आज का हिंदुस्तान
बरपा दिया कहर चीर दिया शहर
हर तरफ हर ओर मचा है शोर
कही सड़क में गड़्डे है तो कही गड़्डे में सड़क
नेता भी नहीं है पीछे वो भी है तलवार खीचे
शायद जनता इसी से हमारी राजनीती सीचे
हर बार करते है हमारे सब कम दिखाने को
हर बार आते है किसी ने बहने को
क्या झुठा क्या सच्चा क्या पता
सबका मालिक एक है ये हमको है पता
जनता रोती है खीजती है
पर जीने को मजबूर है
लेकिन नेता कही मंदिर तो कही
खेल की राजनीती में मशगुल है
शहर शहर नहीं कब्रिस्तान बना है
इसलिए ही तो गड़्डे में रोज़ इन्सान मरा है
कभी प्रिंस तो कभी विनय तो कभी कल्लू है
मीडिया भी इन सब के पीछे सीधा करता अपना उल्लू है
सुना था कानून के हाथ काफी लम्बे है
इसलिए ही तो अपराधी इनसे हाथ मिलकर कर खडे है
कभी सपना कभी ज्योति तो कभी कविता बनती है शिकार
क्योकि आज के युग में हर इन्सान के मन मे है विकार
कभी संसद में नेता तो कभी सड़क में लडते है साड़
अरे मेरे भाई यही तो नहीं है आज का हिंदुस्तान
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