Thursday, December 10, 2015

यह अजपा जप ,इसके देवता अर्ध्नारीश्वर है

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जिसका उच्चारण नही किया जाता,अपितु जो स्वास और प्रतिस्वास के के गमन और आगमन से सम्पादित किया जाता है,(हं-स:) यह अजपा कहलाता है,इसके देवता अर्ध्नारीश्वर  है.
उद्यदभानुस्फ़ुरिततडिदाकारमर्द्धाम्बिकेशम,
पाशाभीति वरदपरशुं संदधानं कराब्जै:
,दिव्यार्कल्पैर्नवमणिमये: शोभितं विश्वमूल्म,
                                                  सौमाग्यनेयम वपुरवतु नश्चन्द्रचूडं त्रिनेत्रम॥
उदित होते हुए सूर्य के समान तथा चमकती हुई बिजली के तुल्य जिनकी अंगशोभा है,जो चार भुजाओं में अभय मुद्रा,पाशु,वरदान मुद्रा,तथा परशु को धारण किये है,जो नूतम मणिमय दिव्य वस्तुओं से सुशोभित और विश्व के मूल कारण हैं,ऐसे अम्बिका के अर्ध भाग से युक्त चन्द्रचूड त्रिनेत्र शंकरजी का सौम्य और आग्नेय शरीर हमारी रक्षा करे
.स्वाभाविक नि:श्वास-प्रश्वास रूप से जीव के जपने के लिये हंस-मंत्र इस प्रकार है:-
अथ व्क्ष्ये महेशानि प्रत्यहं प्रजपेन्नर:,
मोहबन्धं न जानति मोक्षतस्य न विद्यते ।
श्रीगुरौ: कृपया देवि ज्ञायते जप्यते यदा,
उच्छवासानि:श्वास्तया तदा बन्धक्षयो भवेत ।
उच्छवासैरेव नि:श्वासैहंस इत्यक्षरद्वयम,तस्मात प्राणस्य हंसाख्य आत्माकारेण संस्थित:।नाभेरुच्छवासानि:श्वासाद ह्र्दयाग्रे व्यवस्थित:,षष्टिश्वासेर भवित प्राण: षट प्राणा: नाडिका गत:।षष्टिनाड्या अहोतात्रम जपसंख्याक्रमो गत:,एक विंशति साहस्त्रं षटशताधिकमीश्वरि।जपते प्रत्यहं प्राणी सान्द्रानन्दमयीं पराम,उतपत्तिअर्जपमारम्भो मृत्युस्तत्र निवेदनम।बिना जपेन देवेशि,जपो भवति मन्त्रिण:,अजपेयं तत: प्रोक्ता भव पाश निकृन्तनी ।
अर्थ:- हे पार्वती ! अब एक मन्त्र कहता हूँ,जिसका मनुष्य नित जप करे,इसका जप करने से मोह का बन्धन नही आता है,और मोक्ष की आवश्यकता नही पडती है,हे देवी ! श्री गुरु कृपा से जब ज्ञान हो जाता है,तथा जब श्वास प्रतिश्वास से मनुष्य जप करता है,उस समय बन्धन का नाश हो जाता है,श्वास लेने और छोडने में ही "हँ-स:" इन दो अक्षरों का उच्चारण होता है,इसीलिये प्राण को हँस कहते हैं,और वह आत्मा के रूप में नाभि स्थान से उच्छवास-निश्वास के रूप में उठता हुआ ह्रदय के अग्र भाग में स्थित रहता है,साठ श्वास का एक प्राण होता है,और छ: प्राण की एक नाडी होती है,साठ नाडियों का एक अहोरात्र होता है,यह जप संख्या का क्रम है,हे ! ईश्वरी इस प्रकार इक्कीस हजार छ: सौ श्वासों के रूप में आनन्द देने वाली पराशक्ति का प्राणी प्रतिदिन जाप करता है,जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त यह जप माना जाता है,हे ! देवी,मन्त्रज्ञ के बिना जप करने से भी श्वास के द्वारा जप हो जाता है,इसीलिये इसे अजपा कहते है,और यह भव (संसार) के पाश (कष्टों) को दूर करने वाला है.महाभारत मे कहा है:-"षटशतानि दिवा रात्रौ,सहस्त्राण्येकविंशति:,एतत्संख्यान्वितं मन्त्रं जीवौ जपति सर्वदा".रात दिन इक्कीस हजार छ: सौ संख्या तक मन्त्र को प्रानी सदा जप करता है.सिद्ध साहित्य में अजपा की पर्याप्त चर्चा है,"गोरखपंथ" में भी एक दिन रात में आने जाने वाले २१६०० श्वास-प्रश्वासों को अजपा कहा गया है."इक्कीस सहस षटसा आदू,पवन पुरिष जप माली,इला प्युन्गुला सुषमन नारी,अहिनिशि बसै प्रनाली".गोरखपंथ का अनुसरण करते हुए श्वास को "ओहं" तथा प्रश्वास को "सोहं" बतलाया है,इन्ही का निरन्तर प्रवाह अजपाजप है,इसी को नि:अक्षर ध्यान भी कहा गया है,"निह अक्षर जाप तँह जापे,उठत धुन सुन्न से आवे"(गोररखवानी

Posted By KanpurpatrikaThursday, December 10, 2015

ग्रहों के 120 गुण

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ग्रहों के 120 गुण

लगन अगर-

मेष है तो आदमी का बच्चा है
वृष है तो धन की मशीन है
मिथुन है तो टेलीफ़ोन है
कर्क है तो भावना की पुडिया है
सिंह है तो अहम भरा हुआ है
कन्या है तो कर्जा दुश्मनी बीमारी से घिरा है
तुला है तो हर बात में फ़ायदा सोचने वाला है
वृश्चिक है तो भूतो का सरदार है
धनु है तो बाप दादा की बात करने वाला है
मकर है तो चौबीस घंटे काम ही काम है
कुम्भ है तो जल्दी रिस्ता बना सकता है
मीन है तो हमेशा मौन रहने वाला है

लगन से सूर्य अगर-

पहले भाव मे है तो अहम भरा है
दूसरे भाव मे है तो चमक के आगे कुछ दिखाई ही नही देता
तीसरे भाव मे है तो नेतागीरी पहले है
चौथे भाव मे है तो राजनीति वाली सोच है
पंचम भाव मे है तो परिवार मे ही राजनीति करने वाला है
छठे भाव मे है तो बाप को नौकर समझता है
सातवे भाव मे है जीवन साथी का गुलाम है
आठवे भाव मे है तो बेचारा दिल का मरीज है
नवे भाव मे है तो धर्म से भी कमाने वाला है
दसवे भाव मे है तो सभी काम नेतागीरी से किये जाते है
ग्यारहवे भाव मे है तो पिता को नोट छापने की मशीन समझता है
बारहवे भाव मे है तो आंखों का मरीज है

लगन से चन्द्र अगर-

पहले भाव मे है तो मन से काम करने वाला है
दूसरे भाव मे है तो ख्यालों से धनी है
तीसरे भाव मे है तो हर बात को पूंछ कर चलने वाला है
चौथे भाव मे है तो मकान दुकान और घर मे रहने वाला है
पंचवे भाव मे है तो मनोरंजन में ही मस्त रहने वाला है
छठे भाव मे है तो कोई काम सोचने से नही होता है
सातवे भाव मे है तो हर बात में माता की राय जरूरी है
आठवे भाव मे है तो दिल की गहराइया बहुत है,थाह पाना मुश्किल है
नवे भाव मे है तो हर काम भाग्य के भरोसे है
दसवे भाव मे है तो कार्य के लिये सोचने वाला है करने वाला नही है
ग्यारहवे भाव मे है तो कमाने के पहले ही कर्जा करने वाला है
बारहवे भाव मे है तो टोने टोटके और ज्योतिष मे रुचि रखने वाला है

मंगल अगर-

पहले भाव मे है तो तलवार का धनी है
दूसरे भाव मे है तो खरी खोटी सुनाने वाला है
तीसरे भाव मे है तो झगडा करने की आदत है
चौथे भाव मे है तो दिल को सुलगाने वाला है
पंचम भाव मे है तो खिलाडी है
छठे भाव मे है तो खून मे ही बीमारी है
सातवे भाव मे है तो काम मे चौकस है
आठवे भाव मे है तो जली हुयी मिठाई है
नवे भाव मे है तो खानदान को आग लगाने वाला है
दसवे भाव में है तो जो कहा है वह सच है,भले ही झूठ हो
ग्यारहवे भाव मे है तो चोरों का सरदार है
बारहवे भाव मे है तो तवे पर पानी छिनछिनाता है

बुध अगर-

पहले भाव मे है तो बातूनी है
दूसरे भाव मे है तो जमीन जायदाद वाला है
तीसरे भाव मे है तो चुगलखोर है
चौथे भाव मे है तो गाने बजाने मे रुचि है
पंचम भाव मे है तो गेंद की तरह परिवार को उछालने वाला है
छठे भाव मे है तो आवाज भी धीमी है
सातवे भाव मे है तो मौन रहकर सुनने वाला है
आठवे भाव मे है तो बात की औकात ही नही है
नवे भाव मे है तो पहुंच कर भी जगह से फ़िसलने वाला है
दसवें भाव मे है तो बातों का व्यापार करने वाला है
ग्यारहवे भाव मे है तो इतिहास को बखानने वाला है
बारहवे भाव मे है तो आधा पागल है

गुरु अगर-

पहले भाव मे है तो बेचारा अकेला है
दूसरे भाव मे है तो वेद को भी बेचकर खाने वाला है
तीसरे भाव मे है तो हर बात धर्मानुसार होनी चाहिये
चौथे भाव मे है तो कपडे की जानकारी है
पंचम भाव मे रास्ते चलते शिक्षा देने वाला है
छठे भाव मे है तो कर्जा दुश्मनी और बीमारी के मामले मे गुणी है
सप्तम भाव मे है तो धर्म पर बहस करने वाला है
अष्टम भाव मे है तो जमा पूंजी को खाने वाला है
नवम भाव मे है तो पूर्वजों के भाग्य की खा रहा है
दसम भाव मे है तो पूर्वजों की सम्पत्ति को बेच कर खाने वाला है
ग्यारहवे भाव मे है तो दोस्तों के साथ ही पति या पत्नी के सम्बन्ध बनाने वाला है
बारहवे भाव मे है तो आगे नाम चलाने वाला ही नही है

शुक्र अगर-

पहले भाव मे है तो खूबसूरत है
दूसरे भाव मे है तो बिना क्रीम लगाये कही जाने वाला नही
तीसरे भाव मे है तो सज संवर कर ही निकलेगा
चौथे भाव मे है तो रोजाना सवारी तो करनी ही है
पंचम भाव मे है तो फ़िल्म देखने से ही फ़ुर्सत नही है
छठे भाव मे है तो मकान दुकान और पत्नी को भी गिरवी रखने वाला है
सातवें भाव मे है तो जीवन को पैर के नीचे लेकर चलने वाला है
अष्टम मे है तो शमशान मे भी सो सकते है
नवम मे है तो देश मे तो रह ही नही सकते है
दसवे भाव मे है तो चमक दमक मे ही काम करना है,शाम को भले भूखा सोना पडे
ग्यारहवे भाव मे है तो शाम को रोटी भी उधारी की आ सकती है
बारहवे भाव मे है तो आराम का मामला है

शनि अगर-

पहले भाव मे है तो जड है
दूसरे भाव मे है तो धन की चिन्ता है
तीसरे भाव मे है तो आलसी है
चौथे भाव में ठंड अधिक लगती है
पंचम मे है तो कल का खाया ही नही पचता है
छठे भाव मे है तो सारी जिन्दगी की ताबेदारी यानी नौकरी है
सप्तम मे है तो रोजाना पहाड पर चढ कर काम करना है
अष्टम मे है तो सूखा कुआ है
नवम मे है तो भाग्य भरोसे नही काम के भरोसे कमाना है
दसवे भाव मे है तो दिन रात की मेहनत के बाद भी केवल रोटी
ग्यारहवे भाव मे है तो रोजाना काम का पैसा डूबने वाला है
बारहवे भाव मे है तो आराम के मामलो मे खर्चा नही

राहु अगर-

पहले भाव मे है तो आसमान से उतरना मुश्किल है
दूसरे भाव मे है तो पैसा कहां से आयेगा
तीसरे भाव मे है तो कोई भरोसा नही कब थप्पड मार दे
चौथे भाव मे है तो हर बात में शक है
पंचम मे है तो पढाई से क्या होता है हम तो बहुत जानते है
छठे भाव मे है तो बिना दवाई के रास्ता नही चलनी
सातवे भाव मे है तो घर मे कभी नही बननी
आठवे भाव मे है तो पता नही कब गुम जायें
नवे भाव मे है तो खाना खाने से भी पहले पूर्वजों का नाम लेना है
दसवे भाव मे कभी तो भूत की तरह काम करना है कभी करना ही नही है
ग्यारहवे भाव मे है तो कभी बहुत कमाई कभी धेला भी नही
बारहवे भाव मे है तो घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है

केतु अगर-

पहले भाव मे है तो अकेला काफ़ी है
दूसरे भाव मे है तो मालिक के लिये धनदायक है
तीसरे भाव मे है तो टेलीफ़ोन का तार है
चौथे भाव मे है तो बेचारा सांस का मरीज है
पंचम भाव मे है तो क्रिकेट का बल्ला है
छठे भाव मे है तो औजार ही खराब है
सातवे भाव मे है तो सामने खम्भा है
आठवे भाव मे है तो एक टांग टूटी है
नवे भाव मे है तो कोई धर्म हो सब एक जैसे है
दसवे भाव मे है तो सरकारी नेता है
ग्यारहवे भाव मे है तो हर काम बायें हाथ का है
बारहवे भाव मे है तो झंडा ऊंचा रहे हमारा

Posted By KanpurpatrikaThursday, December 10, 2015