रुद्राक्ष-धारण करने से पहले उसके असली
होने की जांच
अवद्गय करवा लें। असली रुद्राक्ष ही धारण करें। खंडित, कांटों से रहित या कीड़े लगे हुए रुद्राक्ष धारण नहीं
करें।
जपादि कार्यों में छोटे और धारण करने
में बड़े रुद्राक्षों का ही उपयोग करें। तनाव से मुक्ति हेतु 100 दानों की, अच्छी सेहत एवं आरोग्य के लिए 140
दानों की, अर्थ प्राप्ति के लिए 62 दानों की तथा सभी कामनाओं की पूर्ति हेतु 108 दानों की माला धारण करें। जप आदि
कार्यों में 108 दानों
की माला ही
उपयोगी मानी गई है। अभीष्ट की प्राप्ति के लिए 50 दानों की माला धारण करें। द्गिाव पुराण
के अनुसार 26 दानों
की माला मस्तक पर, 50 दानों
की माला हृदय
पर, 16 दानों की माला भुजा
पर तथा 12 दानों की माला मणिबंध
पर धारण करनी
चाहिए।
जिस रुद्राक्ष माला से जप करते हों,
उसे धारण नहीं करें। इसी प्रकार जो माला धारण करें,
उससे जप न करें। दूसरों के द्वारा उपयोग
में लाए गए रुद्राक्ष
या रुद्राक्ष माला को प्रयोग में न लाएं।
रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठा कर शुभ
मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए
ग्रहणे विषुवे चैवमयने संक्रमेऽपि वा।
दर्द्गोषु पूर्णमसे च पूर्णेषु दिवसेषु
च।
रुद्राक्षधारणात् सद्यः सर्वपापैर्विमुच्यते॥
रुद्राक्षधारणात् सद्यः सर्वपापैर्विमुच्यते॥
ग्रहण में, विषुव संक्रांति (मेषार्क तथा तुलार्क)
के दिनों, कर्क और मकर संक्रांतियों के
दिन, अमावस्या, पूर्णिमा एवं पूर्णा तिथि को रुद्राक्ष धारण करने से सभी
पापों से मुक्ति मिलती है।
मद्यं मांस च लसुनं पलाण्डुं
द्गिाग्रमेव च।
श्लेष्मातकं विड्वराहमभक्ष्यं वर्जयेन्नरः॥ (रुद्राक्षजाबाल-17)
श्लेष्मातकं विड्वराहमभक्ष्यं वर्जयेन्नरः॥ (रुद्राक्षजाबाल-17)
रुद्राक्ष धारण करने वाले को यथासंभव
मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन, निसोडा और विड्वराह (ग्राम्यशूकर) का
परित्याग करना चाहिए। सतोगुणी, रजोगुणी
और तमोगुणी प्रकृति के मनुष्य वर्ण, भेदादि के अनुसार विभिन्न प्रकर के रुद्राक्ष धारण करें।
रुद्राक्ष को शिवलिंग अथवा शिव-मूर्ति
के चरणों से स्पर्द्गा कराकर धारण करें। रुद्राक्ष हमेद्गाा नाभि के ऊपर
शरीर के विभिन्न अंगों (यथा कंठ, गले,
मस्तक, बांह, भुजा) में धारण करें, यद्यपि शास्त्रों में विशेष परिस्थिति में
विद्गोष सिद्धि हेतु कमर में भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है। रुद्राक्ष अंगूठी में कदापि
धारण नहीं करें, अन्यथा भोजन-द्गाौचादि
क्रिया में इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी।
रुद्राक्ष पहन कर श्मद्गाान या किसी
अंत्येष्टि-कर्म में अथवा प्रसूति-गृह में न जाएं। स्त्रियां
मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें। रुद्राक्ष धारण कर रात्रि शयन न
करें।
रुद्राक्ष में अंतर्गर्भित विद्युत
तरंगें होती हैं जो शरीर में विद्गोष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार
करने में सक्षम होती हैं। इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की दिव्य औषधि कहा
गया है। अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई
का विद्गोष खयाल रखें। शुष्क होने पर इसे तेल में कुछ समय तक डुबाकर रखें।
रुद्राक्ष स्वर्ण या रजत धातु में धारण
करें। इन धातुओं के अभाव में इसे ऊनी या रेशमी धागे में भी धारण कर सकते
हैं। अधिकतर रुद्राक्ष यद्यपि लाल धागे में धारण किए जाते हैं, किंतु एक मुखी रुद्राक्ष सफेद धागे,
सात मुखी काले धागे और ग्यारह, बारह, तेरह मुखी तथा गौरी-शंकर रुद्राक्ष पीले
धागे में
भी धारण करने का विधान है।
रुद्राक्ष धारण करने के लिए शुभ मुहूर्त
या दिन का चयन कर लेना चाहिए। इस हेतु सोमवार उत्तम है। धारण के एक
दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के तेल में डुबाकर
रखें। धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर
पवित्र कर लें। फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर क्क नमः
शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने
रखें। फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी,
मधु एवं शक्कर) अथवा पंचगव्य (गाय का
दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र
करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव
मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।
तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव
पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या शास्त्रोक्त बीज मंत्र का 21,
11, 5 अथवा कम से कम 1
माला जप करें। फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र क्क
नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र क्क तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः
प्रचोदयात् का 1 माला
जप करके रुद्राक्ष-धारण
करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें। रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा सात्विक अल्पाहार लें।
विशेष : उक्त क्रिया संभव नहीं हो,
तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर सोमवार को) संबंधित
रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य,
पंचामृत अथवा गंगाजल से पवित्र करके,
अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा
शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण श्रद्धा भाव से धारण करें।
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