पता नहीं क्यों हम जो सोचते थे जिसकी कल्पना कर रहे थे वह सब धोखा था और वह धोखा हम सभी अपने आप को ही दे रहे थे । लेकिन जब धोखे से पर्दा उठ गया तो हम सब यह सोचने पर मजबूर हो गए कि क्या वास्तव में हम एक ऐसे धोखे या दिखावटी जीवन में जी रहे थे जिससे बाहर निकलने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
लेकिन आज एक झटके में हमारी आंखों के सामने ही सारा की सारा नजारा ही बदल गया ।कहीं ना कहीं हम अपनी दिनचर्या को बदलना ही नहीं चाहते थे ।लाख समझाने के बाद भी हम सभी तरह-तरह के बहाने बनाकर अपने आप को श्रेष्ठ साबित कर देते थे ।
खुद जानते थे कि हम कर सकते हैं लेकिन हम ऐसा करेंगे ।नहीं जहां दिन हो या फिर रात में भी जिंदगी चलती नजर आती थी वहां पर किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि जिंदगी यो रुक जाएगी।
जो अपने अपने काम के बीच की काम के बोझ के नीचे दबे जा रहे थे और नहीं आ पाते अपनो के बुलाने पर आज उन्ही को अब 800 किलोमीटर का सफर भी छोटा सा लग रहा है ।गरीब रिक्शेवाले के चंद कदम पहले उतार देने पर वो साहब पैसो के साथ दो चार बातें भी मुफ्त में दे दिया करते थे आज वही पैदल चलते नज़र आते है।
सुबह का नाश्ता दोपहर खाना देर रात तक मौज मस्ती सुबह की सैर महंगे शौक यह सब बस एक काल्पनिक चरित्र जो हमे घेरे हुए था।
अपनो के लिए समय ही नहीं था मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में अरदास प्रार्थना सभा का नियम ना टूटे भले ही अपनों का दिल टूट जाए । लेकिन हम श्रेष्ठ बताना कभी नहीं छोड़ते थे ।
अपना एक सीमित दायरा बना लेना। ब्रांडेड कपड़े मॉल्स में घूमना फिरना बाहर का खाना यह ही तो हमारी दिन चर्या में शामिल था।जो इसमें शामिल नही था वह पिछड़ा था।
यही तो दिनचर्या थी हम सबकी जिसके बगैर जीवन शायद था ही नहीं ।
जिन कामों को हम बखूबी कर सकते थे नहीं करते थे कारण एक काल्पनिक चरित्र हमें ऐसा करने ही नहीं दे रहा था।
क्या कभी हम सभी ने कल्पना की थी कि आधे से ज्यादा दुनिया यूं रुक जाएगी। विकसित और विकासशील देश अच्छे से अच्छे इलाज के लिए दूसरे देशों में जाना या अपने ही देश में बड़े शहरों में जाना । बेहतर इलाज करवाना लेकिन क्या हुआ एक ही झटके में सब विकसित और अत्याधुनिक सुविधाओं का दम्भ भरने वाले लोग आज हाथ खड़े करने पर मजबूर है।
माना कि यह महामारी है महामारी कैसे आई कहां से आई क्यों आई, ऐसा सवाल जरूर है लेकिन यह बीमारि या महामारी ने हमारी अंधी दौड़ और काल्पनिक चरित्र को सुनसान सड़कों पर अकेला ही छोड़ दिया है ।
क्या हम सब एक गांव से बेहतर एक शहर और एक छोटे शहर से बेहतर 1 बड़े शहर और उससे भी बेहतर पश्चिमी देशों को मानते थे कि वह ज्यादा समझदार है ,लेकिन हुआ क्या हमारा यह धोखा भी टूट गया आंखों में बंधी पट्टी हट गई ।
आज हम सभी एक लाइन में खड़े होकर और ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि सब ठीक हो जाए ।
अगर इस वायरस को इंसान ने बनाया तो क्या उसका इलाज इंसान के पास नही हैं। जवाब होगा कि नहीं है उस ईश्वर की शक्ति के बगैर कुछ भी नहीं हो सकता ।इसलिए इंतजार कीजिए रुकिए और सोचिये कि क्या वास्तव में जो जीवन हम जी रहे थे वो बेहतर था या फिर यह जीवन है जो अभी हम जी रहे है ।
साल 2020 वास्तव में इतिहास बनेगा अगले 100 सालों के लिए। आज जो जीवित हैं ऐसा भयानक और विकराल समय शायद वह दोबारा न देख पाएंगे। जहा समय चल रहा है और ज़िन्दगी रुकी हुई है। या मानव रुका हुआ है और जिंदगी चल रही है।
इस मौजूदा विकराल समय से निकलना मुश्किल लगता है और अगर हम इससे बाहर निकल जाएंगे तो भी हमारी जीवन के उस काल्पनिक चरित्र को हम स्वीकार ना कर पाए।
क्योंकि नया काल्पनिक चरित्र धीरे-धीरे तैयार हो रहा है हैम सबके लिए।
और जैसे ही हम इस महामारी से बाहर निकलेंगे और राहत महसूस करेंगे ।
अपने जीवन को बदला हुआ पाएंगे मंदिर मस्जिद व अन्य धार्मिक स्थलों पर भीड़ कम हो जाएगी मृत्यु और जन्म के समय होने वाले आयोजनों में आने वाले लोगों की संख्या भी कम हो जाएगी । स्कूल कॉलेज या फिर कोचिंग में लगने वाली भीड़ कम हो जाएगी । हम बाहर का खाना खाना कम कर देंगे ।हम सोचने लगेंगे की जीवन बदल जाएगा ,लेकिन सच तो यह है कि हम नहीं बदलने वाले हैं क्योंकि यह काल्पनिक रूप सौंदर्य पिशाच ननये रूप में आकर हमें ऐसा नहीं करने देगा ।क्योंकि हम सब जो देख रहे हैं जो सोच रहे थे क्या बाजारों में रौनक खत्म हो जाएगी धार्मिक आयोजन बंद हो जाएंगे नहीं होने वाला है। हमारी रुकी हुई ज़िन्दगी फिर उसी पैसे और इज़्ज़त कमाने की अंधी दौड़ में शामिल हो जाएगी।
इधर हम धीरे धीरे एक और धोखे में हम जी रहे हैं जो धोखा है हमें धोखा देगा।
लॉक डाउन के चलते सभी अपने घरों से कम और बच्चों के पढ़ाई का कार्य सब कुछ मोबाइल और इंटरनेट पर निर्भर हो गया है ।
क्या हम जैसी कर कर पाएंगे कि आगे आने वाले समय पर मोबाइल और इंटरनेट पर हमें हमसे दूर कर देगा और हम बिना मोबाइल इंटरनेट के जीवन यापन करने के शायद ऐसा सोचना भी अभी गलत होगा लेकिन यह सच है कि ऐसा होने वाला है ।
आने वाले 100 सालों में या 100 सालों के अंदर ही मोबाइल रेडिएशन एक ऐसा खतरा बन जाएगा जो हमें मोबाइल और इंटरनेट से दूर कर देगा।
और हम सभी अकेले अकेले ऐसे जहां पर रहने को मजबूर हो जाएंगे जहां पर मोबाइल रेडिएशन का खतरा या किसी प्रकार का कोई सी रेडिएशन का खतरा हम तक न पहुंच पाए अपने संदेशों पहुंचाने के लिए हम टेलीपैथी जैसी विधि का इस्तेमाल करेंगे।
क्योंकि अगर वर्तमान समय की बात करे तो देश विदेश में प्रदूषण को दूर करने के लिए कई अत्याधुनिक तकनीक और कड़े नियम बनाये गए ।लेकि नतीजा सिफर रहा।
लेकिन अभी जब हम सभी अपने घरों में कैद है तओ वायु प्रदूषण के कम होने से कम होने से पेड़ पौधों में चमक वापस आ गई है वहीं ध्वनि प्रदूषण कम होने से पशु पक्षी आकाश में स्वच्छंद विचरण करते दिखाई पड़ रहे हैं ।
कई ऐसी बातें सच हो गई जिसकी कल्पना मात्र करने से लोग डर जाते थे। बेशक कामकाज और अर्थ व्यवस्था पर फर्क पड़ा है और आगे भी ऐसे ही हालातों में हमें जीना पड़ेगा।
लिखने अगर हम वर्तमान से सबक नहीं लेंगे तो भविष्य में मोबाइल रेडिएशन या ऐसे ही किसी अन्य महामारी से में 2- 4 जरूर होना पड़ेगा।
वर्तमान समय में दुनिया रुकी है और इस चलते हुए वक्त में और ठहरी हुई दुनिया में हम सब एक पल के लिए अगर भविष्य के लिए एक सुंदर कल्पना करना चाहे तो सिर्फ एक ही सूत्र होगा कि उस ईश्वर की या प्रकृति से अगर हमने खेलना बंद नहीं किया तो पपरिणाम इस से भी भयानक होंगे। फिर चाहे पहाड़ों को नष्ट करने हो, पेड़ पौधों को काटना हो ,नकली खानपान का व्यापार, नदी गंगा जी और समुद्र में अपने फायदे के लिए खेल खेलना ,बेजुबान जीवो की हत्या करना।अगर हमने यह सब बंद नही किया तो प्रकृति संतुलन बनाने के लिए हर वह प्रयास करके जो उसके बेजुबान संतानों के लिए बेहतर होगा यह एक अच्छा समय है जब प्रकृति हमें रोक कर सोचने और समझने का मौका दे रही है तो प्रकृति अपने इन बेजुबान संतानों की रक्षा के लिए प्रकृति हर वो कदम उठाएगी जो उसके लिए बेहतर होगा। प्रकृति के दिए इस वर्तमान संदेश को हम समझे और अपने बेहतर भविष्य को सुरक्षित करने में लग जाएं।
पंडित आशीष सी त्रिपाठी।