क्यों पसरा है सन्नाटा
आया है माहौल चुनावी इस बार सन्नाटे में ...
द्वार द्वार न झंडे है न पोस्टर बैनर बिल्ले है
न ही नेता दिखते शोर मचाते न दिखते चमचे है
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियारों में
क्यों पकड़ा जाता बीच चौराहों पर काला धन सफ़ेद कपड़ो में
सभी पहने है सफ़ेद कपडे काले मन और तन पर
सभी मिटाएगे भ्रस्टाचार खा के कसम ये कहते है
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियारों में
इसने लूटा उसने लूटा इस बार लूटेंगे हम भी
इतनी बार बने हो वेबकुफ़ इस बार हमसे भी बन के देखो
नहीं है यू. पी. की सत्ता में हम सालो से
अब चाहत है बनकर आने की युवराज यू .पी.का
मिटा देंगे भुखमरी और गरीबी , बेरोजगार न होगा कोई
कहते कहते गला दुःख गया है मेरा
अब तो सो जाओ जनता एक बार फिर से
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियारों में
सज धज कर आयेंगे इस बार लूटने हम भी
क़तर देंगे माया रूपी जाल धन का , मारंगे गुंडों को घर पर
क्यों जाग रही हो जनता भ्रष्टाचार के अन्धकार से
क्यों बर्बाद कर रहे हो करियर नेताओ का
फरवरी की ठण्ड में और सो जाओ फिर देखो काम हमारा
नेता है हम भी बेरोजगार मत बनाओ हमको
तुम्हारी बेरोजगारी से ही तो रोजगार हमे है मिलता
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियारों में
आशीष त्रिपाठी
द्वार द्वार न झंडे है न पोस्टर बैनर बिल्ले है
न ही नेता दिखते शोर मचाते न दिखते चमचे है
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियारों में
क्यों पकड़ा जाता बीच चौराहों पर काला धन सफ़ेद कपड़ो में
सभी पहने है सफ़ेद कपडे काले मन और तन पर
सभी मिटाएगे भ्रस्टाचार खा के कसम ये कहते है
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियारों में
इसने लूटा उसने लूटा इस बार लूटेंगे हम भी
इतनी बार बने हो वेबकुफ़ इस बार हमसे भी बन के देखो
नहीं है यू. पी. की सत्ता में हम सालो से
अब चाहत है बनकर आने की युवराज यू .पी.का
मिटा देंगे भुखमरी और गरीबी , बेरोजगार न होगा कोई
कहते कहते गला दुःख गया है मेरा
अब तो सो जाओ जनता एक बार फिर से
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियारों में
सज धज कर आयेंगे इस बार लूटने हम भी
क़तर देंगे माया रूपी जाल धन का , मारंगे गुंडों को घर पर
क्यों जाग रही हो जनता भ्रष्टाचार के अन्धकार से
क्यों बर्बाद कर रहे हो करियर नेताओ का
फरवरी की ठण्ड में और सो जाओ फिर देखो काम हमारा
नेता है हम भी बेरोजगार मत बनाओ हमको
तुम्हारी बेरोजगारी से ही तो रोजगार हमे है मिलता
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियारों में
आशीष त्रिपाठी
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment