रियल्टी शोज़ की चपेट में बचपन
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई आगे निकालने की होड़ में भाग रहा है / शायद भागना भी चाहिए क्योकि जब हम आगे जायेंगे तभी कुछ हासिल भी होगा लेकिन ये क्या सही है की जब हम खुद कुछ नहीं कर सके तो अपने सपनो और जरुर्त्तो को पूरा करने के लिए उस दौड़ में अपने बचो को दुदा दिया ? ये तो सभी जानते है की दक्का देकर चलाया गया साईकिल का पहिया भी कुछ दूर तेज़ चलने के बाद गिर पड़ता है -क्या यही जिंदगी है ?
मैं ये इसलिए कहा रहा हु क्योकि आजकल बदते हुए बच्चो के रियल्टी शोज़ में जो बच्चा बचपन में किसी खिलौने की कर के रोते थे वो आज रियल्टी शोज़ के डेंज़र जोने में खडें होकर रो रहे है / आखिर एसा क्यों हो रहा है शायद वो नहीं जानते की आज की चकाचौध और रियल्टी सोज़ की चमक कितने दिन उनके साथ रहेगी /
चैनलस की लेमोन पोलिसी बचओ का सही विकास भी नहीं हनी दे रहे है बालश्रम मंत्रालय के हस्तछेप के बाद यह टैलेंट की बार धोड़ी कम जरुर हुआ हैं लेकिन ख़तम नहीं हुई है / इतिहास गवाहा है की पहेले की फिल्मो में कम करने वाले बल कलाकारो ने छोटी उम्र में तो नाम कमाया लेकिन बडे होने बाद रुपहेले पर्दे से गायब हो गए अगर है भी तो वो शोहरत नहीं है आज कल के बचे विकृमबेताल कहानिया और शक्तिमान जैसे प्रोग्राम देखना पसंद नहीं करते / क्योंकि उसकी जगह उन्हे रियल्टी शोज़ ज्यादा पसंद है जसे सलुम ड़ोग मिलेनिएर के बल कलाकार ये नहीं जानते की उनके साथ आज क्या हो रहा है लेकिन यहाँ जरुँर जानते है की अगर उनकी लाइफ में कुछ भी होगा तो दुसरे दिन टीवी चैनंलस और न्यूज़ पेपर्स में उनकी फोटो जरुर छपेगी / लेकिन यह नहीं जानते की चकाचुन्ध और ग्लामेर कल नहीं रहेगा तब वो अपने उम्र के बचओ की तरह सामान्य भी नहीं होनेगे और एन्तेर्तैन्मेंट इन्दुस्त्री में भी उनके लिए कम नहीं होगा तब वो जो कल के स्टार थे वो आज डिप्रेशन में जीने को मजबूर हो जायेंगे
इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है आधुनिकता टीवी चैनेल्स के रियल्टी शोज़ या फिर उनके खुद के माँ बाप ये सवाल भी और जवाब भी /