Monday, April 27, 2020

ईश्वर का एक गुप्त संदेश डिकोड

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ईश्वर का एक गुप्त संदेश डिकोड
 वर्तमान में पूरा विश्व जिस प्रकार से कोरोना महामारी के चलते ठहर सा गया है उसे कहीं नहीं प्रकृति या ईश्वर द्वारा दिए गए गुप्त संदेश को समझना होगा । वर्तमान के लिए भी यह संदेश उतना ही जरूरी है जितना भविष्य के लिए। 
जिस प्रकार किसी शहर में मंत्री मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री अथवा विशिष्ट जनों के आने पर उस रास्ते की सड़के नई बना दी जाती हैं क्षेत्र या उस रोड पर सफाई व्यवस्था ऐसी कर दी जाती उससे पहले और बाद में भी वैसा नहीं दिखाई देता। बनावटी हरियाली तक सब कुछ विशिष्ट अतिथि के लिए आगमन के लिए किया जाता है । जो कहीं ना कहीं क्षणिक होने के साथ ही बनावटी और दिखावे में किया गया प्रयास होता है  ।
ऐसा ही गंगा नदी का निरीक्षण करने आने वाले दल के आने की सूचना से पहले ही गंगा को पहले से भी निर्मल दिखा दिया जाता है ।लेकिन वास्तव में यह सब इसलिए होता है कि हम सब मिलकर किसी और को नहीं बल्कि अपने आप को ही धोखा देते हैं।
 ऐसा ही एक आम इंसान भी करता है ।किसी विशिष्ट व्यक्ति आने से पहले वह भी अपने घर को सुसज्जित एवं साफ-सुथरा करके अपने को बेहतर बताने की कोशिश  करता है।
  वर्तमान में प्रकृति द्वारा किया गया यह सुन्दरीकरण कोई दिखावा न होकर एक संदेश है ,जो किसी विशिष्ट अतिथि के आने के लिए किया गया है ।यह वास्तविकता है इंसान द्वारा नहीं अपितु उस ईश्वर द्वारा किया गया कार्य है । जिससे सभी को घरों में रहने के लिए कहा गया, सड़के सूनी है । प्रदूषण पहले की तुलना में बगैर किसी मानव निर्मित प्रयासों के अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है । गंगा भी निर्मल व स्वच्छ है ।वह भी किसी मानव निर्मित संयंत्र के द्वारा नहीं बल्कि प्रकृति ने अपने आपको खुद सवांरा है।
 मौसम भी नित्य नई करवट लेकर कुछ संदेश दे रहा है । क्या है यह संदेश हम सबको इस विषय पर बहुत ही गहराई से सोचने की जरूरत है ।
 विकसित और विकासशील देशों की अंधी दौड़ ने पर्यावरण संरक्षण को दरकिनार करके अपने को बेहतर बताया और अपने ऐशो आराम की वस्तुओं से सिर्फ पर्यावरण को ही नुकसान पहुंचाया ।
अमेरिका जो आज कोरोना महामारी से त्राहिमाम कर रहा है ।लेकिन इसी अमेरिका ने 2012 में पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए किए गए करार को इसलिए तोड़ दिया था कि उसकी जीवनशैली और व्यापारिक हित कहीं ज्यादा बड़े हैं ,पर्यावरण संरक्षण से। लेकिन आज अमेरिका की हालत सभी देख रहे हैं ।
 ऑस्ट्रेलिया रूस जापान कनाडा जैसे देश भी इसी राह पर चलते हुए पर्यावरण संरक्षण को दरकिनार करते हुए चल पड़े थे । कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में आकड़ो के अनुसार  अमेरिका की बात की जाए तो वह सबसे आगे खड़ा दिखाई देता है । वहां पर व्यक्ति 17.3 टन कार्बन डाइऑक्साइड प्रति वर्ष वातावरण में छोड़ी जाती है।विकासशील से विकसित हो रहे थे उस समय उनके द्वारा किये गए पर्यवारण का दुर्व्यवहार सभी को भूल जाना चाहिए ऐसा इन विकसित देशों का कहना था । इन विकसित देशों ने तरक्की के लिए पर्यावरण को औंधे मुँह कुचला था ।लेकिन अब इस महामारी पर यह देश सोचने की भी शक्ति खो चुके है। लेकिन प्रकृति अपने ऊपर किये गए किसी भी प्रकार के अत्याचारों को कभी नही भूलती।
  वक्त बेवक्त ओलावृष्टि तूफान भूकंप केदारनाथ कश्मीर में प्राकृतिक आपदाएं संदेश देने के लिए काफी थी । लेकिन विकास का भूत हमे सोचने ही नही दे रहा था ।
यह विकसित और विकासशील देश पर्यावरण की परवाह ही नहीं करते थे ।इन्हें तो दो वक्त की रोटी, बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य स्वास्थ्य सेवाएं को अहम मान रहे थे। पपर्यावरण जब कुछ करेगा तब उस संबंध में कुछ किया जाएगा। ऐसा इन देशो  कहना था ।इनकी पहली पहली प्राथमिकता पर्यावरण संरक्षण नही कुछ और था।
 चीन और कोरोना को समझना उतना ही जरूरी है जितना अन्य देशों द्वारा चीन से अपनी जीवनशैली के लिए उत्पादों को प्राथमिकता देना ।जिसका नतीज़ा चीन में लगातार प्रदूषण बढ़ रहा था और पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई उपाय या ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे थे । आधुनिक से अत्याधुनिक बनने की होड़ और उन देशों के लिए उत्पादन करना । उसी चीन से ही कोरोना जैसे वायरस का उत्पादन हुआ और सभी देश इससे संक्रमित हैं। हम सबने जो दिया वापस भी तो हमें वही मिल रहा है इसमें भूल किसकी है और आरोप-प्रत्यारोप किस पर ।
हवा को सांस लेने लायक बनाने के तमाम प्रयास कहीं ना कहीं धराशाई हो रहे थे । पर्यावरण संरक्षण गोष्ठियों और सेमिनार  तक ही सीमित रह गया था ।इसमें रेडिएशन जैसी महामारी से पहले अनुमान के मुताबिक जल संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम अभी से दुनिया में नहीं उठाए गए तो यह संभव हो कि 2050 तक जल संकट जैसी स्थितियां पैदा होते देर न लगेगी।

Posted By KanpurpatrikaMonday, April 27, 2020