1- सर्वप्रथम तो यह कि किसी भी मनुष्य को वह ही फल मिल सकता है जो कि उसकी कुण्डली में निर्धारित हो। उदाहरण के तौर पर अगर किसी की कुण्डली में विवाह का योग नहीं है तो दशा कितनी भी विवाह देने वाली हो, विवाह नहीं हो सकता।
2- कितना फल मिलेगा यह ग्रह की शुभता और अशुभता पर निर्भर करेगा। ग्रहों की शुभता और अशुभता कैसे जानें इसकी चर्चा हम 'फलादेश के सामान्य नियम' शीर्षक के अन्तर्गत कर चुके हैं, जहां हमनें 15 नियम दिए थे। उदाहरण के तौर पर अगर किसी दशा में नौकरी मिलने का योग है और दशा का स्वामी सभी 15 दिए हुए नियमों के हिसाब से शुभ है तो नौकरी बहुत अच्छे वेतन की मिलेगी। ग्रह शुभ नहीं है तो नौकरी मिली भी तो तनख्वाह अच्छी नहीं होगी।
3- कोई भी दशा पूरी तरह से अच्छी या बुरी नहीं होती है। जैसे किसी व्यक्ति को किसी दशा में बहुत अच्छी नौकरी मिलती है परन्तु उसके पिता की मृत्यु हो जाती है तो दशा को अच्छा कहेंगे या बुरा? इसलिये दशा को अच्छा या बुरा मानकर फलादेश करने की बजाय यह देखना चाहिए कि उस दशा में क्या क्या फल मिल सकते हैं।
किसी दशा में क्या फल मिलेगा?
दशाफल महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तर्दशा स्वामी ग्रहों पर निर्भर करता है। ग्रहों कि निम्न स्थितियों को देखना चाहिए और फिर मिलाजुला कर फल कहना चाहिए -
1- ग्रह किस भाव में बैठा है। ग्रह उस भाव का फल देते हैं जहां वे बैठै होते हैं। यानी अगर कोई ग्रह सप्तम भाव में स्थित है और जातक की विवाह की आयु है तो उस ग्रह की दशा विवाह दे सकती है, यदि उसकी कुण्डली में विवाह का योग है।
2- ग्रह अपने कारकत्व के हिसाब से भी फल देते हैं। जैस सूर्य सरकारी नौकरी का कारक है अत: सूर्य की दशा में सरकारी नौकरी मिल सकती है। इसी तरह शुक्र विवाह का कारक है। समान्यत: देखा गया है कि दशा में भाव के कारकत्व ग्रह के कारकत्व से ज्यादा मिलते हैं।
3- ग्रह किन ग्रहों को देख रहा है और किन ग्रहों से दृष्ट है। दृष्टि का असर भी ग्रहों की दशा के समय मिलता है। दशा के समय दृष्ट ग्रहों असर भी मिला हुआ होगा।
4- सबसे महत्वपर्ण और अक्सर भूला जाने वाला तथ्य यह है कि ग्रह अपने नक्षत्र स्वामी से बहुत अधिक प्रभावित रहता है। ग्रह वह सभी फल भी देता है जो उपरोक्त तीन बिन्दुओं के आधार पर ग्रह का नक्षत्र स्वामी देगा। उदाहरण के तौर पर अगर को ग्रह 'अ' किसी ग्रह 'ब' के नक्षत्र में है और ग्रह 'ब' सप्तम भाव में बैठा है। ऐसी स्थिति में ग्रह 'अ' कि दशा में भी विवाह हो सकता है, क्योंकि सप्तम भाव विवाह का स्थान है।
5- राहु और केतु उन ग्रहों का फल देते हैं जिनके साथ वे बैठे होते हैं और दृष्टि आदि से प्रभावित होते हैं।
6- महादशा का स्वामी ग्रह अपनी अन्तर्दशा में अपने फल नहीं देता। इसके स्थान पर वह पूर्व अन्तर्दशा के स्वयं के अनुसार संशोधित फल देता है।
7- उस अन्तर्दशा में महादशा से संबन्धित सामान्यत: शुभ फल नहीं मिलते जिस अन्तर्दशा का स्वामी महादशा के स्वामी से 6, 8, या 12 वें स्थान में स्थित हो।
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