कुंडली मिलान क्यों जरुरी है -
विवाह मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है, हिंदू वैदिक संस्कृति में विवाह से पूर्व जन्म कुंडली मिलान की शास्त्रीय परंपरा है | विवाह पूर्व भावी दंपत्ती की कुंडली मिलान करना आवश्यक है, ताकि विवाहोपरांत वर कन्या अपना गृहस्थ जीवन निर्विघ्न गुजार सकें |
विवाह तय करने के संबंध में आमतौर पर कई लोग सिर्फ गुण मिलान करके ही निश्चिंत हो जाते हैं, जबकि कुंडली मिलान उससे कहीं अधिक आवश्यक है, इसके अभाव में दांपत्य जीवन को आगे चल कर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है |
वैवाहिक संबंधों की अनुकूलता के परीक्षण के लिए ऋषि-मुनियों ने अनेक ग्रंथ की रचना की, जिनमें वशिष्ठ, नारद, गर्ग आदि की संहिताएं, मुहुर्तमार्तण्ड, मुहुर्तचिंतामणि इत्यादि, जिसमे अष्ट-कूट सर्वाधिक प्रचलित है:-
१) वर्ण से कार्य क्षमता, मानसिक अभिरुचिया, व्यक्तित्व, प्रकृति,
२) वश्य से संबंध, भावनात्मक सामंजस्य, आकर्षण, अधीनता, प्रधानता,
३) तारा से समझने की प्रवृत्ति, भाग्योदय, दोनों की आय व वैवाहिक जीवन में मधुरता या वियोग, भाग्य,
४) योनि से बौद्धिक क्षमता, मानसिकता, स्वभाव गुणदोष, प्रणय संबंध, यौन संबंध में साम्यता व शारीरिक संतोष,
५) राशि से स्वास्थ्य, आपसी विश्वास व सहयोग, परस्पर मित्रता समता या शत्रुता, सामंजस्य,
६) गण से अभिरुचि, कुटुंब के साथ संबंध, प्रकृति की एकरूपता, गुण प्रधानता,
७) भकूट से दिनदैनिक जीवन, दाम्पत्य जीवन में मधुरता, आपसी लेन-देन, प्रेम, एवं
८) नाडी़ से दांपत्य जीवन में स्थिरता, त्रिदोष की साम्यता व संतान सुख में अनुकूलता या बाधा, स्वास्थ्य, आदि
इन अष्टकूट से गुण-दोष अर्थात् आठ प्रकार के दोषों का परिहार देखा जाता है |
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