ग्रहों की द्रष्टिया कितना सच कितना झूठ ?
हम सभी ने ज्योतिष
में एक बात तो अवश्य सुनी होगी और पड़ी भी होगी इनमे वो व्यक्ति भी है जिन्होने
ज्योतिष जैसे विषय को पड़ा है और वो भी जिन्होने अपनी कुंडली किसी ज्योतिषी को दिखाई
होगी सबके मन में ये प्रश्न रहता है की क्या कोई ग्रह ( सभी 9 ग्रह ) देख भी सकते है ?
या ये सुना होगा की
मंगल ग्रह की द्रष्टि पंचम भाव पर पड़ रही है या मंगल ग्रह पांचवे भाव को देख रहे
है !
लेकिन सच क्या है ?
क्या सौर मंडल में
स्थित ग्रह देखते भी है ?
क्या ग्रहों की आंखे
भी होती है ?
या फिर कुछ और भी है
?
कहने का तात्यापर्य
यह है की ज्योतिष एक ऐसी विद्या है जिसे वेदों की आंखे कहा जाता है जिसमे विश्वास
भी है और अंध विश्वास दोनों का मिश्रण है | दोनों का कैसे वो ऐसे की ज्योतिष में
अन्धविश्वास जैसी कोई भी चीज़ नहीं है | अर्थात पूरा की पूरा ज्योतिष विज्ञान और
विश्वास पर आधारित है | लेकिन जब किसी ज्योतिषी से कोई सवाल करता है और वो उसका
उत्तर नहीं दे पता या फिर वो ऐसे ही कोई
फलित कर देता है बगैर ज्योतिष के सिद्धांतो के तो ऐसी ज्योतिष अन्धविश्वास का रूप
ले लेती है| लेकिन कुछ एक वर्ग इस ज्योतिष विद्या को कल्पना मात्र बताता है ,वो
ग्रहों के जीवन पर प्रभाव जैसा कुछ मानता ही नहीं है | लेकिन जिसको विश्वास है वो
इसको मानते भी है और इसका प्रभाव भी देखते है |
लेकिन कुछ ऐसे
ज्योतिषी भी है जो इन्ही 9 ग्रहों के प्रभावों को इतना बडा चड़ा कर बताते है या
सामने वाले को भयभीत कर देते है की वो विश्वास के आगे अंधविश्वास पर कदम बडा देता
है |
अब हम अपने मुख्य
विषय पर आते है की क्या ग्रह देख पाते है ? हम सब ये जानते है की सभी ग्रह अपनी
निर्धारित गति से सौर मंडल का चक्कर लगा रहे है या संचरण कर रहे है | इनमे सभी
ग्रहों की चाल अलग अलग है जैसे चन्द्रमा सबसे तेज़ और शनि ग्रह सबसे धीमे संचरण
करते है |
अब बात आती है की
क्या ग्रहों के द्रष्टि होती है या ग्रह देखते है इसका जवाब है की न तो ग्रहों की
द्रष्टि होती है और नहीं ग्रह देखते है अर्थात जब आंखे ही न होंगी तो कोई देखेगा
कैसे ?
तो क्या या फिर एक
कोरी कल्पना मात्र है या फिर ज्योतिष का अंधविश्वास का एक अंग है तो ये सोचना भी
गलत है न ग्रहों की द्रष्टि है न ही वो देखते है बल्कि यह एक प्रकार का परावर्तन reflection का नियम है |
अर्थात ग्रह जहा
स्थित है वहा से उसका प्रकाश एकदम सीधा (180 अंश) पर जाता है | जिसे ज्योतिष में
ग्रहों की सातवी द्रष्टि या ग्रहों का देखना कहते है |
कुंडली के अनुसार
सभी ग्रह अपने स्थान (भाव) से सातवे स्थान (भाव) को पूर्ण द्रष्टि (180 अंश) से
देखते है | इसके अतिरिक्त भी तीन ग्रह शनि गुरु और मंगल 180 अंश के अतिरिक्त भी परावर्तन reflection करते है |
जैसे ज्योतिष
की भाषा में शनि ग्रह अपने स्थान (भाव) से तीसरी द्रष्टि व दसवी द्रष्टि भी होती
है इसका अर्थ यह हुआ की प्रकाश जिस स्थान पर होता है उस स्थान से दाई ओर left
side और बाई ओर right side पर दो परावर्तन होते है |
जैसे शनि ग्रह
जिस स्थान पर स्थित है वहा से 180 अंश ( सातवी द्रष्टि के स्थान से ) पर प्रकाश करते है लेकिन जिस स्थान पर प्रकाश होता है उस स्थान से left side बाई
ओर 90 अंश की दूरी पर और दाई ओर Right side पर 60 अंश की दूरी पर दो परावर्तन होते है जिन्हे ज्योतिष की भाषा में left side को दसवी द्रष्टि और right side दाई
ओर को तीसरी द्रष्टि कहकर संबोधित करते है
|
इस प्रकार ही
राहु केतु और गुरु ग्रह की जहा पर स्थित होते है वहा से 180 अंश ( सातवी द्रष्टि
के स्थान से ) पर प्रकाश करते है लेकिन जिस स्थान पर प्रकाश होता है
उस स्थान से left side बाई ओर 120 अंश की दूरी पर और दाई ओर Right side पर 120 अंश
की दूरी पर दो परावर्तन होते है जिन्हे ज्योतिष की भाषा में right side दाई ओर को
पांचवी द्रष्टि और left side बाई ओर को नवी द्रष्टि कहकर संबोधित करते है |
मंगल ग्रह जहा पर
स्थित होते है वहा से 180 अंश ( सातवी द्रष्टि के स्थान से ) पर प्रकाश करते है लेकिन जिस स्थान पर प्रकाश होता है उस स्थान से left side बाई
ओर 150 अंश की दूरी पर और दाई ओर Right side पर 90 अंश की दूरी पर दो परावर्तन
होते है जिन्हे ज्योतिष की भाषा में left side को आठवी द्रष्टि और right side दाई ओर को चौथी द्रष्टि
कहकर संबोधित करते है |
हम in सिद्धांतो
को इस प्रकार भी समझ सकते है की जैसे हम शीशे के सामने खडे होते है तो हम अपने
आपको 180 अंश पर देख रहे होते है लेकिन कोई और हमें दाई और या बाई और से भी देख
सकता है या फिर शीशे पर टार्च से रौशनी दे और और वो रौशनी प्रवर्तित होकर हमे सामने
तो दिखाई पड़ेगी साथ ही दाई और बाई ओर भी दिखाई देगी या शीशा जैसा भी परावर्तित
करेगा वहा पर प्रकाश दिखाई देगा |
इस प्रकार ही
ग्रह जहा पर स्थित होते है वहा से उनके प्रकाश पुंज 180 अंश पर प्रकाशित होकर
परावर्तन करते हुए दाई ओर और बाई ओर भी अपने प्रकाश को परावर्तित करते है |
खास बात यह है की
जो आंतरिक ग्रह है ( सूर्य बुध शुक्र चन्द्रमा ) वो सिर्फ 180 अंश पर ही अपना प्रकाश डालते है और जो बाह्य ग्रह मंगल गुरु शनि राहु केतु ) है वो 180 अंश के अतरिक्त भी
परवर्तन करते है | अर्थात पृथ्वी की कक्षा के अंदर स्थित ग्रह अपने स्थान से 180
अंश पर प्रकाश तो करते है लेकिन उनके प्रकाश पुंज सूर्य के प्रकाश से परावर्तन
नहीं कर पाते जबकि पृथ्वी की कक्षा के बाहर स्थित ग्रह 180 अंश पर प्रकाश करने
के बाद उनका प्रकाश फिर से प्रवर्तित हो जाता है |
ये बिलकुल वैसा
ही जैसे की एक अँधेरे कमरे में शीशे में टार्च से रौशनी दे तो शीशे से रौशनी
परावर्तित होकर अन्य स्थानों पर भी रौशनी होगी जिसे हम देख सकते है | लेकिन उस
कमरे में ही अगर रौशनी हो तो शीशे पर रौशनी देने पर प्रकाश हमे अर्थात शीशे पर (180 अंश) पर
ही दिखाई देगा |
इस प्रकार हम यह
कह सकते है की ग्रहों की द्रष्टि जो ज्योतिष भाषा में प्रचलित है वह असल में
ग्रहों का परावर्तन Reflection है |
इस लेख में लिखे
गए विचार मेरे अपने है इससे किसी का संतुष्ट होना जरुरी नहीं है न ही हम किसी अन्य
सिद्धांत को गलत कह रहे है |
गलतियों के लिए सुझाव आमंत्रित है | 9307950278 wahtsaap
आशीष त्रिपाठी
ज्योतिष शास्त्री