Thursday, February 27, 2020

दहेज़ लोभियों के अंगारों को

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दहेज़ लोभियों के अंगारों को   
मैने बेटी के सपनो का महल बना लिया था
उसकी खुशियों के चार चाँद ले लिए थे
जब वो जाएगी मेरी दहलीज़ छोड़ कर
फिर कब मिलेगी किस मोड़ पर
डर लगता था तब
जब छोटी सी चोट लग जाती थी तुमको
अब सोच कर भी डर जाता हूँ
दहेज़ के नित्य नए किस्से सुनकर
क्यों लालच बढ़ रहा है दहेज़ के शैतानो का
पड़ लिख कर क्यों रूप रख रहे हो हैवानो का
तुम्हारी भी तो बहन या बेटी होगी
 तुम्हे तनिक भी एहसास नहीं उनके दर्द का 
सोच लो ईश्वर ने दे दिया तुम्हे सब कुछ उस दिन
जब एक पिता रोता है एक बेटी के बिन
वह लक्ष्मी भी है सरस्वती भी होगी
अबला बन तुम्हारे अपराध सहती होगी है
चुप थी ,न की वो डरी थी
रोई भी थी, सोई भी न थी
पिता के प्यार में
एक तरफ दर्द सही थी
पता था उसको
पिता टूट जायेगा बेटी के दुखो से
जानकर तुम्हारे बाजारू अरमानो को
मैं देख न सकती थी उसके हालातों को
इसलिए चुन लिए
दहेज़ लोभियों के अंगारों को
WRITTEN BY : ASHISH C TRIPATHI 

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