आखिर क्यों .....
आखिर क्यों सभी चिल्लाते है पोस्टर लगाते है कहते है " सेव द गर्ल चाइल्ड " आखिर क्यों क्या इसलिए की लड़की कभी माँ बन कर कभी बहन बन कर और कभी पत्नी बन कर इन इंसानों के अत्याचारों को सहे... क्या इसलिए की आज का इन्सान अकेला पा कर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ता है न उम्र देखता है न सम्बन्ध सिर्फ इस लिए की मैं एक लड़की हु.... इस समाज में लड़की होना एक जुर्म हो गया है ..विधायक हो या पुलिस शिक्षक हो या पिता क्या सभी के मस्तिष्क में एक ही विचार है .....क्या करुँगी मैं इस दुनिया में आकार जब मैं पहले से ही देखती हु अरुशी को दिव्या शीलू और कविता के रूप में अपने आप को , और न जाने कितनी वो जो अखबारों की सुर्खिया न बन पाई ...आखिर क्योँ आऊँ और मैं इस दुनिया में क्या इसलिए की माँ बन कर बच्चो का पालन करू और बच्चे बड़े हो कर मुझे ही सड़क पर छोड़ दे तडपने के लिए ... क्या इसलिए की बहन बन कर भाई का प्यार बनू और वही भाई पैसो के खातिर मुझे ही बेच दे ... क्या इसलिए की एक बेटी बन कर आऊं वही पिता अपनी ही बेटी को हवस का शिकार बना डाले आखिर क्यों आऊँ .
आखिर क्यों आऊँ मैं इस दुनिया में जब मैं अन्दर से ही सुनती हु और देखती हु अपनी माँ को दादी के ताने देते हुए की गर लड़की हुई तो घर से बाहर कर दूंगी और पापा भी लड़की होने के पीछे भी माँ को ही दोष देते है और पंडित से भी तो मेरे न आने के लिए ही उपाय किये जाते है , और देवी मंदिरों में जा कर लोग लड़का ही तो मांगते है लेकिन शायद वो उस समय ये भूल जाते है की वो देवी भी एक लड़की का स्वरूप है .... 21 शदी में भी आने के बाद क्या आज भी लड़की एक अभिशाप है क्या सब कुछ बदल रहा है पर इन्सान की सोच लडकियों के बारे में क्यों नहीं बदलती ...
कभी कूडे के ढेर में तो कभी रेलवे ट्रेक पर तो कभी अस्पताल की छत पर सेफैक दी जाती हु मैं क्यों क्या माँ निर्दयी होती है नहीं लेकिन समाज की नजरे और सोच उस समय एक माँ को कातिल कुमाता जैसे शब्दों से बुलाते है लेकिन वो ममता की देवी जानती है की अभी मर गई तो एक बार ही मरेगी लेकिन अगर जी गए तो न जाने कितने बार मर मर कर जीना पडे ...क्योंकि समाज के भेड़िये के सामने बेटी को पालना कितना कष्ट कारक होगा ....घर से लेकर स्कूल तक लड़की कही भी सुरक्षित न रह पायेगी ...वो समय न देखना पडे इस लिए ही तो मैं आज तुम्हे मुक्त कर रही हुई ...माँ ने मार दिया मुझको ....
क्योंकि अन्दर से हर लड़की अपनी माँ से यही कहती है " माँ मार दो मुझको " ....
आखिर क्यों लड़की के साथ ही धोखा होता है ... मुझे याद है की जब मैं जन्मी थी उस समय मेरी माँ और पापा की आखो से आंशु छलके थे सभी बड़े रो रहे थे मुझे ख़ुशी हुई की मैं इस दुनिया में आई लेकिन जब मैने सबकी बाते सुनी तो मेरे भी आखो से आंशु निकलने लगे मैं भी जोर जोर से रोने लगी .. क्योंकि वो माँ और पिता के ख़ुशी के आंशु नहीं थे वो तो लड़की के पैदा होने के दुःख के आंशु थे .. सभी मुझे किनारे लगाने की बात कर रहे थे और रात के अंधेरे में मुझे मेरे पापा कूड़े के ढेर में फैक आए और रात भरमैं शर्द रातो में रोती रही चीखती रही की भगवान क्यों मुझे भेजा इस दुनिया में .... सुबह होते ही सभी उस कूडे के ढेर के पास से निकले और देखना तो दूर सभी मुह्ह मे कपडा लगाय ही थे क्योंकि मैं वहा पड़ी थी नहीं जहा जोर दार बदबू थी लोग उस जगह के पास से निकलना की भी नहीं सोचते है मैने तो एक रात वहा बिताई है ......और कुत्ते सुबह होते भोजन की तलाश में कूडे के ढेर में मुह मारते है लेकिन कुछ ही पालो में उनको मेरी गंध लग जाती है और सभी मुझे नोचने लगते है और मैं चीखती रहती हु लेकिन मैं खुश भी थी की मैं मौत के मुह में जा रही हु कम से कम उन इंसानी कुतो के मुह्ह से तो बच गई जो बार बार मार के भी जीने पर मजबूर करते ...
आखिर ये समाज चहाता क्या है न ही हमे पडने दे रहा है न ही आगे बडने दे रहा है और न इस धरती पर जन्म लेने दे रहा है फिर मैं क्योँ जन्म लू इस धरती पर ॥
अगर आकडे देख ले तो लगातार इस भारत में लडकियों की संख्या कम होती जा रही है लेकिन फिर भी किसी को चिंता ही नहीं है लेकिन जो बची है उनके साथ तो अन्याय मत करो लेकिन नहीं ये समाज की मानसिकता है ये शायद नहीं बदलेगी तभी तो अनुराधा और सोनाली ने इन समाज की नजरो से अपने को बचाया वही इनके अपनों ने इनका साथ नहीं दिया क्योँ .. आखिर क्योँ उनके साथ ऐसा हुआ जो सात महीने तक और न जाने कितने दिनों तक और बंद रहती वो .. क्या उसके भाई का फ़र्ज़ ये नहीं था की वो अपनी बहनों को ख्याल रखता जिन बहनों ने अपने जीवन के बारे में न सोच कर अपने करिएर के बारे में न सोच कर अपने छोटे भाई को पाला लेकिन छोटा जब बड़ा हुआ तो छोड़ दिया उनको उनके हालतों पर ..
मैं पूछना चाहती हु की जब बचपन में एक बार में कोई चीज़ समझ में नहीं आती थी तो सोनाली और अनुराधा दस बार समझाती थी तब उन्होने एक बार भी नहीं कहा की मैं तुम्हारा साथ नहीं दे पाऊँगी उन्होने तो तुम्हारे सपनो में अपने सपने देखे थे .. लेकिन उन्हे नहीं मालूम था सपने चाहे खुली आखो से देखो या बंद सपने सपने ही होते है .. इसलिए ही तो भाई जब काबिल हो गया तो छोड़ दिया बहनों को मरने के लिए ..अब जब ये हालात है लडकियों के तो क्या करू मैं जन्म ले कर...
आखिर क्यों समाज के ठेकेदार नेता और अभिनेता सभी ये गुजारिश करते है की " सेव द गर्ल चाइल्ड " आखिर क्यों ये सवाल मैं आप सब से पूछती हु और माँ से यही कहती हु " माँ मार दो मुझको " माँ मार दो मुझको............ माँ मार दो मुझको...........
भारत की जन संख्या २०११ के मुताबिक
जनसंख्या | कुल | 1,210,193,422 |
पुरुष | 623,724,248 | |
महिलायें | 586,469,174 | |
साक्षरता | कुल | 74.04% |
पुरुष | 82.14% | |
महिलायें | 65।46% |
ये अनुपात भी यही कह रहे है की हम इस धरती में आना ही नहीं चाहते है इसलिए ही तो हम कह रहे है
" माँ मार दो मुझको अभी....."
एक दिन खोई थी मैं अपने ही सपनो में ,
तनहा थी जबकि मैं बैठी थी अपनों में ....
आवाज़ दी मुझको किसी ने पर वहा कोई न था
गूंज मेरे कानो में गूंजती फिर भी रही
मनो मुझसे कह रही हो माँ मुझे तुम मत बुलाओ
दुनिया की इस आग में घुट - घुट के मुझे मत जलाओ
मानव रूपी दानव मुझे समाज में जीने न देगा
मस्त परिंदे की तरह मुझे आकाश में उड़ने न देगा
रौंदकर देह मेरी कुचलेगा सपनो को मेरे
काट देगा पंख मेरे छोड़ देगा रक्त रंजित ,
रक्तरंजित.........
क्या मेरे इस दर्द को तब सहन कर पाओगी ?
मेरे ह्रदय की वेदना को दुनिया से कह पाओगी ?
माँ अभी हु मैं अजन्मी, जान हू तेरी अभी ,
दिल पर पत्थर रख लो माँ
मार दो मुझको अभी .... मार दो मुझको अभी अभी अभी अभी ..........
( लेख ... संध्याशिश त्रिपाठी के द्वारा )
" माँ मार दो मुझको अभी....."
एक दिन खोई थी मैं अपने ही सपनो में ,
तनहा थी जबकि मैं बैठी थी अपनों में ....
आवाज़ दी मुझको किसी ने पर वहा कोई न था
गूंज मेरे कानो में गूंजती फिर भी रही
मनो मुझसे कह रही हो माँ मुझे तुम मत बुलाओ
दुनिया की इस आग में घुट - घुट के मुझे मत जलाओ
मानव रूपी दानव मुझे समाज में जीने न देगा
मस्त परिंदे की तरह मुझे आकाश में उड़ने न देगा
रौंदकर देह मेरी कुचलेगा सपनो को मेरे
काट देगा पंख मेरे छोड़ देगा रक्त रंजित ,
रक्तरंजित.........
क्या मेरे इस दर्द को तब सहन कर पाओगी ?
मेरे ह्रदय की वेदना को दुनिया से कह पाओगी ?
माँ अभी हु मैं अजन्मी, जान हू तेरी अभी ,
दिल पर पत्थर रख लो माँ
मार दो मुझको अभी .... मार दो मुझको अभी अभी अभी अभी ..........
( लेख ... संध्याशिश त्रिपाठी के द्वारा )
sundar... bahut barhia... isi tarah likhte rahiye...
ReplyDeletehttp://hellomithilaa.blogspot.com/
hitendra ji bahu bahu dhanywad tippani kareney key liye
ReplyDeletekya baat hai sir bahut acche app jise loge hi desh ko age badha sakte hai
ReplyDeletemohit agar hamrey jaisi soch waley logo ki sankhya is kanpur me hi thik thak ho jay to kanpur hi badal jayega phir koi maa yani apni jamin kanpur ko ganda nahi kahega bura lagta hai jab koi kaheta hai kanpur bada hi ganda hai hamney us jamin me us mitti me janm liya lekin ........
ReplyDeleteबहुत गंभीर समस्या उठायी है आपने और बड़े ही मार्मिक ढंग से. इसके लिए बहित धन्यवाद
ReplyDeleteडॉ नूतन ठाकुर
लखनऊ
आप लोगो का सहयोग मिलता रहे बस
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