | कानपुर में चाट की सबसे बड़ी दुकान पी. रोड पर हरसहाय जगदम्बा सहाय स्कूल के पास है - हनुमान  चाट
भण्डार.  यहाँ चाट खाने के लिय खासे धैर्य की जरूरत है | धनिये वाले आलो, नवीन मार्केट में बिरहना रोड पर उम्दा मिलते हिया रिजर्व बैंक के सामने मुन्ना चाट भंडार , नवीन मार्केट में भोला चाट भण्डार  हटिया का गिरिजा चाटी भण्डार  किदवई नगर का शुक्ला चाट भण्डार  लाजपत  नगर का लल्ला चाट भंडार व पांडू नगर का लूटू चाट भंडार कानपुर के मशहूर चाट भंडार है |
पाठको मुह में पानी आ रहा होगा ना
तो देर किस बात कि
अरे कुछ दिन तो गुजारिये कानपुर में
और  कनपुरिये चटखारे क़ा फुलटाइम लुत्फ़ लीजिये



(साभार अमरीक सिंह 'दीप' और अपर्णा त्रिपाठी"पलाश")



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ASHISH TRIPATHI
KANPUR
UTTER PRADESH
09307950278

Posted By KanpurpatrikaWednesday, August 13, 2014