🌷 *आमलकी एकादशी व्रत* 🌷
*आमलकी एकादशी /रंग भरनी एकादशी व्रत 25 मार्च 2021 ,गुरुवार को रखे🙏*
हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह व्रत हर साल फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। होली से 4 दिन पहले पड़ने के कारण इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति आमलकी एकादशी व्रत को विधि-विधान से रखता है उसे भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन व्रत का लाभ व्रती को तभी मिलता है जब वह आमलकी एकादशी की व्रत कथा को सुनता या पढ़ता है।
आइए जानते हैं आमलकी एकादशी व्रत का मुहूर्त, व्रत विधि और कथा।
👉 *आमलकी एकादशी व्रत मुहूर्त👇*
**एकादशी तिथि प्रारंभ **
24 मार्च 2021 ,बुधवार को सुबह 10 बजकर 23 मिनट से
*एकादशी तिथि समाप्त* -
25 मार्च 2021, गुरुवार को सुबह 09=47 मिनट तक
*एकादशी व्रत पारण का समय* -
26 मार्च 2021, शुक्रवार को सुबह 06:18 से 08:21 तक
*एकादशी का व्रत सूर्योदय तिथि 25 मार्च 2021, गुरुवार को ही रखें* 🙏
*विशेष : बुधवार को एवं गुरुवार एकादशी व्रत के दिन खाने में चावल का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें चाहे आपने व्रत न रखा हो तो भी🙏*
👉 *आमलकी एकादशी व्रत विधि* 👇
प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें। व्रत का संकल्प लें और फिर विष्णु जी की आराधना करें।भगवान विष्ण़ु को पीले फूल अर्पित करें। घी में हल्दी मिलाकर भगवान विष्ण़ु का पूजन करें। पीपल के पत्ते पर दूध और केसर से बनी मिठाई रखकर भगवान को चढ़ाएं। एकादशी की शाम तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाएं।भगवान विष्णु को केले चढ़ाएं और गरीबों को भी केले बांट दें। भगवान विष्णु के साथ माता श्री लक्ष्मीजी का पूजन करें और गोमती चक्र और पीली कौड़ी भी पूजा में रखें।
👉 *आमलकी एकादशी का धार्मिक महत्व* 👇
धार्मिक मान्यता के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि सृष्टि की रचना के समय भगवान विष्णु ने आंवले को पेड़ के रूप में प्रतिष्ठित किया था। इसलिए आंवले के पेड़ में ईश्वर का स्थान माना गया है। आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है अगर आपके नजदीक में आंवले का वृक्ष नहीं है तो बाजार से आंवला लाकर पूजा में श्री विष्णु भगवान को अर्पित कर सकते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
👉 *आमलकी एकादशी कथा* 👇
एक वैदिश नाम का नगर था जिसमें सभी लोग आनंद सहित रहते थे. उस नगर में सदैव वेद ध्वनि गूंजा करती थी तथा पापी, दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था. उस नगर में चैतरथ नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था. वह अत्यंत विद्वान तथा धर्मी था. उस नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र व कंजूस नहीं था. सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे.
एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया. राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से धात्री (आंवले) का पूजन करके उस मंदिर में सब ने रात्रि को जागरण किया.
रात के समय वहां एक बहेलिया आया, जो अत्यंत पापी और दुराचारी था. वह अपने कुटुम्ब का पालन जीव-हत्या करके किया करता था,भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल वह बहेलिया इस जागरण को देखने के लिए मंदिर के एक कोने में बैठ गया और विष्णु भगवान तथा एकादशी माहात्म्य की कथा सुनने लगा,इस प्रकार अन्य मनुष्यों की भांति उसने भी सारी रात जागकर बिता दी.
प्रात:काल होते ही सब लोग अपने घर चले गए तो बहेलिया भी अपने घर चला गया. घर जाकर उसने भोजन किया. कुछ समय बीतने के पश्चात उस बहेलिए की मृत्यु हो गई ..मगर उस आमलकी एकादशी के व्रत तथा जागरण से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया. युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना के सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर ग्रामों का पालन करने लगा.
वह तेज में सूर्य के समान, कांति में चन्द्रमा के समान, वीरता में भगवान विष्णु के समान और क्षमा में पृथ्वी के समान था. वह अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णु भक्त था. वह प्रजा का समान भाव से पालन करता था. दान देना उसका नित्य कर्तव्य था.
एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकलगये.तभी कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने राजा को घेर लिया.इसके बाद डाकुओं ने शस्त्रों से राजा पर हमला कर दिया. मगर देव कृपा से राजा पर जो भी शस्त्र चलाए जाते वो पुष्प में बदल
जाते.डाकुओं की संख्या अधिक होने से राजा चेतनाहीन होकर धरती पर गिर गए. तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और समस्त राक्षसों को मारकर अदृश्य हो गई. जब राजा की चेतना लौटी तो, उसने सभी राक्षसों का मरा हुआ पाया. यह देख राजा को आश्चर्य हुआ कि इन डाकुओं को किसने मारा❓तभी आकाशवाणी हुई- हे राजन! यह सब राक्षस तुम्हारे आमलकी एकादशी का व्रत करने के प्रभाव से मारे गए हैं. तुम्हारी देह से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है. इन्हें मारकर वह शक्ति पुन: तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर गई है... यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और वापस लौटकर राज्य में सबको एकादशी का महत्व बतलाया
🙏 *ओम नमो नारायणाय* 🙏
मनीष तिवारी baba
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