तिथि – चन्द्रमा आकाश में
चक्कर लगाता हुआ जिस समय सूर्य के बहुत पास पहुच जाता है उस समय अमावस्या
होती है | ( जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बिलकुल मध्य में स्थित होता है
तब वह सूर्य के निकटतम होता है |) अमावस्या के बाद चंद्रमा सूर्य से आगे
पूर्व की ओर बढ़ता जाता है और जब १२० कला आगे हो जाता है तब पहली तिथि
(प्रथमा) बीतती है | १२० से २४० कला का जब अंतर रहता है तब दूज रहती है |
२४० से २६० तक जब चंद्रमा सूर्य से आगे रहता है तब तीज रहती है | इसी
प्रकार जब अंतर १६८०-१८O० तक होता है तब पूर्णिमा होती है, १८O०-१९२० तक जब
चंद्रमा आगे रहता है तब १६ वी तिथि (प्रतिपदा) होती है | १९२०- २O४० तक
दूज होती है इत्यादि | पूर्णिमा के बाद चंद्रमा सूर्यास्त से प्रतिदिन कोई २
घडी (४८ मिनट) पीछे निकालता है |
चन्द्र मासों के नाम इस प्रकार हैं – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़,
श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष या मृगशिरा, पौष, माघ और
फाल्गुन |
देवताओं का एक दिन –
मनुष्यों के एक वर्ष को देवताओं के एक दिन माना गया है । उत्तरायण तो उनका
दिन है और दक्षिणायन रात्रि । पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर देवताओं के रहने
का स्थान तथा दक्षिणी ध्रुव पर राक्षसों के रहने का स्थान बताया गया है |
साल में २ बार दिन और रात सामान होती है | ६ महीने तक सूर्य विषुवत के
उत्तर और ६ महीने तक दक्षिण रहता है | पहली छमाही में उत्तरी गोल में दिन
बड़ा और रात छोटी तथा दक्षिण गोल में दिन छोटा और रात बड़ी होती है | दूसरी
छमाही में ठीक इसका उल्टा होता है | परन्तु जब सूर्य विषुवत वृत्त के उत्तर
रहता है तब वह उत्तरी ध्रुव (सुमेरु पर्वत पर) ६ महीने तक सदा दिखाई देता
है और दक्षिणी ध्रुव पर इस समय में नहीं दिखाई पड़ता | इसलिए इस छमाही को
देवताओ का दिन तथा राक्षसों की रात कहते हैं | जब सूर्य ६ महीने तक विषुवत
वृत्त के दक्षिण रहता है तब उत्तरी ध्रुव पर देवताओं को नहीं दिख पड़ता और
राक्षसों को ६ महीने तक दक्षिणी ध्रुव पर बराबर दिखाई पड़ता है | इसलिए
हमारे १२ महीने देवताओं अथवा राक्षसों के एक अहोरात्र के समान होते हैं |
देवताओं का १ दिन (दिव्य दिन) = १ सौर वर्ष
देवताओं का १ दिन (दिव्य दिन) = १ सौर वर्ष
दिव्य वर्ष – जैसे ३६०
सावन दिनों से एक सावन वर्ष की कल्पना की गयी है उसी प्रकार ३६० दिव्य दिन
का एक दिव्य वर्ष माना गया है | यानी ३६० सौर वर्षों का देवताओं का एक वर्ष
हुआ | अब आगे बढ़ते हैं |
१२०० दिव्य वर्ष = १ चतुर्युग = १२०० x ३६० = ४३२००० सौर वर्ष
चतुर्युग में सतयुग, त्रेता, द्वापर और
कलियुग होते हैं | चतुर्युग के दसवें भाग का चार गुना सतयुग (४०%), तीन
गुना (३०%) त्रेतायुग, दोगुना (२०%) द्वापर युग और एक गुना (१०%) कलियुग
होता है |
अर्थात १ चतुर्युग (महायुग) = ४३२०००० सौर वर्ष
१ कलियुग = ४३२००० सौर वर्ष
१ द्वापर युग = ८६४६०० सौर वर्ष
१ त्रेता युग = १२९६००० सौर वर्ष
१ सतयुग = १७२८००० सौर वर्ष
जैसे एक अहोरात्र में प्रातः और सांय दो
संध्या होती हैं उसी प्रकार प्रत्येक युग के आदि में जो संध्या होती है उसे
आदि संध्या और अंत में जो संध्या आती है उसे संध्यांश कहते हैं | प्रत्येक
युग की दोनों संध्याएँ उसके छठे भाग के बराबर होती हैं इसलिए एक संध्या
(संधि काल ) बारहवें भाग के सामान हुई | इसका तात्पर्य यह हुआ कि
कलियुग की आदि व अंत संध्या = ३६०० सौर वर्ष वर्ष
द्वापर की आदि व् अंत संध्या = ७२००० सौर वर्ष
त्रेता युग की आदि व अंत संध्या = १०८००० सौर वर्ष
सतयुग की आदि व अंत संध्या = १४४००० सौर वर्ष
अब और आगे बढ़ते हैं |
७१ चतुर्युगों का एक मन्वंतर होता है,
जिसके अंत में सतयुग के समान संध्या होती है | इसी संध्या में जलप्लव् होता
है | संधि सहित १४ मन्वन्तरों का एक कल्प होता है, जिसके आदि में भी सतयुग
के समान एक संध्या होती है, इसलिए एक कल्प में १४ मन्वंतर और १५ सतयुग के
सामान संध्या हुई |
अर्थात १ चतुर्युग में २ संध्या
१ मन्वंतर = ७१ x ४३२०००० = ३०६७२०००० सौर वर्ष
मन्वंतर के अंत की संध्या = सतयुग की अवधि = १७२८००० सौर वर्ष
= १४ x ७१ चतुर्युग + १५ सतयुग
= ९९४ चतुर्युग + (१५ x ४)/१० चतुर्युग (चतुर्युग का ४०%)
= १००० चतुर्युग = १००० x १२००० = १२०००००० दिव्य वर्ष
= १००० x ४३२०००० = ४३२००००००० सौर वर्ष
ऐसा मनुस्मृति में भी मिलता है किन्तु आर्यभट की आर्यभटीय के अनुसार
१ कल्प = १४ मनु (मन्वंतर)
१ मनु = ७२ चतुर्युग
और आर्यभट्ट के अनुसार
१४ x ७२ = १००८ चतुर्युग = १ कल्प
जबकि सूर्य सिद्धांत से १००० चतुर्युग = १ कल्प
जो की ब्रह्मा के १ दिन के बराबर है | इतने
ही समय की ब्रह्मा की एक रात भी होती है | इस समय ब्रह्मा की आधी आयु बीत
चुकी है, शेष आधी आयु का यह पहला कल्प है | इस कल्प के संध्या सहित ६ मनु
बीत गए हैं और सातवें मनु वैवस्वत के २७ महायुग बीत गए हैं तथा अट्ठाईसवें
महायुग का भी सतयुग बीत चूका है |
इस समय २०१३ में कलियुग के ५०४७ वर्ष बीते हैं |
महायुग से सतयुग के अंत तक का समय = १९७०७८४००० सौर वर्ष
यदि कल्प के आरम्भ से अब तक का समय जानना
हो तो ऊपर सतयुग के अंत तक के सौर वर्षों में त्रेता के १२८६००० सौरवर्ष,
द्वापर के ८६४००० सौर वर्ष तथा कलियुग के ५०४७ वर्ष और जोड़ देने चाहिए |
बीते हुए ६ मन्वन्तरों के नाम हैं – (१)
स्वायम्भुव (२) स्वारोचिष (३) औत्तमी (४) तामस (५) रैवत (६) चाक्षुष |
वर्तमान मन्वंतर का नाम वैवस्वत है | वर्तमान कल्प को श्वेत कल्प कहते हैं,
इसीलिए हमारे संकल्प में कहते हैं –
प्रवर्तमानस्याद्य ब्राह्मणों द्वितीय
प्रहरार्धे श्री श्वेतवराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे
कलि प्रथम चरणे ……………बौद्धावतारे वर्तमानेस्मिन वर्तमान संवत्सरे अमुकनाम
वत्सरे अमुकायने अमुक ऋतु अमुकमासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुकवासरे
अमुकनक्षत्रे संयुक्त चन्द्रे …. ….. तिथौ ………
एक सौर वर्ष में १२ सौर मास तथा ३६५.२५८५
मध्यम सावन दिन होते हैं परन्तु १२ चंद्रमास ३५४.३६७०५ मध्यम सावन दिन का
होता है, इसलिए १२ चंद्रमासों का एक वर्ष सौर वर्ष से १०.८९१७० मध्यम सावन
दिन छोटा होता है | इसलिए कोई तैंतीस महीने में ये अंतर एक चंद्रमास के
समान हो जाता है | जिस सौर वर्ष में यह अंतर १ चंद्रमास के समान हो जाता है
उस सौर वर्ष में १३ चंद्रमास होते हैं | उस मास को अर्धमास या मलमास कहा
जाता है | यदि ऐसा न किया जाये तो चंद्रमास के अनुसार मनाये जाने वाले
त्यौहार पर्व इत्यादि भिन्न भिन्न ऋतुओं में मुसलमानी त्यौहारों की तरह
भिन्न भिन्न ऋतुओं में पड़ने लगे |
किस घंटे (होरा) का स्वामी कौन ग्रह है यह
जानने के लिए वह क्रम समझ लेना चाहिए जिस क्रम से घंटे के स्वामी बदलते हैं
| शनि ग्रह पृथ्वी से सब ग्रहों से दूर है, उस से निकटवर्ती बृहस्पति है,
बृहस्पति से निकट मंगल, मंगल से निकट सूर्य, सूर्य से निकट शुक्र, शुक्र से
निकट बुध और बुध से निकट चंद्रमा है | इसी क्रम से होरा के स्वामी बदलते
हैं | यदि पहले घंटे का स्वामी शनि है तो दूसरे घंटे का स्वामी बृहस्पति,
तीसरे घंटे का स्वामी मंगल, चौथे का सूर्य, पांचवे का शुक्र, छठे का बुध,
सातवें का चन्द्रमा, आठवें का फिर शनि इत्यादि क्रमानुसार हैं | परन्तु जिस
दिन दिन पहले घंटे का स्वामी शनि होता है उस दिन का नाम शनिवार होना चाहिए
| इसलिए शनिवार के दूसरे घंटे का स्वामी बृहस्पति, तीसरे घंटे का स्वामी
मंगल इत्यादि हैं | इस प्रकार सात सात घंटे के बाद स्वामियों का वही क्रम
फिर आरम्भ होता है | इसलिए शनिवार के २२वें घंटे का स्वामी शनि, २३वें का
बृहस्पति, २४वें का मंगल और २४वें के बाद वाले घंटे का स्वामी सूर्य होना
चाहिए | परन्तु यहाँ २५वां घंटा अगले दिन का पहला घंटा है जिसका स्वामी
सूर्य है इसलिए शनिवार के बाद रविवार आता है | इसी प्रकार रविवार के २५वें
घंटे यानी अगले दिन के पहले घंटे का स्वामी चन्द्रमा होगा इसलिए उसे
चंद्रवार या सोमवार कहते हैं | इसी प्रकार और वारों का नामकरण हुआ है |
इससे यह स्पष्ट होता है कि शनिवार के बाद
रविवार और रविवार के बाद सोमवार और सोमवार के बाद मंगलवार क्यों होता है |
शनि से रवि चौथा ग्रह है और रवि से चौथा ग्रह है और रवि से चंद्रमा चौथा
ग्रह है अतः प्रत्येक दिन का स्वामी उसके पिछले दिन के स्वामी से चौथा ग्रह
है |
मैटोनिक चक्र – मिटन ने ४३३ ई.पू. में देखा
कि २३५ चंद्रमास और १९ सौर वर्ष अर्थात १९x१२ = २२८ सौर मासों में समय
लगभग समान होता है, इनमें लगभग १ घंटे का अंतर होता है |
१९ सौर वर्ष = १९ x ३६५.२५ = ६९३९.७५ दिवस
२३५ चन्द्र मास = २३५x२९.५३१ = ६९३९.७८५ दिवस
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रत्येक १९
वर्ष में २२८ सौर मास और लगभग २३५ चन्द्र मास होते हैं अर्थात ७ चन्द्र मास
अधिक होते हैं | चन्द्र और सौर वर्षों का अगर समन्वय नहीं करे तब लगभग
३२.५ सौर वर्षों में, ३३.५ चन्द्र वर्ष हो जायेंगे | अगर केवल चन्द्र वर्ष
से ही चलें तब अगर दीपावली नवम्बर में आती है तब १९ वर्षों में यह ७ मास
पहले अर्थात अप्रेल में आ जाएगी और इन धार्मिक त्यौहारों का ऋतुओं से कोई
सम्बन्ध नहीं रह जायेगा | इसलिये भारतीय पंचांग में इसका ख्याल रखा जाता है
|
क्षयमास – मलमास या अधिमास की भांति
क्षयमास भी होता है | सूर्य की कोणीय गति नवम्बर से फरवरी तक तीव्र हो जाती
है और इसकी इसकी संक्रांतियों के मध्य समय का अंतर कम हो जाता है | इन
मासों में कभी कभी जब संक्रांति से कुछ मिनट पहले ही अमावस्या का अंत हुआ
हो, तब मास का क्षय हो जाता है |
जिस चंद्रमास (एक अमावस्या के अंत से दूसरी
अमावस्या के अंत तक) में दो संक्रांतियों आ जाएँ, उसमें एक मास का क्षय हो
जाता है | यह कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष और माघ इन चार मास में ही होता है
अर्थात नवम्बर से फरवरी तक ही हो सकता है |
अब संक्षिप्त में राशियों और नक्षत्रों के
बारे में चर्चा करते हैं ताकि आगे जब ग्रहों और नक्षत्रों के बारे में कोई
सन्दर्भ आये तो हमें उसमें कोई उलझन न हो |
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