Tuesday, January 3, 2012

एक फूल हु मैं

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एक फूल हु मैं
फूल हु मैं कोई कागज़ तो नहीं जो फाड़ के फैक दिया जाय
फूल हु मैं कोई राख तो नहीं जो झाड़ दिया जाय
फूल हु मैं कोई कटा तो नहीं जो चुभन दे जाऊ
फिर क्योँ मुझे भी बाट दिया इंसानों के हिसाब से
लाश पर चढू तो लोग छुने में शर्माते है
भगवान पर चढू तो लोग उठाने के लिए लड़ जाते है
पेड़ पर हु तो सब तोडना चाहते है
सड़क पर हु तो सब कुचलना चाहते है
शहीद पर चढू तो सब नमन करना जानते है
गद्दार पर चढू तो सब थूकना जानते है ...
पर क्योँ मैं फूल हो तो हु कोई इन्सान तो नहीं
जो बाट दिया जाता हु इंसानों के अधार पर
जातियों और वर्गों के हिसाब से
अमीर और गरीबो के चेहरों के हिसाब से ...
फूल हु मैं कोई इन्सान तो नहीं

आशीष त्रिपाठी

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