भावो का विश्लेषण :-
“ सर्वे त्रिकोण नेतारा शुभ
फल प्रदा “ ( पांच व नव )
सभी त्रिकोण के नेता शुभ फल
देने वाले होते है /
“ त्रिशाडाए स्वामिनः अशुभ फल प्रदा “
3 ,6 ,11 के स्वामी अशुभ फल देने वाले होते है /
“ लग्नेषा सर्वदा शुभः “
लग्न हमेशा शुभ फल देने
वाली होती है /
अष्टमेषा सर्वदा अशुभा “
अष्टमेष हमेशा अशुभ फल देते
है /
द्वि द्वादश (2
,12 ) अपनी दूसरी राशी के अनुसार फल देते है / अगर इनकी दूसरी राशी नहीं है तो यह
अशुभ फल देते है /
केंद्र भावो के
स्वामी अपने स्वाभाव को त्याग कर फल देते है /
यदि वे शुभ होते
है तो शुभ प्रभाव छोड़ देते है और अगर अशुभ होते है तो अपनी अशुभता छोड़ देते है /
अर्थात तथस्ट हो
जाते है /और अपनी दूसरी राशी के अनुसार फल करते है /
ग्रह जब दो भावो
का स्वामी होते है तो अपनी मूल त्रिकोण राशी का अधिक फल करते है /
लग्नेश के मित्र
शुभ फल देते है /
योगनी दशा :- योगनी
ग्रहों की माता मणि गई है ज्योतिष ग्रंथो में आठ योगनी दशाओ का वरन मिलता है
प्रत्येक गृह से सम्बंधित एक योगनी होती है / ऋषि पराशर ने विन्शोतरी महादशा के
साथ योगनी दशा का भी वर्णन किया है /इन योगनी दशो के नाम करण से ही उनकी प्रवति के
बारे में जानकारी हो जाती है /विन्शोतरी दशाओ के साथ साथ हमे योगनी दशो पर भी नज़र
डालते हुए ही हमें फलादेश करना चाहिए पराशर ने निम्न लिखित योगनी दशो का वर्णन
किया है /इन योगनी दशाओ का समय निर्धारण उनके क्रम के अनुसार वर्षो में होता है /
क्रम योगनी वर्ष
स्वामी फल
१ :- मंगला एक चन्द्रमा कल्याण करने वाली
२ :- पिंगला दो
सूर्य तनाव देने वाली
3 :- धान्या
तीन गुरु धन
देने वाली
४ :- भ्रामरी
चार मंगल
व्यर्थ की दौड़ देने वाली
५ :- भद्रिका पांच बुध अच्छे कार्य करने वाली
६ :- उल्का छ
शनि विपत्ति दायक
७ :- सिद्धा सात शुक्र
कार्य सिद्दी
८ :- संकटा आठ राहु (चार वर्ष ), केतु (चार वर्ष ) संकट
देने वाली
योगनी दशा का निर्धारण
नक्षत्र संख्या +3 /८ शेष फल योगनी
11+3/8= 6 योगनी दशा उल्का
विपत्ति दायक
800 में उल्का योगनी दशा
चलती है 6 *360 * 680 /800 = 1836 दिन
1836/30 = 61 माह / 12 = 5
वर्ष 1 माह योगनी उल्का का भोग काल /
( 8 ,16 ,24 में शेष फल 8
ही माना जायेगा ऐसे में संकटा की योगनी दशा मानी जाएगी /
ग्रहों की बालादि अवस्थाए
:-
विषम राशियों के लिए सम राशियों के लिए
0 डिग्री से 6 डिग्री बाल अवस्था 0
डिग्री से 6 डिग्री मृत
6 डिग्री से 12 डिग्री कुमार 6 डिग्री से 12 डिग्री वृद्ध
12 डिग्री से 18 डिग्री
युवा 12 डिग्री से 18
डिग्री युवा
18 डिग्री से 24 डिग्री
वृद्ध 18 डिग्री से 24 डिग्री
कुमार
24 डिग्री से 30 डिग्री मृत 24 डिग्री से 30 डिग्री बाल अवस्था
बाल्यावस्था में
ग्रह अत्यंत न्यून फल देता है।
कुमारावस्था में अर्द्ध मात्रा में फल देता है । युवावस्था का
ग्रह पूर्ण फल देता है। विर्धावस्था वाला अत्यंत अल्प
फल देता है और मिर्त अवस्था वाला ग्रह फल देने में
अक्षम होता है।
कुमारावस्था में अर्द्ध मात्रा में फल देता है । युवावस्था का
ग्रह पूर्ण फल देता है। विर्धावस्था वाला अत्यंत अल्प
फल देता है और मिर्त अवस्था वाला ग्रह फल देने में
अक्षम होता है।
जाग्रतादि अवस्थाएँ:- ग्रहों की कई प्रकार की
अवस्थाएं होती हैं. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई नियमों के आधार पर आधारित होती हैं. इन्हीं अवस्थाओं में से ग्रहों की एक अवस्था जाग्रत या जाग्रतादि अवस्थाएँ होती हैं. इन अवस्थाओं के आधार पर ग्रह विभिन्न फलों का प्रतिपादन करते हैं.
विषम राशियों के लिए
सम राशियों के लिए
0 डिग्री से १० डिग्री जाग्रत अवस्था 0
डिग्री से १० डिग्री सुषुप्त अवस्था
१० डिग्री से २० डिग्री स्वप्न अवस्था १०
डिग्री से २० डिग्री स्वप्न अवस्था
२० डिग्री से 30 डिग्री सुषुप्त अवस्था २०
डिग्री से 30 डिग्री जाग्रत अवस्था
जाग्रत अवस्था | Jagarat Avastha
ग्रह उत्तम अवस्था में हो तो वह अपना सौ प्रतिशत फल देने वाला होता है. इसमें उसके गुण प्रभावशाली रुप से अच्छे फलों का प्रतिपादन करते हैं. जाग्रत अवस्था में ग्रह जागा हुआ होता है. ग्रह कैसे जागता है इसका विश्लेषण करते हैं. जब कुण्डली में ग्रह अपनी मूलत्रिकोण राशि में या स्वराशि अर्थात
अपनी राशि में हो तो यह ग्रह की जाग्रत अवस्था कहलाती है.
जाग्रत अवस्था प्रभाव | Effect of Jagrat Awastha
इस अवस्था के कारण सुंदर वस्त्र एवं आभूषणों की प्राप्ति होती है. भवन, जमीन जायदाद एवं अन्य सुखों की प्राप्ति होती है. शिक्षा एवं ज्ञान में वृद्धि होती है. शत्रुओं का नाश होता है और भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है. व्यक्ति विचारशील होकर कार्य करता है. उसे राजसी ठाठ बाट मिलता है, उच्च राजकीय
सम्मान एवं पद की प्राप्ति होती है. भू-संपत्ति का लाभ मिलता है. व्यापार एवं व्यवसाय में वृद्धि होती है. शिक्षा एवं ज्ञान में वृद्धि होती है. अनेकों प्रकार की सुख एवं सुविधाओं की प्राप्ति होती है.
स्वप्न अवस्था | Swapna Awastha
इस अवस्था में ग्रह मध्यम बल का होता है. वह अपना पचास प्रतिशत तक फल देने वाला होता है. इसके अंतर्गत ग्रह की स्थिति को इस बात से समझा जाता है कि ग्रह या तो मित्र राशि में होता है या शुभ वर्गों के साथ युति में हो अथवा उनके द्वारा दृष्ट हो रहा हो तथा उस ग्रह को गुरू का सहयोग मिल रहा हो तो इस अवस्था को उस ग्रह की स्वप्न अवस्था कहते हैं.
स्वप्न अवस्था प्रभाव | Effect of Swapna Awastha
इस अवस्था में ग्रह के 50% फल मिलते हैं जिसके द्वारा कुछ शुभ फलों की प्राप्ति होती है. शांत प्रकृति देखी जा सकती है. व्यक्ति दान करने की चाह रखने वाला होता है. शास्त्रों के प्रति रुचि एवं लगाव होता है. पठन पाठन में मन लगाने वाला होता है. व्यक्ति के मित्रों की संख्या अच्छी होती है तथा व्यक्ति राजा का मंत्री या सलाहकार भी हो सकता है. वर्तमान समय में व्यक्ति किसी अच्छे पद पर सलाहकार का काम करने वाला हो सकता है.
सुसुप्त अवस्था | Susupta Awastha
इस अवस्थ अमें ग्रह अधम या अक्षम होता है. केवल सात प्रतिशत के करीब फल देता है. इस अवस्था में ग्रह नीच का होता है, ग्रह अपने शत्रु की राशी में हो सकता है. शत्रु के क्षेत्रीय होता हो या अशुभ ग्रहों के साथ हो तब यह उस ग्रह कि सुसुप्त या सोई हुई अवस्था होती है.
सुसुप्त अवस्था प्रभाव | Effect of Sususpta Awastha
इस अवस्था के कारण धार्मिकता का लोप होता है. बिमारी के लक्षण देखे जा सकते हैं. सोचने समझने की ताकत कम होती है विवेक पूर्ण कार्य नहीं हो पाता. व्यक्ति जीवन में लक्ष्यहीन सा महसूस करता है, झगडालू प्रवृत्ति होने लगती है. पांचवें भाव के प्रभावों क अलोप होने लगता है. इस अवस्था के कारण धन की हानी होती है. निर्बल होता है और प्रताड़ना मिलती है. नीच कर्म करने वाला होता है. स्वास्थ्य में हमेशा परेशानी बनी रह सकती है. शत्रुओं से परेशानियां, धन एवं मान सम्मान की हानी, शरीर की उर्जा का ह्रास होत है. तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने की आदत होती है. कुतर्क करने वाला होता है.
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की कई प्रकार की
अवस्थाओं का वर्णन मिलता है. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई
तरह के बलों पर आधारित होती हैं. बालादि अवस्था में
ग्रहों को बल उनके अंशो के आधार पर मिलता है जबकि दीप्तादि में राशि के आधार पर
मिलता है. जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि ये अवस्थाएँ ग्रह के प्रकाश को बताती
हैं. जब ग्रह अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि और स्वराशि में होते हैं
तो राशियों की स्थिति के अनुकूल फल
देते
हैं और इन्हें ही दीप्तादि अवस्था कहते हैं .
जिस प्रकार समाज में व्यक्ति एक-दूसरे के
मित्र या शत्रु होते हैं उसी प्रकार ग्रह भी आपस में मित्रता, शत्रुता और समभाव रखते हैं उसी के
अनुसार वह फल भी देते हैं. यह अवस्थाएँ ग्रहों की
नैसर्गिक तथा तात्कालिक मित्रता को को मिलाकर पंचधा मैत्री से देखा जाता है.
दीप्त अवस्था | Dipta Avastha
जब भी कोई ग्रह कुण्डली में उच्च का हो या
अपनी उच्च राशि में स्थित हो अथवा उच्च के अंश में स्थित हो तो वह उसकी
दीप्त अवस्था होती है. इसमें वह अपने सम्पूर्ण फल देने में सक्षम होता है. इस
अवस्था में ग्रह अपने पूर्ण प्रकाश युक्त होता है. दीप्त अवस्था में स्थित
ग्रह की दशा आने पर वह ग्रह अपार सम्पदा प्रदान करता है.
दीप्त अवस्था प्रभाव | Effects of Dipta Avastha
इस अवस्था से साहस, वैभव, धन
संपत्ति, भौतिक वस्तुओं की
प्राप्ति, दीर्घकालिक खुशी, राजकीय
मान सम्मान, राजकृपा, प्राप्त होती है. व्यक्ति शक्तिशाली, गुणवान व पुरूषार्थी होता है. उसके
कार्यों में शालीनता होती है.
स्वस्थ अवस्था | Svastha Avastha
जब भी ग्रह कुण्डली में अपनी मूलत्रिकोण
राशि में या स्वराशि में होता है तब वह स्वस्थ अवस्था में होता है. इसमें वह
अच्छे फल देता है. व्यक्ति समाजिक यश प्राप्त करता है और हर क्षेत्र में
उसे सफलता मिलती है. वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है और यश, सम्पदा, सम्मान
प्राप्त करता है.
स्वस्थ अवस्था प्रभाव | Effects of Svastha Avastha
इस अवस्था में ग्रह अपने ही घर में माना
जाता है. इस अवस्था में ग्रह अपने सारे फल देने में सक्षम होता है. ग्रह
जिस भाव में स्थित होता है और जिन भावों का स्वामी होता है उनसे संबंधित
सभी अशुभ व शुभ फल प्रदान करता है. जातक को धन, वाहन, भवन, आभूषण सभी कुछ प्राप्त होता है. भौतिक
सुख, विलास पूर्ण वस्तुएं, आभूषण, अच्छा
स्वास्थ्य, आराम-परस्त जीवन, भूमि सुख, दांपत्य
सुख, संतान, धार्मिक विचारों से परिपूर्ण, पद्दोन्नति आदि मिलती है.
मुदित अवस्था | Mudita Avastha
जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि अपनी मित्र
की राशि में स्थित होता है तब वह उस ग्रह की मुदित अवस्था होती है. जिस
प्रकार व्यक्ति अपने अच्छे मित्रों के साथ खुश रहता है ठीक उसी प्रकार ग्रह
भी अपनी मित्र राशि में मुदित अर्थात प्रसन्न रहते हैं. मुदित अवस्था
के प्रभाव से व्यक्ति धन-सम्पत्ति व धार्मिक कार्यो में रुचि दर्शाता है.
जातक किसी की सहायता से भी कार्य कर सकता है. इस अवस्था में स्थित ग्रह की
दशा होने पर जातक जीवन में सफलता प्राप्त करता है तथा जीवन में नई
ऊचाईयों को छूता है.
मुदित अवस्था प्रभाव | Effects of Mudita Avastha
कुण्डली में यदि ग्रह अपनी मुदित अवस्था में
स्थित है तब व्यक्ति को आर्थिक लाभ और धन प्राप्ति होती है. व्यक्ति सभ्य
व्यवहार करने वाला होता है और उसे मानसिक संतोष की प्राप्ति होती है. उसे
आभूषण, वस्त्र, वाहन का सुख मिलता है. धार्मिक प्रवृति जागृत होती है और
मित्र के व्यवहार द्वारा अच्छे गुणों की प्राप्ति होती है.
शान्त अवस्था | Santa Avastha
कोई ग्रह कुण्डली में शुभ ग्रह की राशि में
हो और वर्गो (सप्तमांश् नवांश, दशमाशं इत्यादि ) में अपने शुभ वर्गों
में होता है तो वह उसकी शान्त अवस्था होती है. जातक धैर्यवान व शान्त प्रकृति
का होता है. वह शास्त्रों का ज्ञाता होता है और दानी होता है.
व्यक्ति बहुत से मित्रों से परिपूर्ण हो सकता है. व्यक्ति सरकारी अधिकारी होकर
किसी उच्च पद पर आसीन हो सकता है.
शांत अवस्था प्रभाव | Effects of Santa Avastha
यह अवस्था मानसिक संतोष की अनुभूति प्रदान
करने वाली होती है. जातक मित्रता पूर्ण व्यवहार करने वाला होता है. एक
अच्छे सलाहकार की भूमिका निभाने वाला होता है. लेखन कार्य में रुचि होती है.
अधिक पाने की लालसा रहती है. मकान एवं जायदाद संबंधी सुख की प्राप्ति होती
है. धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करना एवं योग ध्यान में रुचि उत्पन्न
होती है.
शक्त अवस्था | Shakt Avastha
कुण्ड्ली में जब कोई ग्रह उदित अवस्था अर्थात
ग्रह के अस्त होने से पहले की अवस्था में होता है तब यह ग्रह की शक्त अवस्था
होती है. इस अवस्था में ग्रह इतना शक्तिशाली नहीं होता और पूर्ण फल देने
में समर्थ नही होता है परन्तु वह अपने कार्य में सक्षम, शत्रु का नाश करने वाला, शौकीन मिजाज़ होता है. इस अवस्था में स्थित ग्रह की दशा होने पर
जातक जीवन में कठिनाईयो के साथ
सफलता प्राप्त करता है.
शक्त अवस्था प्रभाव | Effects of Shakt Avastha
इस अवस्था के प्रभाव के परिणामस्वरुप
व्यक्ति को मान सम्मान की प्राप्ति होती है,
उसे
जीवन में खुशी मिलती है. व्यक्ति को अपने कामों के लिए प्रसिद्धि मिलती है, उसके
पुरुषार्थ में वृद्धि होती है, कार्यों को संपन्न करने की दक्षता होती है. व्यक्ति को अचानक से
मिलने वाले परिणाम प्राप्त होते हैं. उतार- चढाव से भरी जिंदगी भी हो सकती
है. लेकिन बहुत बुरे परिणाम नहीं मिलते हैं.
पीड़ित अवस्था | Peedit Avastha
कुण्डली में जब भी ग्रह सूर्य के समीप आते है तब
वह अस्त हो जाते है. इस अवस्था में ग्रह अपना प्रभाव खो देते है. अस्त
ग्रह की अवस्था उसकी पीडित अवस्था होती है. इस अवस्था में ग्रह अशुभ फल
प्रदान करता है. जातक बुरे व्यसनों में लिप्त हो सकता है. यदि लग्नेश होकर
ग्रह अस्त होगा तो जातक जीवन मे रोग ग्रस्त हो सकता है. जातक को अपने जीवन
काल मे बदनामी मिल सकती है. पीडित ग्रह जातक को कार्य में असफलता देता है.
पीड़ित अवस्था प्रभाव | Effects of Peedit Avastha
व्यक्ति को जीवन में धन हानि हो सकती है. जीवन
साथी एवं बच्चों से अनबन और कलह की स्थिति उत्पन्न हो साक्ती है व्यक्ति
रोग एवं व्याधि से प्रभावित हो सकता है,
विशेषकर
नेत्र संबंधी रोग परेशानी दे सकते हैं. व्यक्ति
की किसी कारण से बदनामी हो सकती है
अथवा वह पाप पूर्ण या अनैतिक कामों में लिप्त हो
सकता है. व्यक्ति को अपने
द्वारा किए प्रयासों में विफलता मिलती है और
वह बुरी लत से प्रभावित हो
सकता है.
दीन अवस्था | Deen Avastha
जब भी ग्रह कुण्डली में अपनी नीच राशि में
होता है वह उसकी दीन अवस्था होती है. यहाँ ग्रह अपनी सारी शक्ति खो चुका
होता है. व्यक्ति को अपने जीवन काल में संघर्षो से गुजरना पडता है. जीवन
में निर्धनता का सामना करना पडता है. व्यक्ति सरकारी अधिकारियों से दुखी, भयभीत, अपने
लोगो से शत्रुता, कानून व सामाजिक नियमों की अवहेलना करने वाला
होता है.
दीन अवस्था प्रभाव | Effects of Deen Avastha
ग्रह की इस अवस्था में व्यक्ति के बनते हुए
काम बिगड़ जाते हैं. व्यक्ति कुछ ज्यादा ही व्यावहारिक हो जाता है. हर
परिस्थिति से डरने वाला, शोक संताप से पीड़ित, शारीरिक
क्षमता में गिरावट का अनुभव होता है.
संबंधियों
से विरोध का सामना करना पड़
सकता है और घर परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न होने की नौबत तक आ सकती है. व्यक्ति बिमारियों से
ग्रस्त होता है एवं लोगों द्वारा तिरस्कृति भी हो सकता है.
विकल अवस्था | Vikal Avastha
जब भी कुण्डली के किसी भी भाव या राशि में
ग्रह पाप (अशुभ) ग्रहों के साथ होता है तब वह ग्रह की विकल अवस्था होती
है. जिस तरह से एक साधारण व्यक्ति यदि किसी ताकतवर या पाप कर्म करने वाले
व्यक्ति के साथ बैठ जाता है तब वह स्वयं को बेचैन महसूस करता है. इसी तरह
ग्रह भी पाप ग्रहों के साथ बेचैनी महसूस करते हैं और यही अवस्था ग्रह की
विकल अवस्था होती है. ग्रह अपने फलानुसार फल नही दे पाता और वह साथ बैठे
ग्रहों के अनुरुप फल देता है. इसके फल स्वरुप जातक नीच प्रकृति वाला होता
है. जातक शक्तिहीन होकर दूसरों का सेवक होता है और बुरी संगति का संग करने
वाला होता है.
विकल अवस्था प्रभाव | Effects of Vikal Avastha
ग्रह की विकल अवस्था के परिणामस्वरुप व्यक्ति
शक्तिहीन तथा बलहीन होता है. व्यक्ति की आत्म-सम्मान की हानि भी हो
सकती है. मित्रों एवं सगे संबंधियों से अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
आत्मिक दुख, मानसिक प्रताड़ना, जीवन साथी तथा बच्चों से हानि एवं कष्ट
की स्थिति पैदा हो सकती है. व्यक्ति को चोरों द्वारा हानि भी हो सकती है.
उसके स्तरहीन लोगों से संबंध बनते हैं.
खल अवस्था | Khal Avastha
जब भी कुण्डली के किसी भी भाव या राशि में
दो ग्रह या दो से अधिक ग्रह आपस में 1 अंश
के अन्तर में हों तो यह गृह युद्ध की स्थिति होती है. इसमे से अधिक अंशो वाला ग्रह युद्ध में परास्त
होता है. परास्त ग्रह खल अवस्था में माना जाता है वह जातक को निर्धन बनाता
है और जातक क्रोधी स्वभाव वाला होता है. जातक दूसरों के धन पर बुरी दृष्टि
रखने वाला होता है.
खल अवस्था प्रभाव | Effects of Khal Avastha
ग्रह की इस अवस्था के प्रभाव से व्यक्ति के
अंदर शत्रुता की भावना पनपती है. वह अपने ही लोगों द्वारा प्रताड़ित होता
है. स्वभाव से झगडालू हो सकता है. अपने पिता से व्यक्ति की अलगाव की
स्थिति उत्पन्न हो सकती है. धन- संपत्ति एवं जायदाद की हानि हो सकती है. व्यक्ति
गलत कार्यों द्वारा धन एकत्रित करना चाहेगा तथा अपना हित करने वाला व
स्वार्थी प्रवृत्ति का हो सकता है.
दुखी अवस्था | Dukhi Avastha
जन्म कुण्डली में जब कोई ग्रह शत्रु ग्रह के
क्षेत्र में हो अथवा शत्रु ग्रह की राशि में बैठा हो तो वह दुखी अवस्था में
होता है. जिस तरह से यदि कभी किसी व्यक्ति को अपने शत्रु के घर में जाना
पड़े तो वह वहाँ जाकर परेशानी का अनुभव करता है. इसी तरह से ग्रह भी
शत्रु के घर में परेशान होता है. ग्रह की इस अवस्था के कारण व्यक्ति को अनेक
कष्ट मिलते हैं. उसे परिस्थतियों के कारण कष्ट की अनुभूति होती है.
दुखी अवस्था प्रभाव | Effects of Dukhi Avastha
ग्रह की इस अवस्था के कारण व्यक्ति का स्थान
परिवर्तन होता है. अपने प्रिय जनों से अलग रहने की स्थिति पैदा हो सकती है.
आग लगने का भय तथा चोरी का होने का भय व्यक्ति को सताता है. व्यक्ति के
साथ सदा असमंजस की स्थिति बनी रहती है.
भाव संधि - जैसे बताया गया है, कि
प्रत्येक भाव अपने भावस्फुट से लगभग 15 अंश पूर्व और 15 अंश पश्चात तक होता है और जहां से एक भाव का
अंत और दुसरे का प्रारंभ होता है, उसे संधि कहते हैं | इसे दो भावों का योगस्थान समझ सकते हैं | भावों की संधि मालूम करना बड़ा सुगम है | किसी भाव के स्फुट को उसके आगामी भाव
स्फुट में जोड़कर उसका
अर्द्ध कर देने से उन दोनों भावों की संधिस्फुट हो जायेगी | जैसे मान किसी कुंडली में ‘लग्न स्फुट’ 0|12|20 और द्वितीय भाव स्फुट 1|8|50 है |
इन
दोनों का योग 1|12|10 जिसका आधा 0|25|35 हुआ और यही प्रथम और द्वितीय भावों की संधि हुई | ऐसे ही अन्य भी निकाली जा सकती है |
अब यदि
कोई ग्रह मीन
राशि में 25 अंश 35 कला के बाद है तो यद्यपि
प्रत्यक्ष रूप से मीन राशि
में होने के कारण द्वादश भाव में प्रतीत होगा परन्तु मीन के 25 अंश 35 कला के बाद रहने के कारण उस
ग्रह को लग्न या प्रथम भाव में रहने का फल होगा | इसी प्रकार द्वितीय भाव के मेष के 25 अंश 35 कला से वृष के 22
अंश 5 कला पर्यंत
चला गया है | यदि कोई
ग्रह मेष के 26 अथवा 27 अंशो में रहे तो
यह प्रत्यक्ष रूप से लग्न में मालूम होगा पर वह द्वितीय भाव का फल होगा |२३ डिग्री से २७ डिग्री तक भाव संधि
भाव मध्य :- जब
कोई ग्रह भाव के बीचो बीच होता है या फिर बिच से निकट होता है तो उसे स्वस्थ्य
अवस्था में माना जाता है और ऐसा ग्रह पूर्ण फल देने में समर्थ होता है /
8 डिग्री से 12 डिग्री तक भाव मध्य
ग्रहों का दिग्बल |
दिग्बली ग्रह जातक को
अपनी दिशा में ले जाकर कई प्रकार से लाभ देने
में सहायक बनते हैं. यह जातक को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने में सहायक होते हैं तथा आभूषणों, भूमि-भवन एवं वाहन सुख देते हैं. व्यक्ति को वैभवता की प्राप्ति हो सकती
है. जातक यशस्वी तथा सम्मानित व्यक्ति बनता है.
सूर्य | Sun
सूर्य के दिगबली होने
पर व्यक्ति को आत्मिक रूप से मजबूत अंतर्मन की प्राप्ति होती है. वह अपने फैसलों के
प्रति काफी सदृढ़ होता है. व्यक्ति
में
कार्यों को पूर्ण करने की जो स्वेच्छा उत्पन्न होती है वह बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. व्यक्ति अन्य लोगों
के लिए भी मार्गदर्शक बनकर उभरता है. सभी के लिए एक
बेहतर उदाहरण रूप में वह समाज के लिए सहायक सिद्ध होता है. जन समाज कल्याण की चाह उसमें रहती
है. व्यक्ति अपने निर्देशों का कडा़ई
से
पालन कराने की इच्छा रखता है. वह अपने कामों में सुस्ती नहीं दिखाता है उसकी यह प्रतिभा उसे आगे रखते हुए सभी
के समक्ष सम्मानित कराती है.
चंद्रमा | Moon
चंद्रमा के दिग्बली
होने पर व्यक्ति का मन शांत भाव से सभी कामों को करने की ओर लगा रहता है. जातक के मन में
अनेक भावनाएं हर पल जन्म लेती रहती
हैं.
वह अपने मन को नियंत्रित करना जानता है जिस कारण वह उचित रूप से दूसरों के समक्ष स्वयं को प्रदर्शित
करने की कला का जानकार होता है. जातक
धन
वैभव से युक्त होता है. रत्नों एवं वस्त्राभूषणों का सुख प्राप्त होता है. सरकार की कृपा प्राप्त होती है तथा
समानित स्थान मिलता है. व्यक्ति का
आकर्षण
एवं दूसरों के साथ आत्मिक रूप से जुड़ जाना बहुत प्रबल होता है, इसी कारण यह जल्द ही दूसरों के चहेते बन
जाते हैं. बंधु-बांधवों के चहेते होते
हैं
उनसे स्नेह प्राप्त करते हैं. जातक मान मर्यादा का पालन करने वाला होता है.
मंगल | Mars
मंगल ग्रह के दिग्बली
होने पर व्यक्ति का साहस और शौर्य बढ़ता है. व्यक्ति भय की भावना से मुक्त होता है
और वह किसि भी कार्य को करने से भय
नहीं
खाता है. जातक अपने मार्ग को स्वयं सुनिश्चित करने वाला होता है वह अपने नियमों तथा वचनों का पक्का होता
है. वह विद्वान लोगों का आदर करने वाला होता है तथा
दूसरों के लिए मददगार सिद्ध होता है. उसके कामों में स्वेच्छा अधिक झलकती है. किसी अन्य के
कथनों को मानने में उसे कष्ट होता है. वह अपने नेतृत्व
क चाह रखने वाला होता है वह चाहता है की दूसरे भी उसकी इच्छा का आदर करें और उसके निर्देशों का
पालन करने वाले हों. जातक में धर्मिकता का आचरण
करने की इच्छा रहती है वह अनेक व्यक्तियों को आश्रय देने वाला होता है.
बुध | Mercury
बुध के दिग्बली होने
पर जातक का स्वभाव काफी प्रभावशाली बनता है. उसमें स्वयं के लिए विशेष अनुभूति प्रकट होती
है. वह अपने अनुसार जीवन जीने की चाह रखने वाला होता
है तथा किसी के आदेशों को सुनने की चाह उसमें नहीं होती है. व्यक्ति में चातुर्य का गुण प्रबल
होता है, अपनी वाणी के प्रभाव द्वारा लोगों को प्रभावित करने की
क्षमता रखता है. जातक में स्नेह और
सौहार्दय
भी होता है वह दूसरों को अपने साथ जोड़ने वाला होता है तथा प्रेम की चाह रखता है. जातक जीवन में सुख
सुविधाओं की चाह रखने वाला होता है वह
जीवन
को सामर्थ्य पूर्ण जीना चाहता है. हास-परिहास में पारंगत होता है और प्रसन्नचित रहने वाला वाक-कुशलता से
युक्त होता है.
बृहस्पति | Jupiter
बृहस्पति के दिग्बली
होने पर जातक को सुखों की प्राप्ति होती है. देह से स्वस्थ रहता है तथा मन से मजबूत होता
है. हितकारी होता है तथा विद्वेष की
भावना
से मुक्त रहते हुए काम करने वाला होता है. जातक दूसरों के सहयोग के लिए प्रयासरत रहता है और मददगार होता
है. जातक को विद्वान लोगों की संगति
मिलती
है तथा गुरूजनों की सेवा करके प्रसन्न रहता है. अन्न वस्त्र इत्यादि का सुख भोगने वाला होता है आर्थिक रूप
से संतुष्ट रहता है. शत्रुओं के भय
से
मुक्त रहता है तथा निर्भयता से काम करने वाला होता है. जातक के विचारों को सभी लोग बहुत सम्मान देते हैं तथा
प्रजा की दृष्टि में उसे सम्मान की
प्राप्ति
होती है.
शुक्र | Venus
शुक्र के दिगबली होने
पर जातक के जीवन में सौंदर्य का आकर्षण प्रबल होता है. साजो सामान के प्रति उसे बहुत लगाव
रहता है तथा वह अपने रहन सहन को भी
बहुत
उन्नत किस्म का जीने की चाहत रखने वाला होता है. व्यक्ति को स्वयं को सजाने संवारने की इच्छा खूब होती है वह
अपने बनाव श्रृंगार पर खूब समय व्यतीत कर सकता है.
जातक दूसरों के आकर्षण का आधार भी होता है. लोग इनकी ओर स्वत: ही खिंचे चले आते हैं. जातक
देश-विदेश में प्रतिष्ठित होता है और
धनार्जन
करता है. उदार मन का तथा दूसरों के लिए समर्पण का भाव भी रखता है.
शनि | Saturn
शनि के दिग्बली होने
पर जातक ब्राह्मण व देवताओं का भक्त तथा सेवक होता है. वह दूसरों के लिए सेवाकार्य करने
वाला होता है. सहायक बनता है. भोग-विलास की इच्छा
करने वाला होता है. गीत संगीत तथा नृत्य इत्यादि में व्यक्ति की की रूचि होती है. चतुरता
पूर्ण कार्यों को अंजाम देने की कला का जानकार
होता है तथा व्यापार कार्यों में निपुण रहता है.
पूर्व दिशा लग्न बुध व गुरु को दिग्बली हो जाते है बौधिक क्षमता
ज्यादा होगी व्यकित्व अच्छा होगा /
दशम भाव में सूर्य व मंगल को दिग्बल प्राप्त है जो कैरियर के लिए है
सप्तम भाव शनि को दिग्बल प्राप्त है
विवाह के लिए
चतुर्थ भाव चन्द्र व शुक्र को दिग्बल प्राप्त है भौतिक सुख
ग्रहों का चतुर्विद सम्बन्ध :-
क्षेत्र सम्बन्ध :- जब दो गृह एक दुसरे की राशी में स्थित होते है तो
क्षेत्र सम्बन्ध हो जाता है इसे परिवर्तन योग भी कहा जाता है /
द्रष्टि सम्बन्ध :-जब दो गृह एक दुसरे को पूर्ण द्रष्टि से देखते है /
स्थान द्रष्टि सम्बन्ध :- जब किसी गृह को उसकी अधिष्ठित राशी का
स्वामी पूर्ण द्रष्टि से देखता हो तो स्थान द्रष्टि सम्बन्ध कहते है /
युति सम्बन्ध :- जब किसी भी भाव में दो गृह एक साथ बैठे हो तो युति
सम्बन्ध होता है /
राज योग में अशुभ ग्रह राज योग खंडित कर देता है /
डिग्री व अवस्था का पता कैसे लगता है? दूसरे घर में 4 ग्रहों के होने का क्या मतलब है?
ReplyDeleteDegree explain in the artical itself. 4 planet conjunction need to predict Very carefully. See the least degree planet, it will be most strongest planet in the conjugation. Also be noted that 3+ planetary conjunction in any of the house will make that person confuse regarding that perticular house. Like if any1 have this conjunction in 2nd house,then he always will be confused with Area of Earning Money. Apply n see more of it.
DeleteKundli ki mhadasha kaise Kanye hai kya gnit hai
ReplyDeleteअपना मोबाइल नंबर देने का कस्ट करे जिससे कि
ReplyDeleteआपकी कृपा सदैव हम लोगो पर बनी रहे
Bhut badiya tarike se samjha Diya please jisne bhi post Kiya hai uska number mil Sakta hai appointment k liye
ReplyDeleteWah bahut bahut dhanyawad 🙏
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